वर्षों से बंद पड़ा है नया जूट मिल, पुराना मिल भी बैसाखी के सहारे, पर नहीं बना कभी चुनावी मुद्दा

चुनाव आयोग की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव का तारीख मुकर्रर होने के साथ ही सभी तरह के शिलान्यास और उद्घाटन पर ब्रेक लग गया है. इन पांच वर्षो में जिले में कुछ विकास हुआ तो वहीं कई ऐसी समस्या है. जो धरी की धरी रह गयी.

By Prabhat Khabar News Desk | October 3, 2020 11:20 AM

कटिहार : चुनाव आयोग की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव का तारीख मुकर्रर होने के साथ ही सभी तरह के शिलान्यास और उद्घाटन पर ब्रेक लग गया है. इन पांच वर्षो में जिले में कुछ विकास हुआ तो वहीं कई ऐसी समस्या है. जो धरी की धरी रह गयी. जो लोगों के दिलों में अब भी टिस मारती है. समस्याओं की बात करें तो सबसे पहले जूट मिल की समस्या आंखों के सामने उभर कर आता है. शहर में अवस्थित एनजेएमसी की इकाई नया जूट मिल वर्ष 2008 से बंद है. यानी 12 वर्षों से बंद है. इस जूट मिल में कामगारों की क्षमता एक हजार है. मिल बंद होने से एक हजार कामगार बेरोजगार हो गये. उनके घर का चूल्हा चौका बंद हो गया. इतना ही नहीं इन कामगारों पर आश्रित चाय पान, राशन, कपड़ा दुकानदार को भी व्यवसाय में नुकसान उठाना पड़ा. जो अब तक बदस्तूर जारी है. मिल बंद होने के बाद कुछ दिनों तक तो खूब धरना प्रदर्शन किया गया. लेकिन कोई भी प्रशासनिक और जनप्रतिनिधि का पहल नहीं हुआ तो धीरे-धीरे वह भी बंद हो गया. आलम यह है कि इस मिल में काम करने वाले कुछ कामगार तो प्रदेश पलायन कर गए.और जो कुछ बचे हैं. वह रिक्शा, ठेला चला कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. इन 12 वर्षों में सरकार का गठन होते रहा. जनप्रतिनिधि चुनकर आते रहे. लेकिन इस बंद पड़े जूट मिल का कायापलट अब तक नहीं हो सका.

पुराना जूट मिल की स्थिति है दयनीय

नया जूट मिल तो बंद पड़ा है. लेकिन सन बायो मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (पुराना जूट मिल) चल रहा है. परंतु कब यह मिल बंद हो जायेगा और कब खुलेगा. इसका किसी को पता नहीं है. पुराना जूट मिल में भी एक हजार कामगारों की क्षमता है. लेकिन मिल प्रशासन के मनमाने रवैया के कारण इस मिल में वर्तमान में दो सौ से ढाई सौ कामगारों को ही काम पर रखा गया है. मिल प्रशासन काम कर रहे कामगारों को 280 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी भुगतान देता है. जबकि सरकारी रेट कुशल कामगारों का 444 रुपये हैं. पुराना मिल में सभी कुशल कामगार हैं. कामगार जो मजदूरी बढ़ाने की मांग करते हैं. तो उन्हें काम से निकाल दिया जाता है. या फिर मिल बंद कर दिया जाता है. लॉकडाउन अवधि में मजदूरों का बकाया नहीं दिया जा रहा था. काफी हो-हल्ला के बाद मिल प्रबंधन ने बकाए का भुगतान किया. पिछले पांच वर्षों में जनप्रतिनिधि चुनकर आये. लेकिन इन कामगारों की समस्या का समाधान आज तक नहीं निकाल पाये. जो जो चिंता का विषय है.

क्या कहते हैं कामगार

पुराना जूट मिल में काम कर रहे हैं कामगारों में नूर मोहम्मद, राजकुमार राम, राजकुमार चौधरी, मो मुकीम, सिंघेश्वर यादव, मो अख्तर, मो मुजीब ने बताया कि हम लोगों को मजदूरी सरकारी नियमानुसार नहीं मिलता है. काफी समस्याएं हैं. लेकिन इस समस्या का समाधान किसी भी जनप्रतिनिधि ने नहीं किया है.

posted by ashish jha

Next Article

Exit mobile version