बिहार में दिखी सोनकंठी गौरैया, भीम बांध में डेरा डाले है 700 से अधिक की संख्या में दुर्लभ प्रजाति की पक्षी
Bihar News: बिहार के मुंगेर के भीम बांध में दुर्लभ प्रजाति की सोनकंठी गौरैया मिली है. गौरैया संरक्षण पर सक्रिय संजय कुमार की टीम के द्वारा विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी घरेलू गौरैया और पीले कंठ वाली गौरैया की खोज की गयी है.
Bihar News: बिहार के मुंगेर के भीम बांध में दुर्लभ प्रजाति की सोनकंठी गौरैया मिली है. पटना विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व छात्र निशांत रंजन के नेतृत्व में संचालित इन्वायरमेंट वारियर्स और गौरैया संरक्षण पर सक्रिय संजय कुमार की टीम के द्वारा विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी घरेलू गौरैया और पीले कंठ वाली गौरैया की खोज की गयी है. आपको बता दें कि जिले के भीमबांध वन क्षेत्र के टोला चोरमार, टोला बसिया, गुमला आदि क्षेत्र में एक साथ लगभग 700 की संख्या में पीले कंठ वाली गौरैया की पहचान हुई है. इसी टीम में सदस्य व पीयू के छात्र आशुतोष कुमार, वतन कुमार ने संजय कुमार, निशांत रंजन और अदिति रॉय आदि शामिल हैं.
गौरैया की सोनकंठी प्रजाति काफी दुर्लभ
गौरैया की सोनकंठी प्रजाति काफी दुर्लभ है. इसे भारत के पक्षीमैन डॉ सालिम अली की गौरैया भी कहा जाता है. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के अवैतनिक सचिव डब्ल्यू एस मिलार्ड ने सोनकंठी गौरैया, पेट्रोनिया की एक प्रजाति गौरैया की पहचान दुर्लभ गौरैया के तौर पर की है. पीले गले वाली गौरैया या चेस्टनट-कंधे वाली पेट्रोनिया दक्षिण एशिया का प्रमुख पक्षी है. इसका वैज्ञानिक नाम जिम्नोरिस जैथोकोलिस है. यह जिम्नोरिस वंश की जीव वैज्ञानिक जाति से है. इन्वायरमेंट वारियर्स की उपाध्यक्ष अदिति रॉय ने बताया कि जल्द ही क्षेत्र का सघन अध्ययन कर, इस पक्षी को संरक्षित करने का व्यापक प्रयास किया जायेगा.
Also Read: BPSC 69th PT Exam: परीक्षा की तारीख घोषित, 45000 से ज्यादा पदों पर होगी बहाली, पढ़ें पूरी डिटेल
बर्ड मैन ऑफ इंडिया ने की थी खोज
पीले कंठ वाली गौरैया प्रजाति को सर्वप्रथम खोजने का श्रेय बर्ड मैन ऑफ इंडिया डॉ सालिम अली को जाता है. इसका नामकरण करने का काम मिलार्ड ने किया था. बिहार के बर्डमैन अरविंद मिश्रा ने सर्वप्रथम मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगल में इसे देखा था. पक्षियों के संरक्षण के लिए दुनिया की सबसे बड़ी संस्था इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड के पक्षी वैज्ञानिक डॉ पॉल डोनाल्ड और अरविंद मिश्रा ने अप्रैल 2014 में पूर्णिया के सिंधिया वन क्षेत्र में इस पक्षी को बिहार में प्रथम बार देखा था. फरवरी 2022 में जमुई के गरही डैम और जून 2022 में बक्सर के गोकुल डैम में देखा था, लेकिन इसकी संख्या काफी कम थी.
रिपोर्ट: जूही स्मिता