Bihar Politics: बिहार में फिर एक उपचुनाव का परिणाम सामने आ चुका है. कुढ़नी में भाजपा ने सीधे मुकाबले में जदयू को हराया है. पिछले तीन उपचुनावों को देखें तो भाजपा ने दो और महागठबंधन ने एक सीट पर जीत दर्ज की है. लेकिन अब बिहार की सियासत में वोट बैंक का ट्रेंड बदलता हुआ भी दिखने लगा है. कुढ़नी का परिणाम इसके लिए ताजा उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है जहां किसी जाति या धर्म विशेष को अपना वोट बैंक समझ लेना बड़ी भूल ही साबित हुआ है.
कुढ़नी में महागठबंधन ने कुशवाहा उम्मीदवार उतारा था. भाजपा ने वैश्य उम्मीदवार पर भरोसा जताया. वहीं मुकेश सहनी ने भूमिहार जाति से आने वाले नीलाभ कुमार को मैदान में ताल ठोकने उतारा तो AIMIM ने मुस्लिम कंडिडेट दिया. प्रमुख उम्मीदवारों में इन चार नामों को ही देखा गया. अब बात वोट बैंक की करें तो महागठबंधन ही नहीं बल्कि एनडीए को भी इस परिणाम ने सोच में जरूर डाला होगा.
बड़े दलों के लिए समर्पित रहे वोट बैंक में अब आसानी से सेंध लगने लगा है. अब यह दावा करना महंगा पड़ रहा है कि कोई जाति या धर्म विशेष का साथ उसी दल या उम्मीदवार के साथ रहेगा. ये संकेत इस तरह समझे जा सकते हैं कि भाजपा जहां सवर्णों को अपना वोट बैंक समझती रही है वहीं जब मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी ने सवर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारा तो करीब 10 हजार वोट नीलाभ कुमार के खाते में आ गये. इनमें सवर्ण वोटरों की भी बड़ी संख्या हो सकती है. वहीं मुस्लिम वोटरों को अपना वोट बैंक समझने वाली महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अभी ओवैसी की पार्टी AIMIM है.
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मुस्लिम वोटर भाजपा के बदले महागठबंधन के ही साथ मजबूती से रहे हैं. लेकिन जैसे ही ओवैसी की पार्टी AIMIM मैदान में उतरती है. महागठबंधन की राह मुश्किल होने लगती है. पहले गोपालगंज और अब कुढ़नी में AIMIM ने मुस्लिम समुदाय के कई वोटरों को अपनी ओर खींचा है. इसे महागठबंधन का सीधा नुकसान माना जा रहा है.
वहीं दलितों के वोट हासिल करने के लिए जहां बड़ी पार्टियां तमाम दांव पेंच लगाती रही है वहीं अब लोजपा की दस्तक से मजबूत वोट बैंक डायवर्ट होता भी नजर आता है. यही वजह है कि अब किसी जाति विशेष के वोट बैंक को अपना समझकर कोई बड़ा दल चैन की नींद नहीं सोता बल्कि उसे वोटर खिसकने का भय हमेसा रहता है.
Posted By: Thakur Shaktilochan