सुमित कुमार, पटना. बिहार में निर्माणाधीन 17 पनबिजली परियोजनाओं में से पांच परियोजनाएं आधिकारिक रूप से लगभग बंद कर दी गयी हैं. ऊर्जा विभाग ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन परियोजनाओं के लिए राशि का आवंटन ही नहीं किया है. विभाग के प्रधान सचिव संजीव हंस ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पांच रुपये प्रति यूनिट से कम लागत और 50 फीसदी से अधिक काम पूरा करने वाली 12 परियोजनाओं को ही राशि मिलेगी. इसके लिए योजना के तहत लगभग 144 करोड़ रुपये का आवंटन स्वीकृत है. इसमें से 14 करोड़ रुपये का आवंटन हाल ही में बिहार राज्य जल विद्युत निगम को उपलब्ध कराया गया है.
परियोजना डीपीआर टेंडर अब तक खर्च संशोधित लागत
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12 चल रही 78.82 99.39 80.16 143.93
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03 बंद 143.98 143.20 53.93 405.48
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02 स्थगित 74.34 82.09 00.67 114.64
मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2004 से 2012 के बीच राज्य में 17 पनबिजली परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ,लेकिन अलग-अलग कारणों से इनका निर्माण तय समय में पूरा नहीं हो सका है. इस बीच परियोजनाओं की लागत भी बढ़ती चली गयी. बाद में आइआइटी रूड़की से निर्माणाधीन 17 परियोजना का अध्ययन कराया गया, जिसके बाद पांच परियोजनाओं की राशि बंद कर दी गयी है. बंद होने वाली परियोजनाओं पर 55 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च किया जा चुका है.
बिहार राज्य जल विद्युत निगम की आधिकारिक वेबसाइट पर भी 12 परियोजनाएं ही निर्माणाधीन बतायी जा रही हैं. इनमें रोहतास का अमेठी, पहरामा, डिहरी कैनाल, रामपुर व नटवार, औरंगाबाद का तेजपुरा, सिपहर व डेहरा, पश्चिम चंपारण का मथौली व बरबाल, सुपौल का राजापुर तथा अरवल का वलिदाद शामिल हैं. इन परियोजनाओं की लागत भी 78 करोड़ रुपये से बढ़ कर 143 करोड़ रुपये हो चुकी है, लेकिन 50 फीसदी से अधिक काम होने के कारण इसे चालू रखा गया है. इसके शुरू होने से लगभग 16 मेगावाट बिजली बढ़ जायेगी.
वहीं, पश्चिम चंपारण में कटनैया, सुपौल के निर्मली और अररिया के बथनाहा परियोजना की लागत 143 करोड़ से बढ़ कर 405 करोड़ हो चुकी है. इस पर अब तक 53 करोड़ 93 लाख खर्च और 50 फीसदी से कम काम हुआ है. अन्य दो परियोजनाओं में पश्चिम चंपारण के धोबा और सुपौल के अरार घाट में काम शुरू नहीं हुआ है. इन पर 67 लाख खर्च हुआ है. 74 करोड़ रुपये की इन दोनों परियोजनाएं की लागत अब तक 114.64 करोड़ की हो चुकी है. इसे देखते हुए ही पांच परियोजनाओं को बंद करने पर सैद्धांतिक सहमति बनी है.
जानकारी के मुताबिक राज्य की कई नदियों पर पनबिजली की संभावना तलाशने को सर्वे हुआ. इसमें प्रमुख रूप से महानंदा बेसिन में 23 मेगावाट, बूढ़ी गंडक में छह मेगावाट, गंडक बेसिन व डागमारा में 130-130 मेगावाट और इंद्रपुरी में 300 मेगावाट की परियोजना शामिल रही. इसके साथ ही निगम ने पंप स्टोरेज प्रणाली से तेलहर कुंड में 400 मेगावाट, दुर्गावती में 1600 मेगावाट, पंचगोटिया में 225 मेगावाट और सिनाफदर में 345 मेगावाट की संभावना तलाशी थी. इसमें से डागमारा में 130 मेगावाट की परियोजना को अब राज्य सरकार ने ऑफिशियली बंद कर दिया है. अधिकारियों के मुताबिक करीब एक-डेढ़ दशक पहले इनका सर्वे हुआ या डीपीआर बन चुकी है. इन सभी परियोजनाओं पर काम हो तो बिहार में 2500 मेगावाट पनबिजली उत्पादित हो सकती है.