VIDEO : डीएम मुकेश पांडेय का यह पहलू जानकर रो पड़ेंगे आप !
बक्सर : इंसान के जन्म से मृत्यु तक के समय को जिंदगी का नाम दिया गया है. कहते हैं कि जिंदगी एक खुशनुमा एहसास है, जिसका आनंद हर समय इंसान को लेना चाहिए, जिंदगी में सब कुछ प्राप्त हो सकता है, असंभव शब्द जिंदगी काबड़ाखलनायक है. बक्सर डीएम मुकेश कुमार पांडेय ने अपने अंदर चल […]
बक्सर : इंसान के जन्म से मृत्यु तक के समय को जिंदगी का नाम दिया गया है. कहते हैं कि जिंदगी एक खुशनुमा एहसास है, जिसका आनंद हर समय इंसान को लेना चाहिए, जिंदगी में सब कुछ प्राप्त हो सकता है, असंभव शब्द जिंदगी काबड़ाखलनायक है. बक्सर डीएम मुकेश कुमार पांडेय ने अपने अंदर चल रहे तूफान का एक वीडियो बनाया और दुनिया को उसे मीडिया के माध्यम से बार-बार सुनाने के लिए छोड़ गये. आत्महत्या करने से पहले मुकेश पांडेय ने एक दार्शनिक की तरह बातें की. जिंदगी की उलझनों को शब्दों में समेटने की कोशिश की, लेकिन रिश्तों के उलझन के बीच छटपटाती अपनी जिंदगी को आत्महत्या की आहट से दूर नहीं रख पाये. मुकेश पांडेय जिंदादिल इंसान थे, उनके अंदर दूसरों के लिए जीने की जिजीविषा थी. बक्सर में जिलाधिकारी के रूप में योगदान देने से पहले उन्होंने अपने आवास पर जो किया, वह उनके व्यक्तित्व की एक अलग और अनोखी कहानी कहने के लिए काफी है. प्रस्तुत है बक्सर से मंगलेश तिवारी की खास रिपोर्ट.
बक्सर जिलाधिकारी आवास में एक छोटा-सा पौधा हर-भरा होते हुए भी मायूस है. शायद उसे भी उन हाथों के नहोने का एहसास है, जिसने धरती के साथ उसका पवित्र मिलन कराया. पौधा लहलहा जरूर रहा है, लेकिन झूम नहीं रहा. यह वहीं गुलमोहर का पौधा है, जिसे मुकेश पांडेय ने योगदान देने के दिन अपने आवास में लगाया था. जी हां, पौधे में जिंदगी होती है. यह हम सभी जानते हैं, लेकिन उस जिंदगी के मासूम एहसास को महसूस करना हर किसी केबसकी बात नहीं. उसके लिए इंसान को संवेदना की सार्थकता को जिंदगी के आईने में तलाशनेवाला होना चाहिए. मुकेश पांडेय में यह गुण बखूबी भरा था. वह 2012 में आइएएस की परीक्षा में 14 वें रैंक पर रहे थे. उनका अध्ययन काफी विस्तृत था. जिंदगी को लेकर उनकी सोच काफी व्यापक थी. तभी तो उन्होंने अपने आवास के माली से जो कहा, वह सुनकर आपको मुकेश पांडेय की जिंदगी को लेकर वृहदसोच का अंदाजा हो जायेगा.
बक्सर जिलाधिकारी आवास के कर्मचारी हीरालाल राम कुछ पूछने पर फफक कर रो पड़ते हैं. उन्होंने कहा कि अपने बक्सर आगमन के दिन ही साहब ने कर्मचारियों को बुलाकर कहा थाकि अपने लिए जो जीता है वह जीव है और दूसरों के लिए जो जीता है वह शिव है. इसलिए दूसरों के लिए जीना सीखें. हीरालाल ने कहा कि साहब भगवान की तरह थे. मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए कहे थे कि ईमानदारी से काम कीजिए. पौधों की देखभाल का मौका सभी को नहीं मिलता. पौधों में जिंदगी समाई है. पौधों का संरक्षण करने वाले साक्षात ईश्वर की तरह हैं. उन्होंने बताया कि बक्सर आने पर पहले ही दिन साहब ने आवास के सुरक्षा गार्ड व अन्य कर्मियों को पौधों का उदाहरण देते हुए कहा था कि दूसरों को जीवन देने के लिए पेड़ जीवित रहते हैं. इसलिए पुत्र की तरह पौधे के देखभाल की जरूरत है.
बीते 4 अगस्त को पौधारोपण में शामिल आवास के अन्य कर्मियों से पौध संरक्षण को समय की जरूरत बताया था. शुक्रवार को डीएम के मौत की मनहूस खबर सुनकर आवास का माली सत्यनारायण राम दौड़ता हुआ उनके लगाए पौधों के पास पहुंचा. वह पौधों को निहारते हुए रो पड़ा. बोला कि साहब अपनी याद में इन पौधों को लहलहाता हुआ छोड़ गये. एक पौधे को लेकर इतना संवेदनशील अधिकारी, आखिर जिंदगी की जंग इतनी जल्दी कैसे हार गया. पौधों में जीवन तलाशने वाला शख्स क्या रिश्तों की कमजोर डोर को मजबूत नहीं कर सका, या व्यथा की पराकाष्ठा ने जीवन में अवसाद का जहर घोल दिया था. यह प्रश्न उनके लिए आज भी अनुतरित रहेंगे, जिन्होंने अपने साहब को पौधों में जिंदगी तलाशते देखा है.
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