बिहारशरीफ. जिले के निजी व सार्वजनिक तालाबों से मांग की सिर्फ 50 प्रतिशत ही मछलियों का उत्पादन हो रहा है. जिले में सलाना औसतन 60 से 65 मीट्रिक टन मछली की खपत है. जिसमें लोकल स्तर पर 31 से 33 हजार मीट्रिक टन सालाना मछली की उत्पादन हो रही है. इसमें सार्वजनिक जलस्त्रोत से करीब 13 हजार मीट्रिक टन और निजी तालाबों से 20 हजार मीट्रिक टन मछली बाजारों में पहुंच रही हैं. यानि सार्वजनिक जलस्त्रोत से 153.84 प्रतिशत अधिक निजी तालाबों में मछली उत्पादन हो रही है. गत दो-तीन सालों में यहां निजी तालाबों का निर्माण काफी तेजी से हुई है. अधिकांश सार्वजनिक जलस्त्रोत रखरखाव और उचित देखरेख के अभाव में मछली उत्पादन लायक नहीं रह गये हैं. इसलिए जिलेवासियों को बंगाल की मछलियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. हालांकि गत कुछ वर्षों से मछली पालन के क्षेत्र में किसानों की रुचि तेजी से बढ़ी है. जिसका परिणाम है कि गत तीन वर्षों में 10 से 12.5 प्रतिशत मछली उत्पादन में वृद्धि हुई है. फिर भी मांग के 50 प्रतिशत मछली का उत्पादन ही अब तक लोकल तालाब से हो रहे हैं. फिलहाल लोकल तालाब में ग्रास कॉर्फ मछली की उत्पादन काफी होने लगी है, जो पटना, जहानाबाद, शेखपुरा, नवादा तक जाती है. लेकिन कीमत में सस्ता होने के कारण बंगाल की मछली स्थानीय बाजार में अपनी पकड़ बनाये हुए हैं. सरमेरा के मछली उत्पादक रामबाबू बताते हैं कि लोकल तालाब का जिंदा ग्रास कॉर्फ 180 से 200 रुपये प्रति किलो बिकता है. वहीं बंगाल की बर्फ वाली मछली 80 से 100 रुपये प्रति किलो यहां के बाजारों में बिक रही है. इसी प्रकार रोहु व नैनी व अन्य लोकल मछली 200 से 220 रुपये किलो तक बिकती है, लेकिन बंगाल की बर्फ वाली मछली 140 से 160 रुपये किलो बिक रही हैं. सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा से खत्म हो रहे सार्वजनिक तालाब – पोखर. जिला मत्स्य विभाग के पास कुल 828 तालाब हैं, जिस जलक्षेत्र का 2040 हेक्टेयर हैं, लेकिन मछली उत्पाद, पानी ठहराव, अतिक्रमण आदि कारणों से 471 तालाबों का ही बंदोबस्ती नहीं हो सका है. 1079 हेक्टेयर के 471 अबंदोबस्त मत्स्य विभाग की सूची से धीरे-धीरे दूर होती जा रही है. प्रतिवर्ष मत्स्य विभाग को सार्वजनिक जलस्त्रोत के बंदोबस्ती से करीब 70 लाख रुपये राजस्व के रूप में आमदनी होती है. फिर भी सार्वजनिक तालाबों के प्रति प्रशासन गंभीर नहीं है. सबसे अधिक स्थिति शहरी क्षेत्र के आस-पास के तालाबों का है, जहां नाले का गंदा पानी तालाब को विषैला कर रहा है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश सार्वजनिक तालाब-पोखर में नल-जल व गलियों का पानी गिर रहा है. बिंद के जलकर सहयोग समिति के मंत्री संजय जमादार बताते हैं कि सार्वजनिक तालाब-पोखर का सीमांकन के अभाव में लगातार उसपर भू-माफिया अपनी कब्जा बढ़ाते जा रहे हैं. 50 फीसदी सरकारी तालाबों में तो मछली पालन ही नहीं हो रहा हैं. इसके भी कई कारण हैं. वर्षों से तालाब की मिटटी जांच नहीं होना, गांव में नल-जल और शहर में नाली व शौचालय का गंदा पानी, अतिक्रमण, कूड़ा व मकानों का मलवा, पूरे साल पर्याप्त पानी का अभाव आदि कारण सार्वजनिक तालाब-पोखर की अस्तित्व समाप्त कर रहा है. खासकर शहरी क्षेत्रों के आस-पास के तालाबों का पानी में मछली पनपने लायक नहीं रह गया है. तालाब देखरेख के अभाव में बर्बाद हो रहे हैं. जिसे देखने के लिए प्रशासन में बैठे लोगों के पास समय नहीं है. जिसके कारण अब धीरे -धीरे तालाब व पोखर अपनी पहचान खो रहे हैं. सामाजिक स्तर पर भी हो रही उपेक्षा तालाब व पोखर की यह स्थिति सामाजिक स्तर पर उपेक्षा होने के कारण अधिक हो गयी है. पहले लोग छठ पर्व व यज्ञ हवन, दुर्गा पूजा, व गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा, आदि धार्मिक आयोजन में तालाब व पोखर का उपयोग करते थे. छठ तालाब के किनारे करने के कारण गांव के