गुलशन कश्यप, जमुई.
हर अभिभावक अपने बच्चों को इस उम्मीद में विद्यालय भेजते हैं ताकि उनका बच्चा पढ़ लिख कर देश का भविष्य बने. पर अगर देश के उसी भविष्य के ऊपर हरवक्त एक अनदेखा संकट मंडराता रहे तो ये भला कैसे संभव हो. जिले के खैरा प्रखंड क्षेत्र के उत्क्रमित मध्य विद्यालय हरणी जाने वाले बच्चे रोजाना इसी खतरे के बीच रह रहे हैं. बच्चों को खाना तो विद्यालय में ही मिलता है, लेकिन खाने की थाली धोने के लिए उन्हें जानलेवा चढ़ाई करनी पड़ती है. इतना ही नहीं बच्चों को नदी के गंदे पानी में अपनी थालियों को साफ करना पड़ता है. विद्यालय में पानी की किल्लत होने के कारण बच्चों को यह सब करना पड़ रहा है.
बताते चलें कि उत्क्रमित मध्य विद्यालय हरणी में मध्याह्न भोजन योजना में बच्चों को खाना मिलने के बाद प्लेट साफ करने के लिए विद्यालय में पानी की सुविधा नहीं है. जिस कारण बच्चे नदी में अपनी प्लेट साफ करने जाते हैं. विद्यालय और नदी के बीच एक खड़ी चढ़ाई है. जिसमें पूरी तरह से नुकीले पत्थर है. कक्षा एक, दो और तीन में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी उन पत्थरों पर से होकर उतरते हैं और नदी में जाकर अपनी थालियां साफ करते हैं. फिर उन्हीं पत्थरों की खड़ी चढ़ाई से होकर वह वापस अपनी कक्षाओं में पहुंचते हैं.
पत्थरों की जो चढ़ाई है और उसकी जो स्थिति है वह इतनी खराब है कि बच्चों के चढ़ने उतरने के दौरान वह कभी भी दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं. उन्हें कोई गंभीर चोट आ सकती है या कोई दूसरी बड़ी अनहोनी घटना भी सामने आ सकती है. लेकिन न तो विद्यालय प्रबंधन और ना ही शिक्षा विभाग के द्वारा इस दिशा में आज तक कोई उचित प्रबंध किए गए हैं ताकि बच्चों को इन परिस्थितियों का सामना ना करना पड़े.
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बच्चों ने बताया कि स्कूल में 2 चापाकल हैं. जिनमें से एक खराब रहता है तथा दूसरे में कम पानी आता है. मध्याह्न भोजन के दौरान एक चापाकल पर विद्यार्थियों की भीड़ लग जाती है और इस कारण उन्हें अपनी प्लेट साफ करने के लिए नदी में जाना पड़ता है. अगर वह चापाकल पर लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतजार करेंगे तब तक कक्षाएं शुरू हो जाएगी और वह लेट हो जाएंगे. ऐसे में उन्हें पत्थरों से होकर ही जाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि पहले कई बार यहां पर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं और पत्थरों से चढ़ने और उतरने के क्रम में कई विद्यार्थी घायल भी हो चुके हैं. लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई.
बताते चलें कि जिस नदी में बच्चे थाली धोने जाते हैं, वह काफी गहरा है. अभी के मौसम में नदी में पानी नहीं होने के कारण तो खतरे की संभावना कम है, लेकिन बारिश के दिनों में जब नदी में अत्यधिक पानी होता है तो खतरे की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा उक्त नदी का इस्तेमाल आसपास के इलाकों में सिंचाई के लिए भी किया जाता है तथा अपर किउल जलाशय योजना के गरही डैम से भी नदी में पानी छोड़ा जाता है. उसी स्थिति में भी नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है तथा छोटे बच्चों के ऊपर संकट के बादल मंडराने लगते हैं.
बताते चलें कि उक्त विद्यालय में कुल 3 चापाकल लगाए गए हैं. जिनमें से दो पूरी तरह से खराब पड़ा है. एक तो अपना अस्तित्व खो चुका है और अब केवल उसके बोरिंग का पाइप ही नजर आता है. दूसरा चापाकल काफी समय से बंद है. कुल मिलाकर विद्यालय में एक चापाकल है जिस में भी पानी नहीं आता है. ऐसा नहीं है कि उक्त विद्यालय के लिए पानी की व्यवस्था नहीं की जा सकती है.
विद्यालय के 10 मीटर दूर में ही नल जल योजना की टंकी बनाई गई है. लेकिन उस पर पानी जमा करने के लिए लगायी गयी टंकी हवा का एक झोंका भी नहीं झेल सकी और वहीं पास ही में नदी में पड़ा है जो पूरी तरह से टूट भी चुका है. ऐसे में बच्चों को हो रही परेशानी के लिए न तो विद्यालय प्रबंधन और ना ही पंचायत जनप्रतिनिधियों ने भी कोई ठोस कदम उठाया है. जिस कारण बच्चों के ऊपर प्रतिदिन संकट मंडरा रहा है.
– हमने पेयजल की समस्या के लिए पूर्व में विभागीय पदाधिकारियों को लिखा था. लेकिन उनके द्वारा इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई. बच्चों को मजबूर होकर नदी जाना पड़ता है. घनश्याम मुर्मू, विद्यालय प्रभारी
पूर्व में मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं मिली थी. अब मामला सामने आया है और उसकी जांच कराई जाएगी. अगर ऐसा है तो मामले में ठोस कदम उठाए जाएंगे.
कपिल देव तिवारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी, जमुई
Posted By: Thakur Shaktilochan