17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी

सिवान बिहार में जन्में जंग बहादुर पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी की व्यास शैली में गायन-कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिले व राज्य का मान बढ़ा चुके हैं.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: इस साल भारत अपनी स्वतंत्रता का 75वां स्वर्णिम स्वतंत्रता का वर्षगांठ मना रहा है, और इसे नाम दिया गया है आज़ादी का अमृत महोत्सव. इस महोत्सव में हम उन सभी वीरों को याद कर रहे हैं जिसने किसी ना किसी तरह देश की आजादी में अपना कीमती योगदान दिया था. इसी क्रम में ऐसे कई माटी के लाल भी हैं जिन्हें हम या तो भूल गए या समय ने याद नहीं रखा. लेकिन आज जब मौका है अमृत महोत्सव का तो, एक ऐसे ही माटी के लाल की कहानी हमें जरूर पढ़नी चाहिए. यह कहानी है सिवान जिले के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गाँव के रहने-वाले तथा रामायण, महाभारत व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक-गायक जंग बहादुर सिंह की.

बिहार में सिवान जिले के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के रहने-वाले तथा रामायण, महाभारत व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक-गायक जंग बहादुर सिंह साठ के दशक का ख्याति प्राप्त नाम रहा है. लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रौशन करने-वाले व्यास शैली के बेजोड़ लोक-गायक जंगबहादुर सिंह आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं. उन्होंने उस दौर में अपने जोश भर देने वाले गीतों को गाकर ना जाने कितने युवाओं को देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को प्रेरित किया. इस कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल खाने में भी डाला, लेकिन उनके देशभक्ति के जज्बे को कभी रोक नहीं पाए.

3B0Ed66E E8A5 432C B38F 20C5A91F4Ec6
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 7
बुलंद आवाज के मालिक थे जंग बहादुर

10 दिसंबर, 1920 ई. को सिवान, बिहार में जन्में जंगबहादुर पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी की व्यास शैली में गायन-कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिले व राज्य का मान बढ़ा चुके हैं. जंग बहादुर के गायन की विशेषता यह रही कि बिना माइक के ही कोसों दूर तक उनकी आवाज़ सुनी जाती थी. आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था, मानो उनकी जुबां व गले में सरस्वती आकर बैठ गई हों. खास-कर भोर में गाये जाने वाले भैरवी गायन में उनका सानी नहीं था. प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहने-वाले व ‘स्वांतः सुखाय’ गायन करने-वाले इस अनोखे लोक-गायक को अपना ही भोजपुरिया समाज भूल रहा है.

113F086F A0Fc 4920 967F C59192421135
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 8
दंगल के पहलवान हुआ करते थे जंग बहादुर

जंग बहादुर सिंह शुरू-शुरू में पहलवान थे. बड़े-बड़े नामी पहलवानों से उनकी कुश्तियां होती थीं. छोटे कद के इस चीते-सी फुर्ती-वाले व कुश्ती के दांव-पेंच में माहिर जंग बहादुर की नौकरी ही लगी पहलवानी के दम पर. 22-23 वर्ष की उम्र में अपने छोटे भाई मजदूर नेता रामदेव सिंह के पास कोलफ़ील्ड, शिवपुर कोइलरी, झरिया, धनबाद में आये थे जंग बहादुर वहां कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए लगभग तीन कुंतल के एक बंगाल की ओर से लड़ने-वाले पहलवान को पटक दिया था. फिर तो शेर-ए-बिहार हो गए जंग बहादुर. तमाम दंगलों में कुश्ती लड़े, लेकिन उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी कि वह संगीत के दंगल के उस्ताद बन गए.

Bc349244 4A14 4B18 Aa6E C124Dd1Cfa0E
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 9
संगीत के दंगल के योद्धा बने जंग बहादुर

दुगोला के एक कार्यक्रम में तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे. दर्शक के रूप में बैठे पहलवान जंग बहादुर सिंह ने इसका विरोध किया और कालांतर में इन तीनों लोगों को गायिकी में हराया भी. उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद्द पकड़ ली. धुन के पक्के और बजरंग बली के भक्त जंग बहादुर का मां सरस्वती ने भी साथ दिया. रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों में चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, वीर अब्दुल हमीद, महात्मा गाँधी आदि कि चरित्र-गाथा गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए जंग बहादुर सिंह. तब ऐसा दौर था कि जिस कार्यक्रम में नहीं भी जाते थे जंग बहादुर, वहां के आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर इनकी तस्वीर लगाते थे. पहलवानी का जोर पूरी तरह से संगीत में उतर गया था और कुश्ती का चैंपियन भोजपुरी लोक-संगीत का चैंपियन बन गया था. अस्सी के दशक के सुप्रसिद्ध लोक-गायक मुन्ना सिंह व्यास व उसके बाद के लोकप्रिय लोक-गायक भरत शर्मा व्यास तब जवान थे, उसी इलाके में रहते थे और इन लोगों ने जंग बहादुर सिंह व्यास का जलवा देखा था.

