वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे आदिवासी बहुल इलाके में बाघ के पंजों का निशान व गतिविधि देखने को मिला है. आदिवासी बहुल इलाके के लोग बाघ की दहशत से काफी भयभीत हैं. लिहाजा वन विभाग द्वारा 40 कैमरे लगाकर टाइगर टेकर्स द्वारा तीन शिफ्ट में 24 घंटे निगरानी कराई जा रही है. अभी भी बाघ हरनाटांड़ जंगल के किनारे ही भ्रमण कर रहा हैं. हरनाटांड़ के बीडीसी प्रेम मांझी ने कहा कि बैरिया काला सरेह में गुरुवार की शाम मोतिराजी गांव निवासी दया मांझी व भुददूर धांगड़ भैंस चरा रहे थे. इसी दौरान उन्हें अपनी ओर बाघ आता दिखा. जिसके बाद वे शोर मचाते हुए भागने लगे. इसकी सूचना से ग्रामीण दहशत में हैं.
क्षेत्र में बुधवार से रविवार की सुबह तक रुक रुक लगातार बारिश हो रही है, फिर भी वनवर्ती गांवों से बाघ से खतरा बना है. हरनाटांड़ वन क्षेत्र के रेंजर रमेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि बारिश में भी वनकर्मियों की टीम गश्ती कर रही है. ग्रामीणों द्वारा सरेह में बाघ के होने की सूचना मिली. जिसके बाद वन कर्मियों की टीम को अलर्ट कर दिया गया है. ग्रामीणों से भी आग्रह किया जा रहा है कि वे सरेह व जंगल की ओर नहीं जाएं. खेतों में भी अकेले जाने से परहेज करें.
वन विभाग के अधिकारियों ने वन प्रमंडल दो के पांचों वन क्षेत्र के वन कर्मियों की टीम को अलर्ट कर दिया है. साथ ही वन विभाग द्वारा ग्रामीणों को जंगल के तरफ जाने से मना किया जा रहा है. हरनाटांड़ वन क्षेत्र के बैरिया काला गांव के पास जंगल से सटे इलाके में दो दर्जनों वन कर्मियों की टीम कैंप कर रही है. डीएफओ नीरज नारायण ने बताया कि ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग ठोस कदम उठा रहा है. इसके तहत 24 घंटे वनकर्मियों की तीन टुकड़ी बैरिया काला गांव के पास कैंप कर रही है. जिसमें मदनपुर, हरनाटांड़, चिउटाहा और वाल्मीकिनगर की 25 सदस्यीय टीम लगातार डे शिफ्ट में पेट्रोलिंग कर रही है.
वीटीआर के वन संरक्षक सह क्षेत्र निदेशक डॉ. नेशामणी के. ने बताया कि बाघ की निगरानी के लिए काफी पुख्ता इंतजाम किया गया हैं तथा और भी किया जा रहे हैं. इसके लिए बैरिया काला गांव के सरेह से सटे जंगल के विभिन्न पेड़ों पर करीब 40 कैमरे लगाए गये हैं और भी कैमरे लगाए जाने की योजना हैं. ताकि बाघ की गतिविधियों के बारे में जानकारी मिल सके और ये चिन्हित किया जा सके कि कौन सा बाघ है जो इस तरह की घटना को अंजाम दे रहा है. वहीं दूसरी ओर ड्यूटी के दौरान वनकर्मियों को पटाखे भी उपलब्ध कराए गए हैं. ताकि पटाखों की आवाज से बाघ सरेह व गांव का रुख नहीं करे. फिलहाल बाघ की गतिविधि जंगल के किनारे ही मिल रहे हैं.