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Buddha Purnima 2023: बुद्ध की महत्वपूर्ण कर्मभूमि है बिहार, यहां स्थापित हैं कई बौद्ध केंद्र

कालांतर में पहली, दूसरी व तीसरी बौद्ध संगीतियां बिहार के राजगृह, वैशाली व पाटलिपुत्र में संपन्न हुई. बुद्ध के क्रिया-कलापों से संबंधित रहने के कारण यहां कई बौद्ध केंद्र स्थापित हुए, जिनका अपना धार्मिक व कलात्मक महत्व है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 5, 2023 4:48 AM
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बिहार बुद्ध की महत्वपूर्ण कार्यस्थली रही है. इस प्रदेश का नाम ही विहार (बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान) को अभिव्यक्त करता है. भगवान गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी. बौद्ध धर्म को दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म माना गया है. गौतम बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ गौतम था. इन्होंने अपना पूरा जीवन समाज कल्याण व ध्यान में लगा दिया था. उनके उपदेश मनुष्य को दुख व पीड़ा से मुक्ति दिलाने के माध्यम बने. उन्होंने पूरी दुनिया को करुणा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.

बिहार की धरती रही है बुद्ध की महत्वपूर्ण कार्यस्थली

बुद्ध का अधिकांश जीवन इसी भू-भाग पर व्यतीत हुआ. बुद्ध के जीवन की महान अष्ट घटनाओं में से तीन घटनाएं, बोधगया में बोधि प्राप्ति, वैशाली में कपिराज द्वारा मधु दान तथा राजगृह में नालागिरि हस्ति का दमन यहीं घटित हुई. कालांतर में पहली, दूसरी व तीसरी बौद्ध संगीतियां क्रमशः राजगृह, वैशाली व पाटलिपुत्र में संपन्न हुई. बुद्ध के क्रिया-कलापों से संबंधित रहने के कारण यहां कई बौद्ध केंद्र स्थापित हुए, जिनका अपना धार्मिक व कलात्मक महत्व है.

बिहार में स्थापित बौद्ध केंद्र

  • बौद्ध स्तूप (पटना)

  • महाबोधि मंदिर (बोध गया)

  • केसरिया स्तूप (चंपारण )

  • वैशाली (वैशाली)

  • राजगीर (नालंदा)

  • नालंदा विश्वविद्यालय (नालंदा )

  • डुंगेश्वरी पहाड़ (बोधगया)

  • सुजाता गढ़ (गया)

  • विक्रमशिला विवि (भागलपुर)

  • चंडी (नालंदा)

  • रामपुरवा (पश्चिम चंपारण)

  • लौरिया अरेराज (पूर्वी चंपारण)

  • लौरिया नंदन गढ़ (पश्चिम चंपारण)

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आज भी प्रासंगिक हैं बुद्ध और उनके उपदेश

महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेशों में सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, स्वतंत्रता एवं समानता की शिक्षा दी. समाज के हर वर्ग के लोगों को उन्होंने अपना शिष्य बनाया. चाहे वह राजा हो, व्यापारी हो, सामान्य जन हो या चोर या फिर डाकू ही क्यों न हो. सभी के आत्मिक उत्थान के लिए उन्होंने प्रयास किया. इसी तरह नारियों के धार्मिक कल्याण के लिए भी प्रयासरत रहे. उनकी शिष्यओं में रानियां, नगर श्रेष्ठि की वधूओं से लेकर आम्रपाली जैसी गणिका भी शामिल थी. उनका मध्यम मार्ग हर तरह की कट्टरता से स्वयं को मुक्त करने का संदेश देता है तथा आदर्श समाज की रचना को आज भी प्रेरित करता है. – डॉ जलज तिवारी, सहायक अधीक्षण, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (पटना अंचल)

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