आंबेडकर के जातिवाद विरोधी आंदोलन को बिहार स्टेट टेक्सट बुक ने बताया ‘महादलित सत्याग्रह ‘, शुरू हुआ विवाद
बिहार स्टेट टेक्सट बुक द्वारा प्रकाशित कक्षा आठ की किताब में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य डॉ योगेंद्र ने आरोप लगाया है कि डॉ भीमराव आंबेडकर ने 1927 में महाड़ सत्याग्रह आंदोलन के लिए महादलित सत्याग्रह शब्द का इस्तेमाल किया गया है.
बिहार स्टेट टेक्सट बुक द्वारा प्रकाशित कक्षा आठ के सामान्य अध्ययन की किताब में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप है. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य डॉ योगेंद्र पासवान ने आरोप लगाया है कि डॉ भीमराव आंबेडकर ने 1927 में महाड़ सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया, ताकि अछूतों के प्रति अपनायी गयी भेदभाव की नीति को समाप्त किया जा सके लेकिन बिहार सरकार के टेक्सट बुक पब्लिशिग काॅरपोरेशन ने किताब ‘अतीत से वर्तमान’ भाग तीन के अध्याय आठ में जातीय व्यवस्था की चुनौतियां वाले चैप्टर में महाड़ सत्याग्रह के जगह पर महादलित शब्द का प्रयोग कर संपूर्ण अनुसूचित जाति समाज को अपमानित करने का काम किया गया है. उन्होंने महादलित शब्द को ही असंवैधानिक करार दिया.
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बता दें कि 20 मार्च 1927 को डॉ. भीमराव आंबेडकर ने मानव मात्र की स्वतंत्रता, मानवीय मूल्यों एवं सामाजिक अधिकारिता की स्थापना के लिए महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया. इसी कारण इस दिन को भारत सरकार के निर्देशानुसार सामाजिक अधिकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. 19 मार्च 1927 को डॉ.आंबेडकर के नेतृत्व में महाड़ में विशाल जनसभा का आयोजन किया. अगले दिन 20 मार्च को डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में लगभग 5 हजार से अधिक पुरुषों और महिलाओं ने चावदार तालाब तक मार्च किया और पानी पीकर मानवीय समानता और अधिकारिता के कानून को लागू करवाने का प्रयास किया. भारतीय समाज पर बाबा साहेब आंबेडकर के इस सत्याग्रह का बड़ा प्रभाव पड़ा था. हालांकि, इससे ब्राह्मणों को काफी एजराज था.