Loading election data...

धान और बालू के लिए प्रसिद्ध काराकाट विधानसभा क्षेत्र की परिसिमन ने बदल दी तस्वीर

तीन तरफ से बॉर्डर में घिरा काराकाट विधानसभा क्षेत्र मूलतः धान व बालू के लिए विख्यात है. यहां का बालू देश की राजधानी दिल्ली की मंडियों तक जाता है, तो यहां के उत्पादित धान के चावल देश के अलावे विदेशों तक जाते हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | October 3, 2020 7:20 AM

एस चंद्रकांत, बिक्रमगंज रोहतास : तीन तरफ से बॉर्डर में घिरा काराकाट विधानसभा क्षेत्र मूलतः धान व बालू के लिए विख्यात है. यहां का बालू देश की राजधानी दिल्ली की मंडियों तक जाता है, तो यहां के उत्पादित धान के चावल देश के अलावे विदेशों तक जाते हैं. इन्हीं खासियतों के लिए विख्यात काराकाट विधानसभा क्षेत्र में 2010 से बिक्रमगंज व संझौली प्रखंड जुड़ गया है. यहां के विस्कोमान की राइस मिल चावल बनाने के मामले में एशिया में स्थान रखने वाला माना जाता था. दुर्भाग्य है कि यह कभी चुनावी मुद्दा ना बन सका है.

काराकाट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का निर्माण आजादी के 20 वर्षों बाद 1967 में हुआ था. तब ग्रामीण राजनीति के महारथी चिकसिल निवासी प्रखंड प्रमुख तुलसी सिंह पहला विधायक चुने गये. उसके बाद बीच में तीन बार हारे और चार बार जीते कुल मिला कर उनका राजनीतिक सफर हार जीत के बीच 2000 तक चलता रहा. लेकिन 2000 के चुनाव में यहां से भाकपा माले नेता अरुण सिंह ने अपना वर्चस्व ऐसा स्थापित किया कि यह क्षेत्र लाल झंडा के लिए सुरक्षित सीट बन गया.

जिसने 2005 में भी जीत दर्ज की, उस वर्ष उसी साल अक्तूबर में मध्यवती चुनाव हो गया. इसमें पुनः चुनाव हुए, तो फिर से लाल झंडा लहरा गया, जो 2010 तक कायम रहा. लेकिन 2010 में परिसीमन बदलते ही क्षेत्र की राजनीतिक पृष्टभूमि भी बदल गयी. इस सीट पर लाल झंडे की बादशाहत थी, वहां पहली बार नीतीश कुमार का झंडा लहराने लगा और राजेश्वर राज पहली बार विधायक बन गये. जिसे 2015 के चुनाव में लालू यादव के लालटेन के सहारे संजय यादव ने भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमा रहे वर्तमान विधायक राजेश्वर राज को हरा कर लालटेन जलाया गया.

लेकिन आज भी यह क्षेत्र विकास की रौशनी से दूर ही रहा जिसके बाजारों पर वह रौनक नहीं दिखती, जिसे विकसित क्षेत्र का दर्जा मिल सके. काराकाट विधानसभा क्षेत्र का इकलौता नगर बिक्रमगंज है, जो आज तक विकास की बाट देख रहा है. बड़े-बड़े वादे करने वाले यहां के दो विधायक स्थानीय नगर में ही रहते हैं. वर्षों तक समाजवाद व बाम दल की धरती रही काराकाट व बिक्रमगंज नगर के लोगों को आज भी अपने तारणहार का इंतजार है.

काराकाट में पांच बार समाजवादी नेता तुलसी सिंह व तीन बार बामपंथी नेता अरुण सिंह ने अपनी जीत दर्ज की. काराकाट विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1967 में हुई थी. तब प्रखंड प्रमुख रहे तुलसी सिंह ने विधानसभा का सफर शुरू किया, जो 1967, 1969, 1980, 1990 व 1995 के चुनाव में जीत कर पांच बार जीतने का रिकॉर्ड बनाया है. उनके जीत का चक्का बामपंथी अरुण सिंह ने 2000 के चुनाव में रोक दिया. उसके बाद 2005 में दूसरी बार जीते और उसी साल अक्तूबर में हुए उपचुनाव में भी जीत दर्ज कर हैट्रिक लगायी है.

posted by ashish jha

Next Article

Exit mobile version