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माइक्रो फानेंस लैंडिंग में बिहार देश में अव्वल, तमिलनाडु को छोड़ा पीछे

बैंकों का लोन देने में आनाकानी करना बिहार के लोगों के लिये भारी पड़ रहा है. खेती-किसानी और छोटे दुकानदार और उद्यमियों को लोन के लिये नन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) के पास जाना पड़ रहा है. जिस कारण से राज्य में एनबीएफसी से लोन लेने वालों की संख्या और राशि दोनों में बढ़ोतरी हो रही है.

पटना. बैंकों का लोन देने में आनाकानी करना बिहार के लोगों के लिये भारी पड़ रहा है. खेती-किसानी और छोटे दुकानदार और उद्यमियों को लोन के लिये नन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) के पास जाना पड़ रहा है. जिस कारण से राज्य में एनबीएफसी से लोन लेने वालों की संख्या और राशि दोनों में बढ़ोतरी हो रही है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान छोटे कर्ज में काफी तेजी आई है. खासकर कोविड के बाद छोटे कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ी है. अब इस मामले में बिहार सबसे आगे निकल गया है. एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि अभी पूरे देश में छोटी राशि के सबसे ज्यादा कर्ज बिहार में लिए गए हैं.

भारत में सबसे अधिक सूक्ष्म उधार लेने वाला राज्य बन गया बिहार

बिहार तमिलनाडु को पीछे छोड़ते हुए भारत में सबसे अधिक सूक्ष्म उधार लेने वाला राज्य बन गया है. मार्च 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछली तिमाही की तुलना में मार्च तिमाही बिहार की माइक्रोफाइनेंस (एमएफआइ) उधारी 48,900 करोड़ रुपये थी, जो कुल पोर्टफोलियो का 14.5 प्रतिशत थी. इस अवधि में तमिलनाडु की एमएफआइ उधारी 46,300 करोड़ रुपये रही, जो कुल बकाया का 13.7 प्रतिशत था.

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बिहार में एनबीएफसी के एक एकाउंट पर औसत लोन 27,200 रुपये

बिहार में एनबीएफसी के एक एकाउंट पर औसत लोन 27,200 रुपये और तमिलनाडु में 26,600 रुपये है.देश के कुल छोटे लोन पोर्टफोलियो में बैंक से अधिक हिस्सेदारी माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं का है. माइक्रोफाइनेंस संस्थानों ने बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी जारी रखी, जो कुल एमएफआई ऋण का 37.3 प्रतिशत है. इस श्रेणी में बैंकों की हिस्सेदारी 33.1 प्रतिशत रही, जबकि लघु वित्त बैंकों की हिस्सेदारी 16.6 प्रतिशत है.

एनबीएफसी लोन लेने से लाभ और हानि

आमतौर पर एनबीएफसी से किसान,छोटे दुकानदार और प्रतिदिन वस्तु लोकर बेचने वालों को छोटी राशि का लोन देती है. लेकिन इसकी ब्याज दरें बैंक की तुलना में काफी अधिक होता है. बैंक यदि छोटेकारोबारी को 10-12% ब्याज दर के हिसाब से लोन देता है तो एनबीएफसी 20-28% की दर से ब्याज वसूलता है. फिर भी गांव में साहुकारों द्वारा वसूली जा रही ब्याज दर की तुलना में कम है.

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इस तरह के ऋण में अधिक रहते हैं ब्याज दर

अर्थशास्त्री डॉ.सुधांशु कुमार का कहना है कि तात्कालिक सन्दर्भ में अच्छी खबर है क्यूंकि इस तरह के कर्ज की खासियत यह है कि ये बिना किसी कोलेटरल के दिए जाते हैं. और कम आय वाले परिवारों, विशेषकर महिलाओं के लिए वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. हालांकि इस तरह के ऋण में ब्याज दर अधिक रहते हैं.

समय पर होने लगे ज्यादा पेमेंट

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पूरे देश में अभी छोटे कर्ज का कुल बकाया 3.37 लाख करोड़ रुपये पर है और इसमें 17.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में एक अच्छी बात यह सामने आई है कि संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार आया है, मतलब लोग अब कम डिफॉल्ट कर रहे हैं और समय पर पहले की तुलना में ज्यादा भुगतान मिल रहे हैं. 90 दिनों से ज्यादा के बकाये जहां दिसंबर 2022 में 2 फीसदी पर थे, वे अब कम होकर मार्च 2023 के अंत में 1.1 फीसदी पर आ गए हैं.

साल भर में इतना बढ़ा कर्ज

पूरे देश के 3.37 लाख करोड़ रुपये के छोटे कर्ज के कुल बकाये में अभी बिहार की हिस्सेदारी 14.5 फीसदी है, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है. वहीं 13.7 फीसदी हिस्सेदारी के साथ तमिलनाडु दूसरे नंबर पर है. बिहार में छोटी रकम के कर्ज में 13.5 फीसदी की तेजी आई है. यह तेजी ठीक एक साल पहले यानी मार्च 2022 के स्तर की तुलना में है.

टॉप-10 में ये राज्य भी शामिल

छोटे कर्ज लेने के मामले में देश के टॉप-10 राज्यों में बिहार और तमिलनाडु के अलावा उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और केरल भी शामिल हैं. इस तरह के पूरे देश के कर्ज में इन 10 राज्यों की हिस्सेदारी 85 फीसदी है. अगर सभी कर्जदारों के ऊपर कुल बकाये का औसत निकाल जाए, तो बिहार इस मामले में भी सबसे आगे है. रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कर्जदारों के ऊपर औसत बकाया 27,200 रुपये है, जबकि तमिलनाडु में यह औसत 26,600 रुपये का है.

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