राजदेव पांडेय, पटना : प्रदेश के दलित वोट बैंक पर भाजपा ने इस बार अपना दबदबा बढ़ाया है. उसने प्रदेश विधानसभा में कुल 40 सुरक्षित सीटों में एक चौथाई 11 सीटों पर कब्जा जमाया है. 2015 के चुनाव की तुलना में उसकी ताकत दो गुनी हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे पांच सीटें मिली थीं.
जदयू की 2015 में 11 सुरक्षित सीटों पर जीत मिली थी. इस बार उनकी संख्या घट कर आठ हो गयी है. अगर दलित सीटों पर एनडीए की संयुक्त ताकत देखी जाये तो उसने महागठबंधन को पीछे छोड़ दिया है. एनडीए को सुरक्षित सीटों में 23 सीट सीटें हासिल हुई हैं.
भाजपा ने इस बार सुरक्षित सीटों में अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कटोरिया सीट राजद से छीन ली है. इस तरह उसने आदिवासी वर्ग में सेंधमारी की है. कटोरिया के अलावा हरसिद्धि,पिपरा, राज नगर, रोसड़ा, पीरपैंती, रामनगर(पश्चिमी चंपारण), बथनाहा, बनमंखी, कोरहा, पातेपुर शामिल हैं.
उसके सहयोगी दल जदयू ने इस बार कुल आठ आरक्षित सीटें कुशेश्वर स्थान, भोरे, राजगीर, त्रिवेणीगंज ,रानीगंज , सोनबरसा, सकरा, कल्याणपुर हासिल की हैं. 2015 के चुनाव में जदयू के पास 11 सीटें थीं.
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) ने इमामगंज ,बाराचट्टी और सिकंदरा सुरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया है. 2015 के चुनाव में हम के पास केवल एक सुरक्षिती सीट थी. वहीं एनडीए के एक अन्य घटक दल विकासशील इंसान पार्टी ने बोचहां सुरक्षित सीट पर कब्जा जमाया है.
महागठबंधन के सबसे प्रमुख दल राष्ट्रीय जनता दल ने इस बार आठ सीट मसलन मसौढ़ी , मोहनिया, मखदुमपुर, बोधगया, रजौली, गरखा, अलौली और सिंघेश्वर पर जीत हासिल की है. पिछले चुनाव में उसके पास प्रदेश में सर्वाधिक 13 सुरक्षित सीटें थीं. कांग्रेस ने राजपुर, चेनारी, कुटुंबा, राजापाकर, मनिहारी सीट पर कब्जा जमाया है.
मनिहारी अनुसूचित जनजाति की सीट है. वाम दलों में सबसे ज्यादा तीन सीट माले ने जीती हैं. पिछले 2015 के विधानसभा चुनाव में माले के पास केवल एक सुरक्षित सीट थी. माले ने इस चुनाव में अगियांव , दरौली, फुलवारीशरीफ पर कब्जा जमाया है, जबकि सीपीआइ ने बखरी सीट जीती है.
1985 के विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस की सुरक्षित सीटों पर करीब-करीब एकाधिकार- सा था. इसी वोट बैंक की दम पर वह सत्ता में काबिज हुआ करती थी. 1985 में प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 48 सीटों में उसके कब्जे में 33 सीटें थीं.
इस पार्टी को 2015 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 38 सीटों में से केवल पांच सीटें मिली हैं. इस बार भी उसकी पांच ही सीटें हैं. बिहार में अनुसूचित जाति का करीब 16 फीसदी वोट बैंक है. यह वोट कई मायने में निर्णायक माना जाता है. इससे पहले 2010 के विधानसभा चुनाव में उसका 38 में से 18 सुरक्षित सीटों पर कब्जा था.
Posted by Ashish Jha