Bihar Diwas 2023 : कभी हार नहीं मानने वाला बिहार ! आज पूरे कर रहा 111 साल
बिहार इस साल अपना 111वां स्थापना दिवस मना रहा है. तीन दिवसीय समारोह में गीत, संगीत, नृत्य, कला प्रदर्शनी के साथ-साथ अन्य कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं. मुख्य कार्यक्रम गांधी मैदान के अलावा श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल व रवींद्र भवन में होगा.
अजय कुमार. कभी हार नहीं मानने वाला बिहार आज 111 साल पूरे कर रहा है. यह सैकड़ों साल पहले लोगों को आकर्षित करता था. अब भी कर रहा है. मेगस्थनीज, फाह्यान और ह्वेनसांग को तब भी इसने लुभाया था. आज कई देशों-राज्यों के छात्रों के अध्ययन का केंद्र बना हुआ है. नयी राह-नया सोच बिहार के डीएनए (जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्र में पाया जाने वाला एक किस्म का तंतुनुमा अणु) की पहचान रहे हैं. यह 21वीं सदी में और गाढ़ा हुआ है. मगध की बात हो या नये धार्मिक पंथों के निकलने की शुरुआत, अनिश्वरवाद के विचार भी यहीं से फूटते हैं. मंडन मिश्र, उनकी पत्नी भारती के साथ शंकराचार्य के शास्त्रार्थ का वाकया ज्ञान की खोज का विस्तार ही तो था. श्रम के प्रतीक दशरथ मांझी को भला कैसे कोई भुला सकता है. सच्चिदानंद सिन्हा न होते तो शायद हमारा 111 साल का अतीत और वर्तमान न होता. शून्य की खोज इसी धरती पर हुई तो शिखर पर पहुंचने का माद्दा भी बरकरार रहा है.
यह बिहार ही है, जो तमाम प्रतिकूल हालात में बेहतरी के सपने देखना नहीं छोड़ता. यह सोचने और सपने देखने की प्रक्रिया ही उसकी पूंजी-पहचान है. यह पहचान समृद्ध समूहों के लिए हंसी-मजाक का विषय भी रहा है. पर, यह जानते हुए भी बिहार ने अपनी छवि गढ़ी. दुनिया के बाजार में श्रम और मेधा से इस बिहार ने अपनी छवि बनायी है. पंजाब के खेत-खलिहानों से लेकर बेंगलुरु, पुणे, हैदराबाद तक आज आइटी सेक्टर में बिहार की प्रतिभाएं काम रही हैं. वैश्विक पैमाने पर देखें, तो अमेरिका से लेकर अमिरात तक बिहार के लोगों की मौजूदगी है. अगर बिहारियों में कुछ न होता, तो यह क्यूं है?
बेशक अंतरविरोध की कई-कई परते हैं यहां. विषमता की गहरी और तकलीफदेह तस्वीर है. सामंती उत्पीड़न से लेकर महिला प्रताड़ना की घटनाएं हैं. लेकिन, यहीं से उम्मीद की किरणें भी निकलती हैं. कला, तकनीक, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में युवा आबादी का दखल बढ़ना मामूली नहीं है. कविता-कहानी के पटल पर संपूर्ण हिंदी पट्टी के मूल्यांकन में बिहार को नजरअंदाज करना नामुमकिन है. साहित्य की किताबें बिहार में सबसे अधिक पढ़ी-बेची जाती हैं. यह पढ़ाकू समाज की निशानी ही तो है. पढ़ने की ललक बीते कुछ सालों में बेहिसाब बढ़ी है. इस प्रवृति को कहीं भी देखा जा सकता है. लोग बताते हैं कि गरीब पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. शराबबंदी के बाद बिहार में रेखांकित करनेवाले बदलाव सामने आये हैं.
मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास है. इसने साम्राज्यों को रचते-बसते देखा है और बिखरते हुए भी. सृजन की अपार संभावनाओं वाले इस प्रदेश को अपनी युवा शक्ति पर गुमान है. राज्य की कुल आबादी में 15 से 40 साल की आबादी 5.6 करोड़ है. यह युवा रक्त है. यही आबादी बिहार को आगे बढ़ायेगी. सृजन के नये प्रतिमानों को गढ़ेगी.