फर्जी रसीद कटाकर भू-माफिया रैयती और सार्वजनिक भूमि पर ठाेक रहे दावा

जिले में जमीन के मूल्य जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं. वैसे-वैसे जमीन के कागजतों में फर्जीवाड़ा भी बढ़ रहा है. भू-माफिया अंचल कार्यालय के बाबू से मिलकर फर्जी रसीद कटाकर रैयती और सार्वजनिक भूमि पर भी दावा ठोक रहे हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 8, 2024 8:55 PM

बिहारशरीफ.जिले में जमीन के मूल्य जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं. वैसे-वैसे जमीन के कागजतों में फर्जीवाड़ा भी बढ़ रहा है. भू-माफिया अंचल कार्यालय के बाबू से मिलकर फर्जी रसीद कटाकर रैयती और सार्वजनिक भूमि पर भी दावा ठोक रहे हैं. नये जमीन सर्वें कार्य शुरू होने से इसमें और भी इजाफा हुआ है. कई जगह रेलवे, गौरक्षिणी, वन, जवाहर नवोदय विद्यालय, पथ निर्माण, हवाई अड्डा, पीएचईडी की जमीन तक का कागज बनाकर अपना-अपना दावा कर रहे हैं. जिसमें कई विभागों ने न्यायालय से आदेश प्राप्त कर गलत म्यूटेशन को रद्द करवाया है. कुछ की सुनवाई पर है. विभागीय सूत्र बताते हैं कि पहला भू-सर्वेक्षण अंग्रेजों के राज में 1890 में शुरू हुआ था, जो लगभग 1920 तक चला. इस सर्वें को आधार मानकर नया सर्वें किया जा रहा है, जिसमें कई तकनीकी समस्याएं हैं. इस दौरान कई लोगों के बीच रैयती जमीन की खरीद-बिक्री हुई. जिसके कागजात नई पीढ़ी के पास नहीं है. इस कारण सर्वें कर्मी लगान रसीद को मालिकाना हक नहीं मान रहे हैं. बताया जाता है कि वर्ष 1903 के सर्वें में राजगीर के रेलवे, गौरक्षिणी, वन, जवाहर नवोदय विद्यालय, पथ निर्माण, पीएचईडी की जमीन रैयत की थी, जिसके वंशज वर्तमान में यहां नहीं रहते हैं. लेकिन नये सर्वे में अधिग्रहित जमीन के मालिक वंशवाली बनाकर उसपर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं. एेसे मालिकाना हक वाले कुछ लोगों ने तो कुछ जमीन के प्लॉट को दोबारा किसी अन्य के हाथों में बेच दिया है. इसकी सूचना मिलते कई खरीदार चिंतित हैं कि उनकी जमीन पर कहीं कोई दावा न ठोंक दें. हालांकि सूत्र बताते हैं कि कई विसंगतियों को देखते हुए वर्ष 2011 में बिहार में विशेष सर्वे की योजना बनी. उसके बाद बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त अधिनियम 2011 एवं इसकी नियमावली 2012 तैयार हुई और अधिसूचित की गई. इस विशेष सर्वेक्षण की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसमें अमीन की ओर से पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले जरीब और कड़ी के बदले आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल हो रहा है.

जमीन का फर्जीवाड़ा इस तरह हुआ

केस-01

राजगीर दांगी टोला निवासी अशोक कुमार बताते हैं कि उनके पूर्वज वर्ष 1931 में अराजी एक एकड़ 48 डिसमिल की जमीन खरीदी थी, जिसका रजिष्ट्री कागज व रसीद भी उनके पास है, लेकिन कुछ दिन से उस जमीन का एक व्यक्ति ऑनलाइन रसीद कटावा कर उसपर अपना दावा कर रहा है.

केस-02

राजगीर दांगी टोला के ही योगेंद्र कुमार बताते हैं कि वर्ष 1956 में उनके वंशज एक एकड़ से अधिक जमीन खरीदे थे, जिसपर मकान बनाकर रह रहे हैं, जिसका कुछ हिस्सा रेलवे द्वारा वर्ष 1958 में अधिग्रहण किया गया था, जिसका अवार्ड भी उनके दादा को मिला. बेची हुई जमीन का रसीद उनके वंशज के द्वारा कटाया जा रहा है. बावजूद एक जमीन ब्रोकर के साथ मिलकर इन फ्लैटों का ऑललाइन रसीद को दिखाकर बिक्री कर रहे हैं.

केस-03

थाना नंबर 122 खाता नंबर 309 खतरा नंबर 940 की जमीन, जो वर्ष 1906 से बिहार श्री गोरक्षिणी की है. जिस पर गत करीब दस वर्ष पूर्व किसी ने अपना दावा ठोक दिया. हालांकि इसकी सुनवाई अंतिम चरण में है. फिर भी सार्वजनिक संपत्ति और शहर के बीचोबीच खरबों की जमीन पर कई नजर डाले हुए हैं. इसी प्रकार राजगृह गोरक्षिणी की स्थिति है. थाना संख्या 485, खाता नंबर 332 और खसरा नंबर 5020 के एक बहुत बड़ा हिस्सा अतिक्रमित के शिकार हो गया है. दो वर्ष पूर्व सरकारी जमीन को गलत ढंग से म्यूटेशन करने के आरोप में राजगीर के तत्कालीन सीओ की गिरफ्तारी भी हो चुकी है.

केस-04

जिले में करीब 4711 हेक्टेयर में वन क्षेत्र है. जिसे 29 लाख आबादी के लिए शुद्ध हवा और बेहतर पर्यावरण नहीं कहा जा सकता है. उसपर भी अलग-अलग क्षेत्र में 72 हेक्टेयर वन 17 व्यक्तियों ने गलत ढंग से अवैध कब्जा कर लिया है. हालांकि 10 वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर वन विभाग ने एकंगसराय, इस्लामपुर पांच से सात डिसमिल वापस पाया है और अन्य की सुनवाई भी अंतिम चरण में है. इसके अतिरिक्त आठ अलग-अलग सरकारी जमीन की गलत म्यूटेशन रदद् करायी गयी है और करीब एक दर्जन से अधिक की सुनवाई चल रही है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version