पटना. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने जनता दल यू द्वारा केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थानों का दुरुपयोग के आरोप पर पलटवार करते हुए कहा है कि विधायिका को कमजोर करने वाले को कब से संविधान की चिंता होने लगी? देश में इमरजेंसी लगाकर संविधान का गला घोटने वाले कांग्रेस के साथ जदयू बिहार में सरकार में है. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों की राजनीतिक शुरुआत उसी कांग्रेस के विरोध में थी.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि लालू प्रसाद के कहने पर केंद्र की यूपीए सरकार ने वर्ष 2005 में रातों-रात राष्ट्रपति शासन लगवा दिया. बिहार में सरकार बनाने से रोक दिया गया था. राहुल गांधी ने सरेआम अध्यादेश के प्रारूप को फाड़कर कूड़ादान में फेक दिया. देशभर में विपक्षी सरकार वाले राज्यों में विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा देना कांग्रेस और यूपीए की सरकार में दिनचर्या में शामिल था. वहीं, उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में भाजपा के साथ जदयू को सरकार बनाने का जनादेश हुआ. मुख्यमंत्री ने इसे तोड़कर अन्य दलों के साथ महागठबंधन में सरकार बना लिया. क्या यह संविधान का अपमान नहीं था? संविधान और नैतिकता के आधार पर मुख्यमंत्री को नया गठबंधन में सरकार बनाने से पहले इस्तीफा देकर जनादेश प्राप्त करना चाहिए था.
विजय सिन्हा ने कहा कि उपमुख्यमंत्री द्वारा सदन के अंदर भ्रष्टाचारीयों को बचाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं सीबीआई, ईडी एवं आईटी को जमाई कहना संविधान का अपमान है. सजायाफ्ता भ्रष्टाचारी से गठबंधन कर मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद को सुशोभित करना क्या संविधान प्रतिष्ठा है? नेता प्रतिपक्ष का पद भी संविधान कि शक्ति से बना है और मंत्री स्तर का है. पर विधानसभा और सरकार इस पद के अवमूल्यन में लगी हुई है जो चिंता का विषय है. माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता एवं भारत की जनता द्वारा उन्हें मिल रहे स्नेह से घबराकर यह लोग अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं.