बोधगया. महात्मा बुद्ध की त्रिविध पावन जयंती समारोह का देश-विदेश में व्यापक असर पड़ा है. दुनिया को शांति, प्रेम, अहिंसा, करुणा व भाईचारे का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध की जयंती समारोह में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में हर वर्ष इजाफा हो रहा है. भगवान बुद्ध के संदेश का भारत में भी काफी असर पड़ा है. लोगों में बुद्ध के प्रति जागरूकता बढ़ी है और इसी का नतीजा है कि बुद्ध जयंती के अवसर पर बोधगया में ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. उक्त बातें इंटरनेशनल बुद्धिस्ट काउंसिल बोधगया के जेनरल सेक्रेटरी भिक्खु प्रज्ञादीप ने कहीं.
उन्होंने बताया कि देश की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बुद्ध जयंती समारोह के आयोजन की परंपरा शुरू की. तब श्रीलंका व म्यांमार से भी बौद्ध भिक्षुओं को आमंत्रित किया गया था. इसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में बुद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के बढ़ने के साथ ही बोधगया आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं की संख्या में भी इजाफा होने लगा. भिक्षु प्रज्ञादीप ने बताया कि बुद्ध जयंती के मौके पर फिलहाल महाराष्ट्र व यूपी से काफी संख्या में बौद्ध श्रद्धालु बोधगया पहुंचने लगे हैं. यह अच्छी बात है. इससे बोधगया में कारोबार में बढ़ोतरी होगी.
पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण बुद्ध जयंती समारोह का आयोजन नहीं हो पा रहा था. लेकिन, इस वर्ष महाबोधि मंदिर में बुद्ध जयंती समारोह के आयोजित होने की सूचना पर महाराष्ट्र व अन्य प्रदेशों से काफी संख्या में श्रद्धालु बोधगया पहुंच रहे हैं. हालांकि, इससे यहां के होटल व रेस्टोरेंट संचालकों को ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा है. श्रद्धालुओं का जत्था होटलों में नहीं ठहर कर कालचक्र मैदान में ही डेरा जमा लेते हैं. लेकिन, श्रद्धालुओं के आगमन से बोधगया के इ-रिक्शा व ऑटो चालकों को फायदा पहुंच रहा है. स्थानीय व्यवसायियों का कहना है कि विभिन्न देशों के बौद्ध श्रद्धालुओं की आवाजाही बढ़ने से ही बोधगया के कारोबार पर बेहतर असर पड़ सकता है.
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महात्मा बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति व महापरिनिर्वाण दिवस को बुद्ध जयंती के रूप में मनाया जाता है. बुद्ध जयंती बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्योहार है. यह हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता है. पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है. इसी दिन 563 ईसा पूर्व महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था और 483 ईसा पूर्व में बुद्ध का कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त हुआ था. वैशाख पूर्णिमा के दिन ही राजकुमार सिद्धार्थ को बोधगया में बाधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
जन्म, ज्ञान यानी बुद्धत्व की प्राप्ति व महापरिनिर्वाण, ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे. ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नहीं हुआ है. बौद्ध धर्म को मनने वाले विश्व में 50 करोड़ से ज्यादा लोग वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध जयंती के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. वैसे, हिंदू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध भी विष्णु के नौवें अवतार के रूप में माना जाता है. इस कारण हिंदुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है.
बुद्ध जयंती समारोह भारत, नेपाल, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में भी मनाया जाता है. हालांकि, श्रीलंका व दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में इस दिन को वेसाक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो वैशाख शब्द का अपभ्रंश है.