पराली जलाने के मामले में 38 किसानों का पंजीयन ब्लॉक
सख्त हिदायत के बावजूद पराली जलाने से बाज नहीं आने वाले किसानों के खिलाफ अब जिला कृषि विभाग ने कठोर कदम उठाया है.
बिहारशरीफ. सख्त हिदायत के बावजूद पराली जलाने से बाज नहीं आने वाले किसानों के खिलाफ अब जिला कृषि विभाग ने कठोर कदम उठाया है. एेसे किसानों को चिंहित करने का काम तेजी से शुरू कर दिया गया है. विभाग की टीम गांव,कसबों व खेतों तक पहुंच रही है और फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों ( पराली) जलाने वाले किसानों की पहचान कर कार्रवाई शुरू कर दी है. अब तक जिले के 38 किसान कार्रवाई की जद में आ गये हैं. चिंहित किसानों के पंजीयन को जिला कृषि विभाग ने ब्लॉक कर दिया है. योजनाओं के लाभ से होंगे वंचित:पराली जलाने वाले किसान कृषि विभाग की योजनाओं के लाभ उठाने से वंचित होंगे. जिन 32 किसानों के पंजीयन ब्लॉक किये गये हैं. वे सब किसान तीेन साल तक योजनाओं का लाभ अब नहीं उठा पायेंगे. यानी की कृषि विभाग की किसी तरह की लाभदायक योजनाओं से लाभान्वित नहीं पाएंगे. अतैव जिले के किसान अब भी सजग हो जायें. खेतों में फसलों की कटाई के बाद अवशेषों की कदापि नहीं जलायें. नहीं तो चिंहित होने पर उक्त किसानों की तरह भी कार्रवाई की जद में आकर योजनाओं के लाभ से वंचित न हो जायें.
सबसे अधिक राजगीर के 32 किसान आये कार्रवाई की गिरफ्त में
जिला कृषि विभाग ने पराली जलाने के आरोप में जिले के 38 किसानों पर कार्रवाई की है. जिसमें से सबसे अधिक राजगीर प्रखंड के 32 किसान शामिल हैं. इसके अलावा एकंगरसराय प्रखंड क्षेत्र के एक, करायपरशुराय प्रखंड के एक , नूरसराय प्रखंड अंतर्गत तीन व परवलपुर प्रखंड के एक किसान पर कार्रवाई की गाज गिरी है. जिला कृषि विभाग की टीम इन दिनों जिले के हरेक प्रखंड क्षेत्र में घूम रही है. टीम पराली जलाने वाले किसानों की पहचान कर सूची बनाकर जिला कृषि विभाग को उपलब्ध कराने में लगी है. टीम की जांच रिपोर्ट के आधार पर संबंधित किसानों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जा रही है.
पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में होती ह्रासजिला कृषि विभाग के पदाधिकारियों का कहना है कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया मर जाते हैं. जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है. फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं पराली के धुएं से पर्यावरण भी प्रदूषित हो जाता है. जमीन के लिए आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. अवशेष को जलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है. जिसके कारण फसल उत्पादन घटता है. एक टन फसल के अवशेष जलने से लगभग 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड , 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड तथा 2 किलोग्राम सल्फर आइऑक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलता है , जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
अविनाश कुमार,उप परियोजना निदेशक,आत्मा ,नालंदा
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है