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फिर आया शहर का एक्यूआई खराब होने का मौसम

बिहार के प्रदूषण और वायु की खराब गुणवत्ता की चर्चा अक्सर पूरे देश में होती रहती है. कभी बिहारशरीफ शहर के प्रदूषण व खराब वायु गुणवत्ता की चर्चा भी सूर्खियों में रही थी, तब शहर का एक्यूआई 400 के पार चला गया था.

बिहारशरीफ. बिहार के प्रदूषण और वायु की खराब गुणवत्ता की चर्चा अक्सर पूरे देश में होती रहती है. कभी बिहारशरीफ शहर के प्रदूषण व खराब वायु गुणवत्ता की चर्चा भी सूर्खियों में रही थी, तब शहर का एक्यूआई 400 के पार चला गया था. उस वक्त भी गर्मी का मौसम था. फिर से गर्मी का मौसम है और स्थिति व परिस्थिति भी वहीं है. ऐसे में शहरवासियों को फिर से वहीं स्थिति झेलने का डर सता रहा है. वैसे तो गुरुवार को शहर का एक्यूआई 128 रिकॉर्ड किया गया, जिसे ज्यादा खराब नहीं कहा जा सकता है, लेकिन परिस्थिति ऐसी है कि थोड़ी लापरवाही सेहर का एक्यूआई खतरनाक स्थिति में पहुंचने में तनिक भी देर नहीं लगेगी. शहर में जगह-जगह चल रहे निर्माण कार्य, सड़क के किनारे जहां-तहां जमा मिट्टी के ढ़ेर व सड़कों पर बिछी रेत की वजह से शहर का एक्यूआई खराब होने में देर नहीं लगेगी. नगर निगम प्रशासन ने शहर व उसके आसपास चल रहे निर्माण कार्यों के संवेदकों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे निर्माण स्थल पर लगातार पानी का छिड़काव करते रहें. इसके असर से शहर का एक्यूआई फिलहाल कंट्रोल में बना हुआ है. इसमें थोड़ी सी भी शिथिलता बरतने पर सब गुड़ गोबर हो सकता है.

एक्यूआई वायु की गुणवत्ता मापने का एक पैमाना है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अगर 50 से नीचे है तो वहां की हवा स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. 50 से 100 एक्यूआई के बीच की संतोषजनक, 100 से 200 के बीच संतुलित, 200 से 300 के बीच खराब, 300 से 400 के बीच बहुत ही खराब तथा 400 से ऊपर एक्यूआई वाली हवा खतरनाक हो जाती है. यह स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है. एक्यूआई लेवल बढ़ने की कई वजहें हैं. ठंड के मौसम में वातावरण में नमी बढ़ने व धूलकण के उड़ने से वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है. गर्मी के दिनों में ये धूलकण वायुमंडल में बिखर जाते हैं. धूलकण उड़कर घरों में, बरामदे में, छतों पर जमा होते रहते हैं.

गर्मी के मौसम में सिल्ट धूलकण बनकर हवा में फैलने लगता है. इस मौसम में थर्मल इनवर्जन की वजह से गर्म हवा ऊपर जाने लगती है और ठंडी हवा नीचे आने लगती है. जो धूलकण वायुमंडल में ऊपर होता है वह नीचे आने लगता है, इससे धुंध छाने लगता है और जब नीचे से धूल उड़ती है तो वह नहीं फैल पाने के कारण स्थिर होने लगती है.

प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं जो मानव निर्मित होते हैं. लोगों में प्रदूषण को लेकर अभी भी उतनी जागरूकता नहीं है. पर्यावरणविद डॉ. अशोक कुमार बताते हैं कि ‘‘पेड़ों की कटाई, शहर के अंदर कचरे को जलाना, सड़क-पुल या भवन निर्माण आदि में निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं करना, निर्माण सामग्रियों का बिना ढंके परिवहन भी उन वजहों में शामिल हैं, जिनसे वायु गुणवत्ता सूचकांक में खतरनाक स्तर तक वृद्धि होती है.”””””””””””””””” गीले और सूखे कचरे को अलग करना तो दूर लोग यहां वहां हर तरह के कचरे को फेंक देते हैं. गाड़ियों के प्रदूषण को लेकर भी लापरवाही बरती जाती है. शहरों की तंग गलियां तथा डीजल से चलने वाली गाड़ियों पर निर्भरता प्रदूषण बढ़ाने वाले कारक हैं. बड़ी संख्या में निर्माण कार्य हो रहे हैं, लेकिन साइट को ग्रीन कपड़े से कवर करने में कोताही बरती जाती है. सड़कों पर खुली जगहों में निर्माण सामग्री पड़ी रहती है, जो अंतत: वायुमंडल में धूलकण की मात्रा ही बढ़ाती है.

बिहारशरीफ शहर का एक्यूआई लेवल 400 के पार होने पर तत्कालीन नगर आयुक्त ने तो साफ कहा था कि निर्माण कार्यों की वजह से ही इसमें बढ़ोतरी हुई है. वर्तमान नगर आयुक्त शेखर आनंद ने बताया कि शहर व इसके आसपास चल रहे निर्माण कार्य स्थल पर लगातार पानी का छिड़काव करने का निर्देश दे दिया गया है.

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