पटना: केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तर्ज पर अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारियां शुरू कर दी है. इसके लिए बीते 14 सितंबर को वित्त मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की थी. अधिसूचना के मुताबिक केंद्र सरकार ग्रामीण बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को कम करेगी. अभी केंद्र सरकार की ग्रामीण बैंकों में पचास प्रतिशत तक की हिस्सेदारी है. जिसे सरकार लगभग 34 प्रतिशत तक निजी कंपनियों के हवाले यानी बेचने की तैयारी कर रही है. सरकार के इस कदम के बाद ग्रामीण बैंक में केंद्र की हिस्सेदारी महज 16 प्रतिशत बचेगी. बता दें कि वर्तमान में बिहार में दो प्रमुख ग्रामीण बैंक है पहला उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और दूसरा है दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक.
जानकारी के मुताबिक ग्रामीण बैंकों की हस्सेदारी को बेचने के लिए केंद्र सराकर शेयर बाजार में बकायदा आईपीओ लाएगी. सरकार के उद्देश्य ग्रामीण बैंकों के 34 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचना है. अभी ग्रामीण बैंक में सरकार के पास 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. बिक्री प्रकिया पूरी होने के बाद केंद्र सरकार के पास ग्रामीण बैंक की हिस्सेदारी महज 16 प्रतिशत ही बचेगी. इसकी प्रकिया लगभग शुरू हो चुकी है. हालांकि दूसरी ओर सरकार के इस कदम की भनक लगते ही बैंक संगठनों ने विरोध जताना शूरू कर दिया. बावजूद इसके सरकार ने अपने फैसले पर काम करना शुरू कर दिया है.
बिहार में दो प्रमुख ग्रामीण बैंक है. उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक. सरकार के इस फैसले की जानकारी मिलने के बाद बिहार के लोगों अपनी जमापूंजी को लेकर आशंकित है. लोगों को भय सता रहा है कि बैंक के प्राइवेट हो जाने से कहीं उनकी जीवनभर की कमाई डूब न जाए. बता दें कि बिहार में ग्रामीण बैंकों का गठन खासकर मजदूर और किसानों का ध्यान में रखकर किया गया था. बैंकिग के जानकार बताते हैं कि छोटे स्तर के किसान और मजदूरों को आसानी से ऋण मुहैया कराने के उद्देश्य से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एक्ट 1976 के तहत ग्रामीण बैंकों का गठन किया गया था.
बैंकिग के जानकारों का कहना है कि ग्रामीण बैंकों कि हिस्सेदारी को बेचना मतलब निजीकरण. निजीकरण का सीधा असर खेती-किसानी को मिलने वाले ऋण पर पड़ेगा. ग्रामीण बैंक का गठन किसानों को सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए हुआ था. निजीकरण के बाद शेयरधारक को किसानों के कल्याण से कोई मतलब नहीं रहेगा. उनका केवल अपने मुनाफे से वास्ता रहेगा.
सरकार का कहना है की आज के समय में छोटे छोटे बैंकों की आवश्यकता नहीं है बल्कि 6 से 7 बड़े बैंकों की आवश्यकता है. दरअसल, ज्यादा बैंक होने से आपस में ही प्रतिस्पर्धा के कारण टिक नहीं पा रहे हैं और एनपीए से निपटने में भी नाकाम हो रहे हैं. सरकार के लिए भी इन बैंकों को पूंजी जुटाने में भी दिक्कत हो रही है.