लोग इसकी साफ -सफाई व जीर्णद्धार पर ध्यान देते थे. लेकिन अब तो घर में किसी बर्तन में पानी रख लोग छठ कर ले रहे है. किसी भी धार्मिक आयोजन में पोखर का जल उपयोग करते थे. शादी -ब्याह में तालाब की पूजा करते थे. पूजा करने के पीछे इसके संरक्षण की अवधारना थी, जो अब खत्म हो गयी है. जिससे धीरे -धीरे तालाब का उपयोग हमारे जीवन से समाप्त होते जा रहे हैं. सीओ के पास होना चाहिए सार्वजनिक तालाब-पोखर का आंकड़ा- सांस्कृतिक विरासत के हिसाब से तालाब व पोखर गांव-शहर की समृद्धि के द्योतक होते माने जाते हैं, लेकिन सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा के कारण आज गांव से लेकर शहर तक पोखर व तालाब इस तरह से गायब हो रहे हैं कि वहां इसके निशान भी नहीं मिल रहे हैं. सरकारी उपेक्षा इस कदर है कि तालाब व पोखर के आंकड़े भी सही नहीं है. जिले में गैर सरकारी आंकड़ों व प्रत्येक गांव में एक -दो तालाब होने की लोगों की बातें मानें तो जिले में करीब साढ़े चार हजार से पांच हजार तक तालाब व पोखर होने चाहिए, लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहे हैं. मत्स्य विभाग के आंकड़ों को देखें तो जिले में मात्र 828 तालाब ही हैं. जिसे राजस्व तालाब भी कह सकते हैं. जिन तालाबों में मछली पालन नहीं होता है. इसका आंकड़ा जिले में मत्स्य विभाग के पास नहीं है. यह आंकड़ा जिले में सभी सीओ के पास होना चाहिए. सूत्र बताते हैं कि वर्ष 1952 के पहले तक सभी सार्वजनिक तालाब-पोखर व जलस्त्रोतों अंचल स्तरीय अधिकारी सीओ के पास हुआ करता था. वर्ष 1952 में सरकार ने आदेश दिया था कि सभी सार्वजनिक जलस्त्रोत को मत्स्य विभाग को सौंपी जाये. तब तत्कालीक सीओ ने सूची बनाकर चरणबद्ध मत्स्यविभाग को सौंपने की पहल की. लेकिन पूरी सावर्जनिक तालाब-पोखर-जलस्त्रोत को अब तक मत्स्य विभाग को नहीं सौंपी गयी है. मछलियों का नाम- रोहु, भाकुर, नैन, बुआरी,लपची, कांटी, भुन्ना, भुन्नचटटी, गोल्ही, बीघट, कॉमन कॉर्फ, सिल्वर कॉर्फ, ग्रास कॉर्फ, सौरा, सौराठी, सिंघही, मांगुर, कबई, टेंगरा, गैंची, रेवा, सूहा, छही, झिंगा, इचना, चेचरा, मारा, पोठी, गरैई, गरचुन्नी, कौआ माछ, कोतरी, डेढ़बा, ढलई, भुल्ला, चेंगा, भौरा, चल्हा, हुर्रा, चन्ना, लटटा, कुरसा, दरही, बिसांढ़ी, बाघी, पतासी, सिसरा, गागर, भगना, चोन्हा, बेलौनी, बचबा, बमच्छ, गुर्ता, मुसियाहां, पथलचटटा, हिलसा, अन्हैई, बामी जिले में प्रखंडवार तालाबों की संख्या नालंदा जिले के सार्वजनिक जलस्त्रोत की संख्या और रकवा प्रखंड-सार्वजनिक जलस्त्रोत-रकवा बिहारशरीफ-91तालाब-157.75 हेक्टेयर सिलाव-22तालाब-87.75 हेक्टेयर अस्थावां-55तालाब-200.82 हेक्टेयर बिंद-33तालाब-89.94 हेक्टेयर सरमेरा-42तालाब-205.65 हेक्टेयर चंडी-61तालाब-156.35 हेक्टेयर नगरनौसा-54तालाब-129.11 हेक्टेयर थरथरी-22तालाब-43.07 हेक्टेयर हिलसा-31तालाब-27.77 हेक्टेयर गिरियक-25तालाब-95.52 हेक्टेयर नूरसराय-47तालाब-78.81 हेक्टेयर रहुई-48तालाब-98.62 हेक्टेयर हरनौत-77तालाब-247.93 हेक्टेयर एकंगसराय-71तालाब-113.11 हेक्टेयर इस्लामपुर-51तालाब-60.08 हेक्टेयर बेन-30तालाब-108.94 हेक्टेयर राजगीर-20तालाब-32.61 हेक्टेयर परवलपुर-22तालाब-92.59 हेक्टेयर करायपरसुराय-20तालाब-8.53 हेक्टेयर कतरीसराय-6तालाब-9.22 हेक्टेयर टोटल-828तालाब-2040.56 हेक्टेयर क्या कहते हैं अधिकारी- किसानों को मछली उत्पादन क्षेत्र में लाने के लिए कई योजनाएं चलायी जा रही है. गत तीन वर्षों में मछली उत्पादन में करीब 10 से 12.5 प्रतिशत उत्पादन बढ़ी है. वर्ष 2020 से अब तक 200 नये तालाब बनाये गये हैं, जिसका रकवा करीब 82 हेक्टेयर हैं. सार्वजनिक तालाबों में भी मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम चल रहा है, जो कुछ दिनों में इसका असर दिखने लगेगा. -शंभू कुमार, जिला मत्स्य पालन पदाधिकारी, नालंदा
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