अजातशत्रु ने कोशिश की, अंग्रेजों ने बरसाए गोले, फिर भी कोई नहीं खोल सका खजाने से भरी बिहार की इस गुफा को
Bihar Tourism: बिहार में वैसे तो कई रहस्यमयी और ऐतिहासिक जगहें हैं, लेकिन राजगीर में स्थित सोन भंडार गुफाएं, जिन्हें सोन भंडार के नाम से भी जाना जाता है, रहस्यों से भरी हैं. कहा जाता है कि इस गुफा में सोने का खजाना छिपा है, लेकिन आज तक कोई भी इसे खोल नहीं पाया है.
Bihar Tourism: बिहार के राजगीर में स्थित सोन भंडार गुफा इतिहास और रहस्यों से भरी एक अद्भुत जगह है. कहा जाता है कि इस गुफा में सोने का खजाना छिपा है, जो अगर बाहर आ जाए तो भारत की समृद्धि का प्रतीक बन सकता है. इस गुफा का दरवाजा खोलने की कई कोशिशें की गई लेकिन आज तक कोई सफल नहीं हो पाया. अंग्रेजों ने भी यहां के खजाने को लूटने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली. गुफाओं पर मिले शिलालेखों के अनुसार, इसका निर्माण तीसरी या चौथी शताब्दी के आसपास हुआ था और माना जाता है कि इसका संबंध जैन धर्म से है. हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि ये गुफाएं मौर्य साम्राज्य (319 से 180 ईसा पूर्व) के समय की भी हो सकती हैं.
खजाने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं
सोन भंडार गुफाओं से कई रोमांचक कहानियां भी जुड़ी हैं. कहा जाता है कि इस गुफा का निर्माण 2500 साल पहले हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार और उनकी पत्नी ने करवाया था. ऐसा माना जाता है कि रानी ने अपने गहने और सोना इसी गुफा में छिपाया था. कहा जाता है कि अजातशत्रु ने कई बार इस खजाने को खोजने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा. इस गुफा का रहस्य जानने के लिए अजातशत्रु ने सम्राट बिम्बिसार को भी कैद कर लिया था. इस गुफा का रहस्य केवल बिम्बिसार को ही पता था, जो उनके साथ ही दफन हो गए थे.
अंग्रेजों ने भी कोशिश
वायु पुराण के अनुसार इस गुफा का संबंध राजा जरासंध से भी है. जरासंध ने 100 राज्यों को हराकर उनकी संपत्ति इसी गुफा में छिपाई थी. यह खजाना जरासंध की मौत के बाद दफना दिया गया था. इस खजाने की खबर अंग्रेजों को भी लग गई थी. उन्होंने गुफा का दरवाजा तोड़ने के लिए तोप के गोले दागे, लेकिन चट्टान नहीं टूटी. कहा जाता है कि आज भी गुफा पर उन गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं.
क्या है गुफा का इतिहास?
सोनभंडार की मुख्य गुफा आयताकार है जिसमें नुकीली छत और त्रिकोणीय गेट है. जो की बराबर की गुफाओं से मिलती जुलती है. गुफा के प्रवेश द्वार पर गुप्त लिपि में एक शिलालेख अंकित है. जिसके अनुसार, गुफा का निर्माण एक जैन मुनि वैरदेव द्वारा किया गया था. इस वजह से गुफा की तिथि चौथी सदी ईस्वी का माना जाता हैं. हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह केवल गुफा के पुनर्निर्माण का संकेत हो सकता है, और इसका मूल निर्माण मौर्यकाल में हुआ होगा.
मौर्यकाल के समय की हो सकती है गुफा
कुछ इतिहासकार गुफा के निर्माण को मौर्यकाल से जोड़ते हैं. इसकी संरचना और त्रिभुजाकार प्रवेश द्वार बाराबर गुफाओं के समान हैं, जो अशोक काल (260 ईसा पूर्व) की मानी जाती हैं. इसलिए, यह भी संभव है कि सोन भंडार गुफाएं भारत की पहली कृत्रिम गुफाओं का पूर्ववर्ती रूप रही हों.
कैसे पहुंचें
- हवाई मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा पटना में जेपीएन इंटरनेशनल एयरपोर्ट है.
- रेल मार्ग से: राजगीर में रेलवे स्टेशन है जो पटना, कोलकाता और नई दिल्ली से जुड़ा हुआ है.
- सड़क मार्ग से: राजगीर सड़क मार्ग से पटना, नालंदा, गया, पावापुरी और बिहारशरीफ से जुड़ा हुआ है.
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