Bihar election 2020 : 100 से अधिक ऐसी जातियां, जिन्हें अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला

राजदेव पांडेय, पटना : प्रदेश में अधिसूचित 133 अतिपिछड़ी जातियों में 100 से अधिक ऐसी जातियां हैं, जिन्हें प्रदेश की राजनीति में अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है़ जातीय आबादी के आधार पर प्रतिनिधित्व तय करने वाली पार्टियों ने इन्हें पूरी तरह उपेक्षित कर रखा है़, जबकि इन जातियों की आबादी प्रदेश की आबादी में 38 फीसदी है और 100 अतिपिछड़ी जातियों की आबादी 31 प्रतिशत है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 30, 2020 12:20 PM

राजदेव पांडेय, पटना : प्रदेश में अधिसूचित 133 अतिपिछड़ी जातियों में 100 से अधिक ऐसी जातियां हैं, जिन्हें प्रदेश की राजनीति में अभी तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है़ जातीय आबादी के आधार पर प्रतिनिधित्व तय करने वाली पार्टियों ने इन्हें पूरी तरह उपेक्षित कर रखा है़, जबकि इन जातियों की आबादी प्रदेश की आबादी में 38 फीसदी है और 100 अतिपिछड़ी जातियों की आबादी 31 प्रतिशत है.

इन अतिपिछड़ी जातियों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वर्ग शुमार हैं. शेष 13 में से चार -पांच जातियां ऐसी हैं जो अतिपिछड़ों में जातीय बहुलता के आधार पर सियासी रसूख बना चुकी हैं. अतिपिछड़ों में राजनीतिक हैसियत बना चुकी जातियों में गंगौता, मल्लाह,कुशवाहा, धानुक और चंद्रवंशी शामिल हैं, जबकि कुम्हार, बेलदार,नोनिया, तांती-ततवा,बिंद,हलवाई ,रोनियार, कानू, मोदी,कहार, पंसारी,महतो और छोटानागपुर डिवीजन में कुर्मी को राजनीतिक पार्टियां यदा-कदा टिकट दे देती हैं.

अतिपिछड़ों में कुछ ऐसी भी जातियां हैं, जिन्हें पिछले 40 सालों में केवल एक-एक बार ही प्रतिनिधित्व मिला़ उदाहरण के लिए प्रजापति या कुम्हार समाज से केवल हरिशंकर पंडित ही इकलौते ऐसे प्रतिनिधि हैं, जो एमएलसी बन चुके हैं. इसी तरह पाल समाज में अभी तक केवल एक एमएलसी बना है़

वे मुख्य जातियां, जो अपनी बिखरी हुई संख्या की वजह से अब तक राजनीतिक हैसियस नहीं बना सकी हैं. उदाहरण के लिए माली, बढ़ई,केदार, कोच, कोरकू, खटीक,खटवा, सीवान और रोहतास जिले की खदवार जाति, छाव,गगई, गोड़, तमोली, देवहर, धनकर, पिंगनिया आदि सौ से ऊपर ऐसी जातियां हैं, जिन्हें नाम के लिए भी महज इसलिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया, क्योंकि इन जातियों की आबादी बिखरी हुई है या विधानसभा विशेष में कम है़

इसी तरह मुस्लिम समुदाय में धुनिया, धोबी,नलबंद, पमरिया, भतियारा, हलखोर,मेहतर, मिरयासन ,मुकुरी, इदरिस,चिक, अमात,कलंदर,कोछ आदि ऐसी जातियां हैं, जिनके लिए विधानसभा या व विधान परिषद दूर की कौड़ी है़ उल्लेखनीय है कि बिहार ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां अतिपिछड़ी जातियों को वैधानिक तौर पर स्वीकार किया गया है़ सबसे पहले अति पिछड़ों की राजनीतिक भागीदारी की बात लोहिया ने की थी.

बिहार की अति पिछड़ा वर्गों पर खास अध्ययन करनेवाले दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नवल किशोर कहते है कि निश्चित रूप से कई जातीय वर्गों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. इस वजह से लोकतंत्र समाज के अंदर तक नहीं पहुंच सकेगा. यह वर्ग हर तरीके से वंचित है. बिना राजनीतिक शक्ति हासिल किये जातियां समुचित विकास और ताकत हासिल नहीं कर सकती हैं. लिहाजा उन्हें भी राजनीतिक हैसियत दी जानी चाहिए. ईमानदार राजनीतिक नेतृत्व को इस बारे में सोचना चाहिए.

posted by ashish jha

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