बिहार: लखीसराय में नदी से मिली दो हजार वर्ष पुरानी कुषाणकालीन मूर्ति, डीएम ने बतायी ये खास बात
Bihar News: बिहार के लखीसराय जिले में स्थित किऊल नदी में खुदाई के दौरान अष्टधातु की बेशकीमती मूर्ति को बरामद किया गया है. यह खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई. इसके बाद यहां लोगों की भीड़ जमा हो गई.
Bihar News: बिहार के लखीसराय जिले के चानन प्रखंड के किऊल नदी स्थित रामपुर बालू घाट पर रविवार को बालू खनन के दौरान एक पुरातात्विक महत्व की मूर्ति मिली थी. पुरातत्वविदों के मुताबिक यह प्रतिमा दो हजार वर्ष पुरानी कुषाणकालीन है. इसकी जानकारी होते ही रविवार की रात डीएम अमरेंद्र कुमार की पहल पर जिले के दो पदाधिकारियों ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से मूर्ति को मौके पर से बरामद कर उसे जिला मुख्यालय में बनाये गये अस्थायी संग्रहालय में रखवा दिया गया
डीएम अमरेंद्र कुमार ने बताया कि रामपुर बालू घाट से मूर्ति मिलने की सूचना उन्हें विश्वभारती शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय पश्चिम बंगाल के प्रोफेसर डॉ अनिल कुमार के द्वारा रविवार की देर शाम को दी गयी. इसके बाद एस पी पंकज कुमार से वार्ता कर जिले से वरीय उपसमाहर्ता विनोद कुमार एवं जिला योजना पदाधिकारी ओम प्रकाश सिंह को शाम में ही चानन भेजकर पुलिस के सहयोग से मूर्ति बरामद कर मंगा लिया गया. मौके पर जिलाधिकारी ने माना कि जिले के अशोक धाम मोड़ पर उद्घाटित संग्रहालय अभी मूर्तियों के रखरखाव के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं है. जिस वजह से मूर्ति को जिला मुख्यालय स्थित अस्थायी संग्रहालय में ही रखा गया है.
डीएम ने बताया कि डॉ अनिल कुमार व पटना के क्यूरेटर से मिली जानकारी के अनुसार चानन के रामपुर में मिली मूर्ति कुषाण काल शाल भंजिका मोक्ष देवी की है तथा दो हजार वर्ष पुरानी है. क्यूरेटर के अनुसार महाराष्ट्र में इस तरह की लाल बलुआही पत्थरों से प्रतिमाएं बनायी जाती हैं, जिसे बौद्ध धर्म के अनुयायियों के द्वारा लायी गयी होगी. डॉ अनिल कुमार के अनुसार यह लाल पत्थर की मथुरा आर्ट का का नमूना है. मूर्ति शालभंजिका की है. डीएम ने बताया कि मूर्तियों की जांच विशेषज्ञों के द्वारा कराने के बाद ही सही वस्तुस्थिति का पता चल सकता है. इसके लिए आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से बात की जायेगी. इसके साथ ही डीएम ने बताया कि उन्हें जानकारी मिली है कि रामपुर बालू घाट के पास ही नोनगढ़ गांव में कुषाण काल की कई मूर्तियां ग्रामीणों के द्वारा रखी गयी है. जिसकी जांच करायी जायेगी.
लखीसराय संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ शिव कुमार मिश्र के ने बताया कि चानन से मिली शालभंजिका की मूर्ति है तथा यह जिले के दो हजार साल पुरानी संस्कृति उजागर होती है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ पुरातत्वविद एवं मूर्ति विशेषज्ञ डॉ जलज कुमार तिवारी ने इस मूर्ति को कुषाणकालीन शालभंजिका की मूर्ति मानते हुए बौद्धों से संबंधित लोक देवी कहा है. पहली शताब्दी में लाल बलुआही पत्थर से ऐसी मूर्ति बनायी जाती थी. संग्रहालयाध्यक्ष ने बताया कि बुद्ध जन्म दृश्य से संबंधित मूर्ति में भी माया देवी को शाल वृक्ष को पकड़ते हुए दिखाया जाता है, लेकिन उसमें बुद्ध की छोटी मूर्ति भी बनी रहती है. इसमें वैसी कोई मूर्ति नहीं है. इसलिए इस मूर्ति को लोकदेवी ही मानना उचित होगा.