बिहार सरकार से आनंद मोहन की रिहाई पर जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय, एक अगस्त तक टली सुनवाई
बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूछे सवाल का जवाब देने के लिए समय मांगा. इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई को एक अगस्त तक के लिए टाल दिया.
बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) की जेल से रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) में सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूछे सवाल का जवाब देने के लिए समय मांगा. इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई को एक अगस्त तक के लिए टाल दिया. मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जेएस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने आनंद मोहन की रिहाई के मूल रिकॉर्ड भी पेश करने को कहा है. इसपर सरकार की तरफ से समय मांगा गया. जिसके बाद, शीर्ष अदालत ने तीन महीने बाद का समय दे दिया.
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन ने 16 साल जेल की सजा काटी है. मगर, उमा कृष्णैया का कहना है कि जब आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा हुई तो उन्हें पहले कैसे जेस से छोड़ दिया गया है. बता दें कि इससे पहले मामले की सुनवाई आठ मई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने पहली सुनवाई में बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया था. इसके साथ ही, मामले की फिर से सुनवाई दो सप्ताह के भीतर करने की मांग की थी.
Supreme Court grants more time to Bihar Government to file a reply to slain IAS officer G Krishnaiah's wife Uma Krishnaiah's plea challenging premature release of Bihar politician Anand Mohan from prison. pic.twitter.com/viDLNWfmM3
— ANI (@ANI) May 19, 2023
बता दें कि पांच दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में बिहार के गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैकया की उग्र भीड़ ने हत्या कर दी थी. मामले में आनंद मोहन को दोषी ठहराया गया था. मामले में सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने आनंद मोहन को 3 अक्टूबर 2007 को फांसी की सजा दी थी, जिसे पटना हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर 2008 को उम्रकैद में बदल दिया था. करीब 16 वर्ष जेल में रहने के बाद, बिहार सरकार के द्वारा कानून में संशोधन करने के कारण उनके साथ 26 अन्य कैदी भी जेल से रिहा हो गए.