पटना. बिहार की सबसे बड़ी समस्या रोजगार है. लाखों लोग हर एक साल दूसरे प्रदेश में रोजगार की तलाश में जाते हैं. लेकिन अपने राज्य में व्यापार लगाने में काफी बहुत पीछे रहते हैं. बिहार में संसाधन की कमी के साथ- साथ बिहार में रहने वाले लोग प्रदेश में छोटा कारोबार शुरू करने में कतराते हैं. इसके पीछे कई वजहें हैं. आइए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण वजहें..
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद रोजगार एक बड़ा मुद्दा बन गया है. हालांकि महागठबंधन सरकार इसको लेकर सक्रिय दिख रही है. फिर भी ये समस्या इतनी जल्द खत्म नहीं होने वाली है. इसका कारण बिहार में उद्योग की कमी है. दूसरे प्रदेश के लोग बिहार में उद्योग लगाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं. वहीं, बिहार के लोग उद्योग से ज्यादा नौकरी में रुचि दिखाते हैं. दूसरे प्रदेश में नौकरी करना ज्यादा सेफ समझते हैं. वे उद्योग में रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. प्रदेश में छोटे कारोबार को वे अपने प्रतिष्ठा से जोड़कर भी देखते हैं. इस वजह से ऐसे कारोबार से कतराते हैं.
बिहार के बड़े उद्योगपतियों की बात करें तो वो इकाई अंक में ही सिमट जाएंगे. उनको भी सरकार के तरफ से कोई ज्यादा सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती है. हालांकि बिहार के कई ऐसे लोग हैं जो दूसरे प्रदेश में जाकर बड़े उद्योगपती बन चुके हैं. लेकिन बिहार में इनका कारोबार नहीं के बराबर ही है. बिहार में इंडस्ट्रियल कल्चर नहीं होने के वजह से यहां नई शुरुआत करने से उद्योगपती घबराते हैं.
बिहार में अब भी सरकारी नौकरी करने वाले को ही सम्मान के नजर से देखा जाता है. समाज में इनको काफी प्रतिष्ठा मिलता है. यहां अभिभावक आज भी अपने बच्चों से सरकार नौकरी में करियर बनाने की चाह रखते हैं. उद्योग को आज भी यहां वो सम्मान नहीं मिल सका है जो दूसरे राज्यों में मिला है. इससे यहां के युवाओं में शुरू से ही उद्योग लगाने या उद्योगपति बनने की सोच सिमट जाती है. वहीं, इस क्षेत्र में पूर्व की सरकार भी कुछ काम नहीं की है. उद्योग के लिए यहां कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया गया. जिससे बिहार में रोजगार का मतलब धीरे- धीरे नौकरी ही समझा जाने लगा है. इस तरह बिहार के लोग नौकरी- पेशा में ही अपने आप को पूरी तरफ से ढाल चुके हैं.