Bihar election 2020 : क्या आय के स्रोतों के खुलासे से राजनीति में आ पायेगी शुचिता
चुनाव प्रक्रिया में सुधार और राजनीति में शुचिता के लिए उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों एक ऐतिहासिक व अहम फैसला सुनाया था. न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सांसद और विधायकों की संपत्ति इतनी कैसे बढ़ जाती है?
राजीव कुमार : चुनाव प्रक्रिया में सुधार और राजनीति में शुचिता के लिए उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों एक ऐतिहासिक व अहम फैसला सुनाया था. न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सांसद और विधायकों की संपत्ति इतनी कैसे बढ़ जाती है? यह जनता को जानने का अधिकार है.
फैसले के मुताबिक उम्मीदवारों को अब स्वयं, पत्नी और आश्रितों की संपत्ति के साथ आय का स्रोत भी बताना आवश्यक हो जायेगा. फैसले के तहत अब से नामांकन पर्ची में एक कॉलम होगा जिसमें आश्रितों की कमाई के स्रोतों को भी दर्शाना होगा. अब वे चल–अचल संपत्ति के साथ ही अपने और अपने आश्रितों के आय के स्रोतों का भी उल्लेख करेंगे. साथ ही पिछले पांच वर्षों में कुल आय को वर्षवार दर्शाना भी आवश्यक हो जाएगा.
चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होगी कि उन्हें या उनके आश्रितों के किसी सदस्य की कंपनी को कोई सरकारी टेंडर मिला है या नहीं. यह व्यवस्था अब लोकसभा, राज्य सभा और अगले बिहार विधान सभा के साथ पंचायत के चुनाव में भी लागू होगा.
2014 के लोकसभा चुनाव में एडीआर द्वारा उम्मीदवारों के हलफनामे के विश्लेषण से यह ज्ञात हुआ कि 113 सांसदों की संपत्ति में सौ गुणा, 26 सांसदों की संपत्ति में पांच सौ गुणा वृद्धि हुई है. इनमें 113 सांसदों ने अपना पेशा बतौर समाज सेवा, राजनीति और सामाजिक कार्य बताया था. आश्रितों में आठ की पत्नियां गृहिणी थीं, लेकिन उनकी संपत्ति करोड़ों में थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में यह भी देखने को मिला कि 43 विधानसभा सदस्यों के पत्नियों की संपत्ति में पचास प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई.
लेखक के निजी राय हैं.
posted by ashish jha