राजेश कुमार ओझा
पटना में विपक्षी एकता की बैठक से पहले हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा प्रमुख जीतनराम मांझी महागठबंधन का साथ छोड़ दिया था. सोमवार को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की दूसरी बैठक से पहले लंबे इंतजार के बाद चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा बन गए. चिराग का एनडीए में शामिल होने के साथ ही बिहार से एनडीए कुनबे में एक और नई पार्टी जुड़ गई. कांग्रेस, आरजेडी और जदयू बिहार में महागठबंधन का हिस्सा है. जबकि मुकेश सहनी को छोड़कर बचे सभी छोटे- छोटे दलों ने एनडीए का दामन थाम लिया है. जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की बात करें तो बिहार के करीब 20 फीसदी वोट पर इनकी अच्छी पकड़ है.
एनडीए के साथ फिलहाल दो हिस्से में बंटी लोजपा, जीतन राम मांझी की हम और राष्ट्रीय लोक जनता दल है.आज दोनों गठबंधन की बैठक हो रही है. महागठबंधन की बेंगलुरु में तो एनडीए की दिल्ली में बैठक हो रही है. इस बैठक में लोकसभा 2024 चुनाव को लेकर रणनीति बनेगी. कहा जा रहा है कि बिहार में इस दफा राजग और महागठबंधन के बीच सीधी चुनावी लड़ाई होगी. मांझी के महागठबंधन घटक दलों के साथ रहने तक संख्या के मामले में महागठबंधन राजग से आगे था. लेकिन, मांझी के साथ छोड़ने और चिराग के एनडीए में शामिल होने के बाद संख्या के मामले में एनडीए का गठबंधन महागठबंधन से ज्यादा है.
एनडीए से नीतीश कुमार के बाहर जाने के बाद से बीजेपी निरंतर यह प्रयास कर रही है कि उनके जाने से जो वोट की क्षति हुई है उसे कैसे दूर किया जाए. सूत्रों का कहना है कि इसको लेकर ही बीजेपी महागठबंधन के परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी के प्लान को ध्यान में रखते हुए नीतीश को छोड़कर अलग हुए बड़े नेता या फिर राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ने में लगी हुई है. अपने इस अभियान के तहत बीजेपी ने पहले नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को ‘वाई’ और ‘जेड’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान कर अपने साथ जोड़ा.
हालांकि मुकेश सहनी के साथ फिलहाल बात बनती नहीं दिख रही है. इसी कारण से दिल्ली में आज हो रही एनडीए की बैठक में मुकेश सहनी को निमंत्रण नहीं दिया गया. दोनों के बीच कुछ मुद्दों पर अभी भी पेंच फंसा है. जबकि केंद्र सरकार ने उन्हें भी वाई श्रेणी की सुरक्षा भी प्रदान कर अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया था. लेकिन सूत्रों का कहना है कि कुछ मुद्दे पर दोनों के बीच अभी बात नहीं बनी है. बहरहाल मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में अकेले ऐसा राजनेता हैं जो एनडीए और महागठबंधन में से किसी के साथ नहीं हैं. बीजेपी ने नीतीश कुमार के खास आरसीपी सिंह को भी अपने साथ जोड़ लिया है. नीतीश कुमार से अलग होने के बाद जीतन राम मांझी को तो बीजेपी ने अपने साथ जोड़ ही लिया है.
सीनियर पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि एनडीए की नजर बिहार के दलित और महादलित वोट बैंक पर है. यही कारण है कि लोजपा के दोनों गुट के साथ साथ बीजेपी जीतन राम मांझी को भी अपने साथ जोड़कर रखना चाहती है. क्योंकि राज्य में दलित- महादलित का वोट भी एक बड़ा वोट बैंक है. यह वोट करीब 16 फीसदी के आस पास है. इनमें 6 फीसदी के करीब पासवान हैं. रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग पासवान को बीजेपी ने अपने साथ जोड़ रखा है. प्रदेश के कुल वोट में महादलित की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है. इनमें भी छह फीसदी मुसहर हैं जिस जाति से जीतनराम मांझी आते हैं. मुसहर को मांझी का कोर वोटर माना जाता है. बिहार की एक दर्जन से अधिक सीटों पर दलित-महादलित निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन दलों के सहारे बीजेपी की कोशिश लोकसभा चुनाव में नीतीश-लालू की जोड़ी का व्यूह भेद 40 सीटों वाले राज्य में अधिक से अधिक सीटें जीतने की है.
बिहार में 26 प्रतिशत ओबीसी के वोट बैंक हैं. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा 14 प्रतिशत यादवों का है. इसके बाद 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है. कुर्मी और कुशवाहा वोट बैंक पर अभी तक नीतीश कुमार का एकाधिकार माना जाता रहा है. बीजेपी इसी वोट बैंक में सेंधमारी करने में लगी है. यही कारण है कि बीजेपी ने नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए पहले उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ जोड़ा. इसके साथ ही बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं की संख्या भी 26 फीसदी है. इसमें लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां आती हैं.
2005 के बाद से इनका बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ रहा है. बीजेपी ने इसमें सेंधमारी के लिए बिहार सीनियर नेताओं को लगाया है. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने मुकेश सहनी के सहारे अभी तक इस वोट बैंक पर डेरा डाल रही थी. लेकिन सहनी के साथ खटपट के बाद बीजेपी इसकी जिम्मेवारी घटक दल के ही किसी नेता को दे सकती है. बीजेपी का मानना है कि यह सब कुछ सफल हुआ तो नीतीश कुमार के जाने से एनडीए को जो वोट बैंक का नुकसान हुआ उसे पूरा कर लिया जा सकता है.
इधर, सीनियर पत्रकार लव कुमार मिश्रा का कहना है कि किसी दल को एक चुनाव में मिला वोट दूसरे चुनाव में भी पूरी तरह उसके पक्ष में चला जाए, ऐसा कम ही होता है. इसमें फेरबदल होता रहता है. फिर भी राजग अपने पुराने घटक दलों को जोड़कर आठ प्रतिशत और चिराग पासवान के पांच प्रतिशत वोटों को अपने साथ जोड़ने का जो प्रयास कर रही है, उससे बिहार में राजग, जेडीयू-आरजेडी की महागठबंधन को एक मजबूत टक्कर देने में सफल होगी.
बिहार में 20 फीसदी वोट बैंक उच्च जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ) का है. कांग्रेस के कमजोर होने के बाद से ये वोट बीजेपी के साथ जुड़ गया है. यह वोट बैंक करीब-करीब अब बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.