Video बिहार शराब कांड: 30 रुपये की एक गिलास शराब जान पर भारी, पीने के तीन मिनट बाद शुरू हुई परेशानी

बिहार शराब कांड: 30 रुपये की एक गिलास शराब जान पर भारी पड़ रही है. बताया जा रहा है कि गांव के किसी सुनसान इलाके में जाकर शराब की खेप रख देते हैं. वहीं अपने ही कुछ आदमियों को भेजकर शराब की डिमांड करने वाले बरातियों को सुनसान इलाके तक बुला लिया जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2022 1:07 PM

छपरा. श्मशान घाट, कब्रिस्तान, बरात वाले घर के आस-पास और कंस्ट्रक्शन साइट के नजदीक शराब के धंधेबाज शाम पांच बजे के बाद ही सक्रिय हो जाते हैं. कोड वर्ड ’10 रुपया में निमकी 50 रुपया में चिमकी’ के साथ तीन से चार मिनट में ही शराब की ग्लास दे दी जाती है. वहीं कई बार 20 से 30 रुपये का ग्लास भी दिया जाता है. विदित हो कि करीब 10 साल पहले गली मुहल्लों वह दियारा इलाकों में दो रुपया निमकी, पांच रुपया चिमकी के कोड वर्ड के साथ देशी शराब बेची जाती थी. आज उसी कोड वर्ड को शराबबंदी के बाद धंधेबाज इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं रोजाना शराब पीने वाले भली-भांति इस कोडवर्ड से परिचित होते हैं. शुक्रवार को सदर अस्पताल में बीमार होकर भर्ती हुए तरैया के मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि उसने 50 रुपये ग्लास शराब खरीदकर पी है.

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200 एमएल प्लास्टिक के ग्लास में बेचते हैं शराब

हालांकि बीमार होने के बाद उसे कुछ भी ठीक से याद नहीं आ रहा था. लेकिन उसने इतना जरूर कहा कि मशरक चिमनी के पास श्मशान घाट के नजदीकी जाकर उसने शराब पी थी. जो 32 मौतें हुई हैं. उसमें से 15 से अधिक लोगों ने बीमार अवस्था में यह बात कही थी कि मशरक यदु मोड़ के चिमनी के पीछे ही जाकर 30 से 50 रुपये में शराब खरीदी थी. यह शराब उन्हें 200 एमएल के प्लास्टिक के ग्लास में दी गयी. कुछ लोग पॉलिथीन में भी शराब लेकर घर आये थे. जरूरत के हिसाब से बदलता रहता है अड्डा : जरूरत के हिसाब से शराब के धंधेबाज बिक्री का अड्डा भी बदलते रहते हैं. पहले धंधेबाजों द्वारा पता कर लिया जाता है कि गांव में कहां बारात आने वाली है.

रात के अंधेरे में मजदूर से लेकर संभ्रांत भी आते हैं पीने

बारात लगने की घंटे पहले वह गांव के किसी सुनसान इलाके में जाकर शराब की खेप रख देते हैं. वहीं अपने ही कुछ आदमियों को भेजकर शराब की डिमांड करने वाले बरातियों को सुनसान इलाके तक बुला लिया जाता है. सदर अस्पताल में बीमार लोगों के साथ पहुंचे परिजनों ने बताया कि शराब पीने से भले ही मजदूर वर्ग के लोगों की मौत अधिक होती है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में जहां गुपचुप रूप से शराब बेची जाती है. वहां पीने वाले सिर्फ मजदूर ही नहीं बल्कि संभ्रांत घर के लोग भी होते हैं. कई टीनेजर भी चार पहिया वाहनों से गांव के सुदूर इलाकों में शराब खोजते पहुंचते हैं.

पीने के तीन मिनट बाद ही पेट में शुरू हो रहा दर्द

मशरक के यदु मोड़ के पास एक ही बस्ती के जिन पांच लोगों की मौत हुई है. वह सभी संभ्रांत परिवार के बताये जा रहे हैं. वहीं कुछ के घर में तो देशी शराब की पाउच भी बरामद हुई है. मुकेश मांझी व रघुनाथ महतो के परिजनों ने बताया कि बीमार होने से पहले उन दोनों ने कहा था कि शराब पीने के दो से तीन मिनट बाद ही पेट में तेज दर्द शुरू हो गया. आंख के आगे अंधेरा छाने लगा था. यह दोनों पहले भी गांव के किसी जगह पर जाकर शराब पीया करते थे. लेकिन उन्हें ऐसी समस्या कभी नहीं हुई थी.

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