महागठबंधन और एनडीए के बीच विधानसभा में सीटों का फासला बेहद कम है. यही नाजुक फासला महागठबंधन के लिए सत्ता की संभावना बनाता है. वहीं दूसरी ओर, एनडीए सरकार के स्थायित्व के लिए चुनौती भी बन सकता है. एनडीए ने लोजपा को तोड़कर बिहार में बड़ी ”पॉलिटिकल सर्जरी” के संकेत जरूर दे दिये हैं. जानकारों के मुताबिक अब उसके निशाने पर महागठबंधन का कमजोर घटक दल कांग्रेस होगा. इससे महागठबंधन हाइ अलर्ट पर है.
प्रदेश के सियासी जानकारों के मुताबिक राज्य के अंदर राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का यह एनडीए का आक्रामक और प्रारंभिक पैतरा है. महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सतर्क हो गये हैं. दरअसल लोजपा की टूट से महागठबंधन के कान खड़े हो गये हैं. एनडीए की मंशा को भांपते हुए महागठबंधन के नेताओं ने एक दूसरे से वर्चुअल रूप में संवाद किया है़ दरअसल महागठबंधन में कांग्रेस विधायक दल सबसे नाजुक कड़ी कांग्रेस है, जिसको लेकर एनडीए में खासा उत्साहित दिख रहा है़
महागठबंधन के नेताओं को पता है कि अगर कांग्रेस के विधायक छिटके तो सत्ता पाने की महागठबंधनीय लालसा धरी की धरी रह जायेगी़ क्योंकि सत्ता प्राप्ति के लिए जरूरी विधायकों की संख्या की तुलना में एनडीए को कम बढ़त, बड़ी बढ़त में तब्दील हो जायेगी़ सीटों की इस खाई को पाटना फिलहाल पांच साल पाटना टेढ़ी खीर साबित हो जायेगा़ दरअसल एनडीए के घटक दलों को सत्ता की चाशनी छिटकने नहीं देगी़
फिलहाल महागठबंधन में राजद और वाम दल अटूट हैं. कांग्रेस की कथित रूप में कमजोर कड़ी को मजबूत बनाने के लिए महागठबंधन के नेता कांग्रेस आलाकमान से संपर्क में हैं. हालांकि प्रदेश कांग्रेस के नेता ताल ठोक कर एनडीए के खिलाफ आक्रामक नहीं दिख रहे हैं. इससे हाल ही में कांग्रेस टूटने की आयीं चर्चाओं को और बल मिल रहा है.
जानकारों के मुताबिक अगर एनडीए ने महागठबंधन में सेंध लगा दी तो न केवल वह विधानसभा में अपनी ताकत को संख्या बल के हिसाब से सुरक्षित स्थिति में ले जा पायेगा, वहीं इसके जरिये वह अपने ही छोटे-छोटे सहयोगी दलों की महात्वाकांक्षा पर भी ब्रेक लगा सकता है. दरअसल छोटे दलों के बड़े नेताओं के चुभने वाले बोल पर ब्रेक लगाने की उसकी मंशा भी सफल हो जायेगी.
Posted by: Avinish Kumar Mishra