राजीव कुमार, पटना : बात स्पेशल कोर्ट द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को सजा मुकर्रर करने ही हो या फिर एक वर्ष में दागियों के मामलों को स्पीडी ट्रायल द्वारा निबटाने की, किसी का भी असर होता दिख नहीं रहा है. 2014 में ही एक याचिका के तहत एक वर्ष में मामलों को निबटाने का आदेश भी दिया गया था, लेकिन ऐसी प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी.
चुनाव सुधार को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच भी अंतर्विरोध सामने आता है. विपक्ष में रहते समय पार्टियां जोर-शोर से चुनाव सुधार की बातें करती हैं, लेकिन सत्ता में आने ही यह मुद्दा उनकी प्राथमिकता से गायब हो जाता है. ऐसा हाल के वर्षों में भी देखा गया है.सभी ने दागियों को अपना उम्मीदवार बनाया. इसका नतीजा यह रहा कि बीते 10 सालों में आपराधिक मामले घोषित करने वाले सांसदों में 122% का इजाफा देखा गया.
वहीं, बीते 15 सालों में बिहार विधानसभा चुनाव में 43% की वृद्धि देखी गयी. एडीआर के पिछले 15 वर्षों के विश्लेषण में कुल 820 निर्वाचित सांसद और विधायकों में 469 यानी 57% से अधिक पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. यह संख्या लगातार बढ़ ही रहा है. यह जानकर हैरानी होती कि जहां साफ छवि के उम्मीदवारों के जीतने की संभावना पांच प्रतिशत होती है, वहीं दागियों के जीतने की संभावना 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.
इन आंकड़ों से यह बखूबी समझ में आ रहा है कि राजनीतिक शुचिता को लेकर दलों का चाल, चरित्र और चेहरा क्या है? जनता के समक्ष स्वविवेक के साथ निर्णय लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. संसदीय लोकतंत्र में जब चुने हुए जनप्रतिनिधि दागियों के बचाव में खड़े हो जाएं और न्यायपालिका अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से कतराने लगे तो एेसे में जनता के पास विकल्प ही भला क्या रह जाता है?
हालांकि, न्यायालय ने कई निर्देश दिये, जैसे–प्रत्याशियों को अपनी पृष्ठभूमि के बारे में मीडिया में तीन बार जानकारी देना, आयोग के फाॅर्म में मोटे अक्षरों में अपराधों की जानकारी देना, पार्टियों को आपराधिक उम्मीदवारों की जानकारी देना, पार्टियों को अपनी वेबसाइट पर दागी उम्मीदवरों की जानकारी डालना. अब आने वाले समय में यह देखना होगा कि अपराधियोें को अपना उम्मीदवार घोषित करने वालों पर क्या कार्रवाई होती है.
पिछले चुनावों में न्यायालय के इस आदेश का पालन होता हुआ नहीं देखा गया. आगामी विधानसभा चुनाव में न्यायालय के सख्त आदेश और आयोग के अपील के बावजूद पार्टियों द्वारा आपराधिक चरित्र के जनप्रतिनिधियों के पत्नियों को उम्मीदवार बनाया जा रहा है. दागी और उसके परिवार के प्रति अनुराग ने दलों की नीयत को खोल कर रख दिया है.
राजनीति में अपराधीकरण पर पूर्ण विराम लगाने के लिए कानून में व्यापक बदलाव करने की जरूरत है. दागी और उसके परिजनों को राजनीति में प्रवेश बंद करने को लेकर भी प्रयास करने होंगे. जनता एेसी पार्टियों के उम्मीदवारों को अपने मत देने से इन्कार कर दे और दलों से सवाल करे कि आखिर वह जनता की रहनुमाई के लिए दागी और उनके परिजनों को क्यों थोप रहे हैं?
मौजूदा कानून के तहत वास्तव में केवल उनलोगों को चुनाव लड़ने से वंचित किया जाता है, जिन्हें न्यायालय ने दोषी पाया है. इस कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है, ताकि सुनिश्चित हो सके कि ऐसे व्यक्ति चुनाव ही न लड़ सकें, जैसे–जिनके खिलाफ आपराधिक आरोप न्यायालय द्वारा तय किये गये हों.
जिनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल हो, जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सजा हो, हत्या, बलात्कार, डकैती, अपहरण, तस्करी जैसे जघन्य अपराध के दोषियों को स्थायी रूप से चुनाव लड़ने से वंचित किया जाये, लेकिन यह तभी संभव है, जब मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति हो और जनता में अपराध की राजनीति में बदलाव को लेकर जुनून हो.
(लेखक एडीआर से जुड़े हैं)
Posted by Ashish Jha