पटना. चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्रों से कोरोना काल का विकास और लाइब्रेरी शुल्क की वसूली पर हाइकोर्ट ने रोक लगा दी है. पटना हाई कोर्ट ने चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्रों से सुविधा शुल्क के नाम पर विकास फीस के रूप 15000 रुपये व लाइब्रेरी के फीस के रूप में लिए जा रहे 5000 रुपये को मनमाना करार दिया है.
जस्टिस पी बी बजन्थरी ने कार्तिकेय त्रिवेदी व अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय के फीस मांगने सम्बन्धी आदेश को रद्द कर छात्रों को बड़ी राहत दी है. याचिकाकर्ताओं ने यूनिवर्सिटी द्वारा जारी उस डिमांड नोटिस सह पत्र को खारिज करने का आग्रह किया गया था, जिसके जरिये शैक्षणिक सत्र 2020-21 के छात्रों को पूरा फीस 31 अगस्त, 2020 तक जमा करने को कहा गया था. फीस जमा नहीं करने की स्थिति में दंडित करने की बात कही गई थी.
याचिकाकर्ताओं द्वारा शैक्षणिक सत्र 2019- 20 के मार्च व अप्रैल महीने की ट्यूशन फीस छोड़कर, मेस फीस, इलेक्ट्रिसिटी फीस व लाइब्रेरी फीस समेत अन्य फैसिलिटी फीस वापस लौटाने को लेकर आदेश देने का भी आग्रह किया गया था. चूंकि कोरोना काल में इन मदों में लिए गये शुल्क का इस्तेमाल यूनिवर्सिटी द्वारा नहीं किया गया था और ऑनलाइन क्लास चल रहा था.
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सुमित कुमार सिंह बताया कि कोर्ट के इस आदेश से एक बडी तादाद में यूनिवर्सिटी के छात्रों को फायदा होगा, जिसकी राशि करोड़ों रुपये में जाएगी. यूनिवर्सिटी द्वारा इस तरह से फीस की वसूली का आदेश दिया जाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के विपरीत है.
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में इस बात को भी उठाया था कि की इस प्रकार के मामलों में बहुत से स्कूल और कॉलेजों द्वारा इस प्रकार की छूट दी गयी है और याचिकाकर्ताओं के मामले में छूट नहीं दिया जाना क्या भारत के संविधान के 14 उल्लंघन नहीं है ? यूनिवर्सिटी के अधिवक्ता का कहना था कि होस्टल और लाइब्रेरी के प्रबंधन के लिए ये पैसे लिये जा रहे हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को निष्पादित कर दिया.
Posted by Ashish Jha