दिग्गज मार्क्सवादी नेता कॉमरेड गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन, स्वतंत्रता सेनानी रहने के बावजूद नहीं ली कभी पेंशन
बिहार (Bihar) के वरिष्ठ वामपंथी नेता (senior cpi left leader) सीपीएम के राज्य सचिव और पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे गणेश शंकर विद्यार्थी (Ganesh shankar vidyarthi) का पटना (Patna) के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 99 साल के थे. जानकारी के अनुसार कई दिनों से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था.
बिहार (Bihar) के वरिष्ठ वामपंथी नेता (senior cpi left leader) सीपीएम के राज्य सचिव और पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे गणेश शंकर विद्यार्थी (Ganesh shankar vidyarthi) का पटना (Patna) के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 99 साल के थे. जानकारी के अनुसार कई दिनों से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था. दिसंबर में इलाज के बाद वो अस्पताल से घर आ गये थे, लेकिन, स्वास्थ्य दोबारा खराब होने के कारण फिर से पटना के एक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.
वहीं उन्होंने सोमवार रात अस्पताल में अंतिम सांस ली. जानकारी के अनुसार वो कोरोना से पीड़ित हो गये थे और उन्हें सांस लेने में परेशानी थी. वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व विधायक, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव एवं पोलित ब्यूरो के सदस्य गणेश शंकर विद्यार्थी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है.
उन्होंने कहा कि वे वामपंथी राजनीति के पुरोधा, स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रख्यात राजनेता थे. स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी के निधन से राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है. मुख्यमंत्री ने स्व. विद्यार्थी के पुत्र भास्कर शंकर से दूरभाष पर वार्ता कर उन्हें सांत्वना दी. मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है. गौरतलब है कि उनकी पत्नी का तीन वर्ष पूर्व ही निधन हो गया था.
12 वर्ष के उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तिरंगा फहराया
नवादा के पूर्व विधायक और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता गणेश शंकर विद्यार्थी की खबर सुनते ही शोक की लहर दौड़ गयी. इस मौके पर नवादा के सिरदला में शोक सभा आयोजित की गयी. इसकी अध्यक्षता कम्युनिस्ट नेता कामरेड दानी विद्यार्थी ने किया. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि नवादा के पूर्व विधायक, रजौली निवासी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव गणेश शंकर विद्यार्थी महज 12 वर्ष के उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान नवादा में अंग्रेजी सरकार के इमारत पर चढ़कर तिरंगा फहराया था.
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय एक साल जेल में रहे.1944 में एक जुलूस के कारण जेल गये. 1946 में कैदियों की रिहाई आंदोलन के कारण जेल गये.1948 में उनके संगठन को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था तब तीन साल तक जेल मे रहे. 1962 में करीब चार माह जेल में रहे. 1964 में सीपीआई से अलग सीपीएम अलग बनी तब नजरबंद रहे थे.
1965 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी पैरवी करने खुद गए थे तब गिरफ्तार कर लिए गए थे. इस बार ढाई साल तक जेल में रहे. स्वतंत्रता सेनानी रहने के बावजूद पेंशन तक नहीं ली. बिहार की राजनीति व कम्युनिस्ट आंदोलन में आपके अभूतपूर्व योगदान के लिए सदैव आपको याद किया जायेगा.
Posted By: Utpal kant