राम विलास पासवान का निधन हो गया है. इस बात की जानकारी बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट के माध्यम से पिता को याद करते हुए दी. वह काफी लंबे वक्त से बीमार थे और हाल ही में उनके दिल का आपरेशन भी हुआ था.
पापा….अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं।
Miss you Papa… pic.twitter.com/Qc9wF6Jl6Z— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) October 8, 2020
1969 के मध्यावधि चुनाव की गहगाहमी शुरू हो गयी थी. खगड़िया जिले के अलौली विधानसभा सीट से उम्मीदवार की तलाश शुरू हो गयी थी. समाजवादियों की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का कोसी इलाके में बोलबाला था. इसी समय अलौली के दलित युवक रामविलास पासवान उन दिनों दारोगा की परीक्षा में पास होकर ट्रेनिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे. दुबली काया वाले बेटे को दारोगा की नौकरी में जाने से पहले शरीर बनाने के लिए पिता ने कुछ पैसे दिये. रामविलास ट्रेनिंग में जाने के पहले अपने रिश्तेदारों से मिलने चले गये.
इसी दौरान उनकी मुलाकात बेगूसराय में कुछ समाजवादियों से हो गयी. उन नेताओं को अलौली सीट के लिए पढ़े- लिखे दलित नौजवान की तलाश थी. युवा रामविलास में उन लोगों को नेतृत्व की छवि दिखी, उन्हें दारोगा की नौकरी का मोह छोड़ राजनीति में आने का प्रस्ताव मिला. इसी बीच मध्यावधि चुनाव की भी घोषणा हो गयी. चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर रामविलास थोड़ा हिचकिचाए, पर लोगों ने उन्हें भरोसा दिलाया.
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गांव आकर पिता को अपने फैसले से उन्होंने अवगत कराया और राजनीति में कूद पड़े. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी एसएसपी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. उनकी टक्कर कांग्रेसी नेता मिश्री सदा से हुई. मिश्री सदा उन दिनों अलौली से विधायक हुआ करते थे. पासवान को चुनाव लड़ने लायक पैसों की किल्लत थी. कभी साइकिल से तो कभी मोटरसाइकिल से चुनाव प्रचार हुआ.
अंततः जब चुनाव परिणाम आया तो पासवान का चेहरा खिल उठा. पासवान करीब एक हजार मतों से कांग्रेसी उम्मीदवार मिश्री सदा को पराजित कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. अलौली से कुल पांच उम्मीदवार थे. पासवान को 20330 वोट आये, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मिश्री सदा को 19424 वोट मिले. इस चुनाव में एसएसपी को कुल 52 सीटें मिलीं.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya