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उद्घाटन के आठ महीने बाद ही पावापुरी के पोस्टमार्टम हाउस में लगा ताला

भगवान महावीर आयुर्विज्ञान संस्थान पावापुरी अस्पताल में पोस्टमार्टम सेवा के उद्घाटन के आठ महीनों बाद ही पोस्टमार्टम सेवा को ग्रहण लग गया .

गिरियक : भगवान महावीर आयुर्विज्ञान संस्थान पावापुरी अस्पताल में पोस्टमार्टम सेवा के उद्घाटन के आठ महीनों बाद ही पोस्टमार्टम सेवा को ग्रहण लग गया . पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के साथ सहयोगी स्वास्थ्य कर्मी स्टाफ की कमी के कारण पावापुरी मेडिकल कॉलेज में दो महीना से पोस्टमार्टम सेवा बंद हैं. 14 अप्रैल 2011 को सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पावापुरी में वर्द्धमान आयुर्विज्ञान संस्थान की नींव रखी थी. मुख्यमंत्री को अपनी इस सोच को धरातल पर उतारने में करीब सात साल लगे. जिसके बाद 562 करोड़ की लागत से पूर्णत वातानुकूलित तथा पूरी तरह से हाईटेक पावापुरी मेडिकल कालेज एंड अस्पताल में इलाज प्रारंभ हो गया . हालांकि ओपीडी और आईपीडी की सेवा की तो शुरूवात हो गई . लेकिन पोस्टमार्टम की सुविधा 7 वर्षों के बाद बहाल हुई . इसके बाद प्रशासन सहित स्थानीय लोगों के लिए बिहारशरीफ सदर अस्पताल के दौड़ लगाने से निजात मिली. लेकिन पोस्टमार्टम की उद्घाटन के मात्र आठ महीनों के बाद ही ग्रहण लग गया . स्टाफ की कमी के कारण पोस्टमार्टम हाउस में ताला जड़ दिया गया. फिलहाल 2 महीनो से शव अंतपरीक्षण की सेवा पूर्णत बाधित हैं. पोस्टमार्टम की सेवा बाधित होने से मजबूरन पीड़ित के परिजन को शव का अंत्यपरीक्षण के लिए सदर अस्पताल बिहारशरीफ जाने की विवशता फिलहाल बरकरार है. स्टाफ की कमी के कारण यहां ताला लटका हुआ मिलेगा. सबसे बड़ी समस्या तब होती है जब किसी हादसे का शिकार हुआ परिवार शव का पोस्टमार्टम कराने बिहारशरीफ जाता है जिसके लौटने तक गांव में शव का इंतजार करते लोगों का दुख दोगुना हो जाता है. जिसकी चिंता प्रशासन या फिर सरकार को करनी चाहिए. इस बाबत जब अधीक्षक डॉ. अरुण कुमार सिन्हा से पूछा तो उनका जवाब था कि उनके पास पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर तो उपलब्ध है .लेकिन अन्य सहयोगी स्वास्थ्य कर्मी नहीं रहने के कारण से पोस्टमार्टम चालू नहीं हो पा रहा है, बाकी के सभी संसाधन उपलब्ध है. हालांकि इसके लिए विभाग को लिखा भी गया है कि अगर पोस्टमार्टम सहयोगी स्वास्थ्य कर्मी की व्यवस्था हो जाए तो फिर पोस्टमार्टम पावापुरी में ही संभव हो सकेगा.

एनाटोमी की पढ़ाई कर रहें मेडिकल विद्यार्थियों को हो रही असुविधा

इस मेडिकल कॉलेज में सत्र 2016 से मेडिकल के पढ़ाई चल रही है. पहले 100 सीट की मान्यता थी 5 वर्ष बाद यहां 120 सीट स्वीकृत है . प्रत्येक सत्र में 120 मेडिकल छात्र- छात्रा नामांकित है. यानी मौजूदा समय में कुल 580 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं . साथी पावापुरी मेडिकल कॉलेज में विभिन्न विषयों के पीजी की पढ़ाई भी चल रही है. चिकित्सीय शिक्षा में पोस्टमार्टम विद्यार्थियों के लिए अहम रोल निभाता है . फॉरेंसिक मेडिसिन दायरा अब काफी बढ़ चुका है और शोध के साथ-साथ मेडिकोलीगल शोध में इसका अहम रोल है . एमबीबीएस विद्यार्थियों के लिए पोस्टमार्टम की व्यवस्था अनिवार्य हैं . डेड बॉडी से मेडिकल पर छात्र एनाटॉमी की पढ़ाई करते हैं इसके माध्यम से ही उन्हें सल्य प्रक्रिया यानी ऑपरेशन सहित शरीर के आंतरिक अंगों व उसकी क्रियो से मेडिकल के छात्र परिचित होते हैं पूर्व में 7 वर्षों तक यहां के छात्र दूसरे अस्पताल जाकर एनाटॉमी की पढ़ाई करते थे. पोस्टमार्टम नहीं होने से विद्यार्थियों को चोट की रिपोर्ट 100 परीक्षा जीवित व्यक्ति की उम्र का अनुमान यौन उत्पीड़न के शिकार व्यक्ति की रिपोर्ट समेत कई सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है.

बाहरी शरीर की जांच के बाद होती है आंतरिक शरीर की जांच

मेडिकल विद्यार्थियों को पढ़ाई के दौरान मृतक व्यक्ति के पोस्टमार्टम में मौत की मुख्य वजह का पता लगाने के साथ मरने के पश्चात् आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त, अथवा रोगग्रस्त, मृतक के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान के हेतु शरीर की परीक्षा, अथवा शव परीक्षा करना की तमिल मेडिकल विद्यार्थियों को दी जाती है. रोग उपचारक शव परीक्षा के द्वारा ही रोग की प्रकृति, विस्तार, विशालता एवं जटिलता के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं पोस्टमार्टम के दो प्रमुख पार्ट होते हैं. पहले पार्ट में बाहरी शरीर की जांच की जाती है, जिसके बाद दूसरे पार्ट में शरीर के अंदर जांच की जाती है. इसके लिए पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर शव को सिर से लेकर पेट तक चीर देते हैं. पोस्टमार्टम करने के दौरान आंतरिक अंगों की भी जांच की जाती है, जिसके लिए उन्हें बाहर भी निकालना पड़ता है. पोस्टमार्टम के बाद सभी अंगों को उनकी जगह पर रखकर शव को सिल दिया जाता है.

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