खुले में फेंके गये मेडिकल कचरा से संक्रमण का खतरा

शहर में हर गली में निजी क्लीनिक और जांच घर चल रहे हें, जिसमें कुछ को छोड़ अधिकांश के पास मेडिकल कचरा निष्पादन की व्यवस्था नहीं है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 10, 2024 9:54 PM

बिहारशरीफ. शहर में हर गली में निजी क्लीनिक और जांच घर चल रहे हें, जिसमें कुछ को छोड़ अधिकांश के पास मेडिकल कचरा निष्पादन की व्यवस्था नहीं है. नतीजतन प्रतिदिन क्लीनिक और जांच घर से निकलने वाले मेडिकल कचरा को खुले आम गली-सड़क या नदी-नाले में फेंके जा रहे हैं. कहीं -कहीं तो आम कूड़े के ढेर में मेडिकल कचरों को फेंक दिया जाता है. जहां-तहां खुले में मेडिकल कचरे फेंकने से संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है. इसके संपर्क में आने से आम इंसान से लेकर मवेशी तक संक्रमण का शिकार होते हैं. साथ ही खुले में फेंके गये मेडिकल कचरा से हवा, जल और धरती भी दूर्षित होते हैं. आये दिन कहीं -कहीं से मेडिकल कचरा को खुलेआम जलाने की भी सूचना मिलती है, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है. फिर भी अब तक प्रशासन से लेकर क्लीनिक व जांच घर संचालक मेडिकल कचरे निष्पादन के प्रति गंभीर नहीं दिख रहा है. इतना ही नहीं चिकित्सीय संस्थानों में मेडिकल कचरा के लिए अलग-अलग डस्टबीन रखने का प्रावधान है, जो कुछ संस्थानों को छोड़ अधिकांश के पास यह सुविधा भी नहीं देखने को मिलता है. सुबह-सुबह कई चौक-चौराहों पर कूड़े उठाने वाले सफाई कर्मी को आम कूड़े के साथ मेडिकल कचरा भी उठाते हुए देखने को मिलता है. डॉक्टर कॉलोनी, रामचंद्रपुर, मंगलास्थान, पैनी पोखर, सोहसराय समेत शहर की गलियों में चल रहे अधिकांश चिकित्सीय संस्थानों व जांच घरों से प्रतिदिन करीब सौ किलो से अधिक मेडिकल कचरे निकलते हैं, जिसमें कई संक्रमण व गंभीर बीमारी से संबंधित कचरे होते हैं, जिसे निष्पादन में भी सतर्कता नहीं बरती जाती है. नदी-नाले के सहारे खेत तक पहुंच रहे मेडिकल कचरे- शहर के आस-पास बने नदी-नाले में मेडिकल कचरे फेंके जाते हैं, जो बारसात के पानी आने पर बहकर सोहसराय, सोहडीह, वियावानी जैसे क्षेत्रों के खेतों तक पहुंच जाती है. सब्जी उत्पादक रामजी महतो बताते हैं कि नाले के पानी के साथ चिकित्सीय संस्थानों द्वारा फेंके गये बड़े-बड़े मेडिकल कचरे खेत तक पहुंच जाते हैं. इसमें यूज किये गये सूई व गलब्स तक होते हैं. अलग-अलग डस्टबीन रखना होता है जरूरी- चिकित्सीय संस्थानों में पीला, काला, लाल, नीला आदि विभिन्न प्रकार के डस्टबीन रखना जरूरी होता है. पीला डस्टबीन में सर्जरी से कटे-फटे शरीर के भाग, खून लगी रुई, घाव की पट्टी डाल जाता है. लाल डस्टबीन में इलाज या जांच के दौरान यूज किये गये गलब्स, आइबी सेट, जांच सामग्री आदि खरे जाते हैं. यूज सूई, कांच के टुकड़े, प्लास्टिक बैग आदि नीले डस्टबीन में डाले जाते हैं. हानि करने वाली दवाई, बेकार रसायन, जले हुए शारीरिक पदार्थ आदि काले डस्टबीन में फेंके जाते हैं. इन डस्टबीन को प्लास्टिक से पूरी तरह कवर करना होता है. इसके बाद इस कचरे को विशेष मशीन से नष्ट करना होता है. क्या कहते हैं अधिकारी- चिकित्सीय संस्थान संचालन के पहले मेडिकल कचरा निस्तारण के लिए बायोमेडिकल से लाइसेंस लेना होता है. इसके बाद भी यदि कोई खुले में मेडिकल कचरा फेंकते हैं तो वह गलत करते हैं. ऐसे संस्थानों को चिन्हित कर उनके खिलाफ पहले नोटिस दिया जाएगा. -श्यामा राय, सिविल सर्जन, नालंदा

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