विकसित भारत के लिए संस्कृति, परंपरा और भाषा का प्रचार जरुरी : राज्यपाल
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा भारतीय ज्ञान परंपरा सभी विषयों को स्पर्श करती है भारतीय ज्ञान परंपरा को साथ लेकर ही 2047 में विकसित भारत की कल्पना की जा सकती है.
राजगीऱ राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा भारतीय ज्ञान परंपरा सभी विषयों को स्पर्श करती है भारतीय ज्ञान परंपरा को साथ लेकर ही 2047 में विकसित भारत की कल्पना की जा सकती है. लेकिन स्वभाषा घर से दूर होती जा रही है. विदेशी भाषा घर- घर में बोली जाने लगी है. इसी तरह शहर से गांव तक अंग्रेजी मीडियम स्कूल के बोर्ड लग गये हैं. नालंदा विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय नालंदा ज्ञानकुंभ का उद्घाटन करते हुये उन्होंने यह कहा. राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर, पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर ज्ञानकुंभ का उद्घाटन रविवार को किया गया. राज्यपाल ने कहा कि नालंदा भारतीय ज्ञान परंपरा की आदिभूमि है. नालंदा ज्ञानकुंभ में विकसित भारत @ 2047 : भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान समय स्व के जागरण का समय है. उन्होंने कहा कि 2047 भारत के आजादी का शताब्दी वर्ष होगा. शताब्दी वर्ष आने में करीब 25 साल का समय है. विकसित भारत बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्व भाषा, स्व संस्कृति, स्व परंपरा को जागृत करने की जरुरत है. विकसित भारत का सपना केवल भौतिक विकास नहीं, बल्कि स्व का आग्रह है. हमलोगों को सबसे पहले अपने भारतीय उत्पादों को सुरक्षित करने के साथ खरीदना होगा. तभी भारत का स्व का जागरण संभव होगा. राज्यपाल ने अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया है. उन्होंने स्व शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि हमें अंग्रेजी को नहीं, बल्कि स्व भाषा को शिक्षा के रूप में लाने की जरूरत है. भारत सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि सोने का शेर बनेगा. — वेद कालीन है भारतीय संस्कृति समारोह के विशिष्ट अतिथि सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि भारतीय संस्कृति वेद कालीन है. यहां की संस्कृति बहुत पुरानी है. भारत की संस्कृति काफी समृद्ध रही है. देश फिर से विश्वगुरु कैसे बने इस विषय पर गहन चिंतन मंथन होनी चाहिये. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उसके पुस्तकालय में 90 लाख पुस्तकें थीं. उन्होंने कहा कि भारत कई सौ वर्षों तक गुलाम रहा है. इसीलिए इसकी संस्कृति और भाषा पर हमले किये गये हैं. उसने हमारी संस्कृति और भाषा को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया गया. गंगा प्रसाद ने कहा कि 2047 तक भारत विकसित और आत्म निर्भर बने इसके लिए हम सभी को कार्य करना पड़ेगा. उन्होंने फिर से नालंदा की प्राचीन शिक्षा पद्धति और ज्ञान परंपरा को लौटाने पर बल दिया।विद्यार्थी आत्मनिर्भर बने, यह शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए. मनुष्य, मनुष्य बन सकें. इस पर हम सभी को विचार करना होगा. भारत ही एक ऐसा देश है जो शांति का संदेश देता रहा है. –ढ़ाई हजार साल पुरानी है भारतीय ज्ञान परंपरा मुख्य अतिथि उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने देश की परंपरा और भाषा को बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि ढ़ाई हजार साल पुरानी भारत की ज्ञान परंपरा है. उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने के लिए और फिर से भारत को सोने की चिड़िया बनाने के लिए लोगों को भारतीय परंपरा को अपनाना चाहिए. उन्होंने कहा 90 फ़ीसदी मोबाइल मेक इन इंडिया की है. सम्राट चौधरी ने कहा 17 बार सोमनाथ मंदिर को लूटने के साथ भारतीय संस्कृति को भी नष्ट किया गया है. पहले दुनिया में लोग नालंदा ज्ञान के लिए आते थे. इसलिए 2006 में नालंदा विश्वविद्यालय बनाने की परिकल्पना तय की गई. 19 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया. शिक्षा को हम पूरी तरीके से अपने ज्ञान में लाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में लोकप्रिय हुए हैं, जो भारत की एक नई तस्वीर प्रस्तुत करता है. बिहार के स्थानीय भाषा में भी मेडिकल की पढ़ाई होने लगी है. — देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव एवं मुख्य वक्ता डॉ अतुल कोठारी ने कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष बताते हैं कि लोग कई देशों से यहां पढ़ने के लिए आते थे. लेकिन आज स्थिति उसके विपरीत है. उन्होंने कहा यहां 49 हजार विदेशी पढ़ने के लिए आ रहे हैं लेकिन लाखों की संख्या में विदेशों में पढ़ने जा रहे है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से देश की शिक्षा बदलेगी. अंग्रेजी गांवों तक फैलती जा रही है, जिसे हम सभी को समझ कर अपनी मातृभाषा आधारित शिक्षा पर विचार की आवश्यकता है. भारतीय ज्ञान परंपरा में कोई फुल स्टॉप नहीं है. भारतीय ज्ञान परंपरा एकत्व का संदेश देती है, क्योंकि दुनिया में भारत ही वसुधैव कुटुंबकम् का विचार देता रहा है. भारतीय ज्ञान परंपरा में पहले व्यवहार की बात होती है. फिर सिद्धांत की बात होती है. यहीं नई शिक्षा नीति में समाहित है. — फरवरी में प्रयागराज में होगा महा ज्ञानकुंभ ज्ञानकुंभ के संयोजक डॉ राजेश्वर कुमार ने कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने शिक्षा में भारतीयता को लेकर कार्य किया है. भारतीय ज्ञान परंपरा में सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों को शामिल किया गया है. चार जगहों पर न्यास की ओर से ज्ञान कुंभ हो रहा है. वे सभी ज्ञान के स्थल रहे है. चारों ज्ञान कुंभ के आयोजन के बाद प्रयागराज में सात, आठ और नौ फरवरी को महा ज्ञानकुंभ का आयोजन होना तय है. जिस प्रकार आदि गुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की है, उसी प्रकार यह ज्ञान कुंभ भी एक कड़ी है. अतिथियों का स्वागत नालंदा विश्वविद्यालय के अंतरिम कुलपति प्रो अभय कुमार सिंह ने किया और नालंदा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो कृष्णचन्द्र सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन किया. — कार्यक्रम में इनकी भी रही उपस्थिति न्यास के राष्ट्रीय संयोजक ए विनोद, सुरेश गुप्ता, संजय स्वामी, प्रो आलोक चक्रवाल, प्रो नीलांबरी दवे, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी, जेपी विवि के कुलपति प्रो परमेंद्र कुमार वाजपेयी, बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो दिनेश चंद्र राय, नालंदा खुला विश्वविद्यालय के अंतरिम कुलपति प्रो संजय कुमार, कुलपति प्रो जवाहर लाल, नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सिद्धार्थ सिंह, कुलसचिव प्रो रमेश प्रताप सिंह परिहार, डॉ रणविजय कुमार, डॉ आलोक सिंह, अजय यादव, दयानंद मेहता, प्रांत संयोजक डॉ संदीप सागर, आशुतोष कुमार सिंह, प्रो शंभू शरण शर्मा, डॉ बिंकटेश्वर चौधरी, डॉ पंकज कुमार, डॉ आदित्य कुमार आनंद सहित सैंकड़ों लोग उपस्थित थे.
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