नालंदा. एक और बेटी ने पर्वतारोहण का रिकॉर्ड बना कर नालंदा का नाम रोशन किया है. उसका नाम अर्पणा है.
वह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल के समीप का गांव मेघी की निवासी है.
20 वर्षीया अर्पणा ने केदारकंठ की सबसे ऊंची चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर नेशनल रिकॉर्ड बनाया है. केदारकंठ की चोटी पर ध्वजारोहण करने वाली वह नालंदा की पहली बेटी है.
शरद ऋतु और पौष मास की ठिठुरती, हाड़ कंपा देने वाली ठंड, बर्फबारी, बर्फ से ढके पर्वतीय मार्ग को लांघते हुए करीब 20 किलोमीटर सफर तय कर वह 30 दिसंबर को केदारकंठ के शिखर पर पहुंची.
उसने वहां राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर इस उपलब्धि को अपने नाम कर लिया. केदारकंठ की चोटी की ऊंचाई समतल भूमि से करीब 12,500 फुट है. इसकी इस सफलता से नालंदा एक बार फिर गौरवान्वित हुआ है.
वह माउंट एवरेस्ट पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर नालंदा और बिहार का नाम रोशन करने का इरादा रखती है. पिता के निधन के बाद माता गीता कुमारी ने उसकी पढ़ाई-लिखाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
बेटी को खूब पढ़ाया-लिखाया और खेल में भी आगे बढ़ाया है. अर्पणा बचपन से ही होनहार, लगनशील और जुनूनी है. कहती है कि वह केवल अपने माता, स्व पिता और भाई-परिवार की ही नहीं, बल्कि नालंदा का नाम देश और दुनिया में रोशन करना चाहती है.
अर्पणा राष्ट्रीय स्तर की कई खेलकूद प्रतियोगिता में शामिल हो चुकी है. वह कराटे में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतने का रिकाॅर्ड बना चुकी है.
खो-खो प्रतियोगिता में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया की वह चैंपियन रही है. राज्यस्तरीय अनेकों प्रतियोगिता में उसने सफलता हासिल की है. 20 साल की अल्प आयु में ही वह 50 से अधिक मेडल जीत चुकी है.
माता गीता कुमारी अपनी लाडली बेटी, भाई विक्रम पटेल और चचेरे भाई राकेश राज अपनी लाडली बहन की इस उपलब्धि से बेहद खुश हैं.
वे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. परिवार के लोग चाहते हैं कि उसकी उड़ान को पंख लगे. केदारकंठ उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोविंद वन्य जीव अभ्यारण्य में है. इसकी ऊंचाई साढ़े 12 हजार फुट है. यह पूरा ट्रैक लगभग 20 किलोमीटर का है.
वह अब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी हिमालय के माउंट एवरेस्ट को फतह करने की तमन्ना मन में पाल रखी है. वह खेल में ही अपना कैरियर बनाना चाहती है.
राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बनकर वह नालंदा और बिहार समेत राष्ट्र का नाम रोशन करना चाहती है. परिवार की माली हालत अच्छी नहीं है.
इसलिए वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग नहीं ले पा रही है. अर्पणा को मुकाम हासिल करने के लिए सामाजिक और सरकारी सहयोग की दरकार महसूस की जा रही है.
Posted by Ashish Jha