Cb653B1F 40C3 4565 8Cc1 C6Edb0854275
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 10
तूती बोलती थी बाबू जंग बहादुर सिंह की

उनके तुरंत बाद की गायकी पीढ़ी के नामी गायक रहे हैं, मुन्ना सिंह व्यास. वह तब के स्वर्णिम दिनों की याद करके कहते हैं, ‘एक समय था, जब बाबू जंग बहादुर सिंह की तूती बोलती थी. उनके सामने कोई गायक नहीं था. वह एक साथ तीन-तीन गायकों से दुगोला की प्रतियोगिता रखते थे. झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और पंद्रह-बीस वर्षों तक एक क्षत्र राज्य था उनका. उनके साथ के करीब-करीब सभी गायक दुनिया छोड़कर जा चुके हैं. खुशी की बात है कि वह 102 वर्ष की उम्र में भी टाइट हैं. भोजपुरी की संस्थाएं तो खुद चमकने-चमकाने में लगी हैं. सरकार का भी ध्यान नहीं है. मैं तो यही कहूँगा कि ऐसी प्रतिभा को पद्मश्री देकर सम्मानित किया जाना चाहिए.

514C53F3 08E9 4D35 A71E F3A3B5699Deb
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 11
बाबू जंग बहादुर सिंहगायक भरत शर्मा व्यास ने सम्मान देने की मांग की

90 के दशक में खूब चर्चित हुए भोजपुरी लोक गायक भरत शर्मा व्यास अपने युवावस्था में जंगबहादुर सिंह के कार्यक्रमों में श्रोता रहे. बकौल भरत शर्मा, “जंग बहादुर सिंह का उस ज़माने में नाम लिया जाता था, गायको में।. मुझसे बहुत सीनियर हैं. मैं कलकत्ता में उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आया करता था. कई बार उनके साथ बैठकी भी हुई है. भैरवी गायन में तो उनका जबाब नहीं है. इतनी ऊंची तान, अलाप और स्वर की मृदुलता के साथ बुलंद आवाज़-वाला दूसरा गायक भोजपुरी में नहीं हुआ है. भोजपुरी भाषा की सेवा करने वाले व्यास शैली के इस महान गायक को सरकारी स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए.

Cc9C8F0F 4Ed2 43A0 8Ee0 6F5033Bf73Bb
जंग बहादुर सिंह के भोजपुरी देशभक्ति गीतों से थर-थर कांपती थी ब्रिटीश हुकूमत, पढ़े वीरता की अनूठी कहानी 12
देश और देशभक्तों के लिए गाते थे जंग बहादुर सिंह

चारों तरफ आज़ादी के लिए संघर्ष चल रहा था. युवा जंग बहादुर देश-भक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देश-भक्ति के गीत गाने लगे. 1942-47 तक आज़ादी के तराने गाने के लिए ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार हुए और जेल भी गए. पर जंग बहादुर रुकने-वाले कहा‍ं थे. जंग में भारत की जीत हुई और भारत आज़ाद हुआ. आज़ादी के बाद भी जंग बहादुर महाराणा प्रताप, वीर कुँवर सिंह, महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर आजाद आदि की वीर-गाथा ही ज्यादा गाते थे और धीरे-धीरे वह लोक-धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे. साठ के दशक में जंग बहादुर का सितारा बुलंदी पर था. भोजपुरी देश-भक्ति गीत माने, जंग बहादुर. भैरवी माने, जंग बहादुर. रामायण और महाभारत के पात्रों की गाथा माने, जंग बहादुर.

शोहरत पर समय की धूल

जंगबहादुर सिंरह के उस शोहरत पर समय की धूल की परत चढ़ गई. आज हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, पर जंग बहादुर किसी को याद नहीं हैं. देशभक्ति के तराने गाने-वाले इस क्रांतिकारी गायक को नौकरशाही ने आज तक स्वतंत्रता-सेनानी का दर्जा नहीं दिया. हांलाकि इस बात का उल्लेख उनके समकालीन गायक समय-समय पर करते रहे कि जंग बहादुर को उनके क्रांतिकारी गायन की वजह से अंग्रेज़ी शासन ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था, फिर भी उन्हें जेल में भेजे जाने का रिकॉर्ड आज़ाद हिंदुस्तान की नौकरशाही को नहीं मिल पाया. मस्तमौला जंग बहादुर कभी इस चक्कर में पड़े भी नहीं.

जंग बहादुर का पारिवारिक जीवन

सन 1970 ई. में टूट गये थे जंग बहादुर, जब उनके बेटे और बेटी की आकस्मिक मृत्यु हुई. धीरे-धीरे उनका मंचों पर जाना और गाना कम होने लगा. दुर्भाग्य ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था, पत्नी महेशा देवी एक दिन खाना बनाते समय बुरी तरह जल गईं. जंग बहादुर को उन्हें भी संभालना था. वह समझ नहीं पा रहे थे कि राग-सुर को संभाले या परिवार को. उनके सुर बिखरने लगे. जिंदगी बेसुरी होने लगी. सन 1980 के आस-पास एक और बेटे की कैंसर से मौत हो गई. फिर तो अंदर से बिल्कुल टूट गये जंग बहादुर. अभी दो बेटे हैं, बड़ा बेटा मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम है. बूढ़े बाप के सामने दिन-भर बिस्तर पर पड़ा रहता है. छोटे बेटे राजू ने परिवार संभाल रखा है. वह विदेश रहता है.

वयोवृद्ध जंग बहादुर के अंदर और बाहर जंग चलता रहता है. पता नहीं किस मिट्टी के बने हैं जंग बहादुर. इतने दुख के बाद भी मुस्कुराते रहते हैं और मूंछों पर ताव देते रहते हैं. पिछले तीस वर्षों से प्रेमचंद की कहानियों के नायक की तरह अपने गांव-जवार में किसी के भी दुख-सुख व जग-परोजन में लाठी लेकर खड़े रहते हैं जंग बहादुर.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें