चलो रे डोली उठाओ कहार… की प्रथा हो रही है विलुप्त

मनोज कुमार मिश्र, डुमरांव : डोली कभी एक शान की सवारी हुआ करती थी. दूल्हे के साथ-साथ दुल्हन पक्ष अपने समधी को डोली में बैठा सम्मान के साथ शामियान से घर लेकर जाते थे लेकिन समय बदलते ही डोली की जगह लग्जरी वाहनों ने ले लिया है. मगर आज भी कभी कभार डोली देखने को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2019 5:42 AM

मनोज कुमार मिश्र, डुमरांव : डोली कभी एक शान की सवारी हुआ करती थी. दूल्हे के साथ-साथ दुल्हन पक्ष अपने समधी को डोली में बैठा सम्मान के साथ शामियान से घर लेकर जाते थे लेकिन समय बदलते ही डोली की जगह लग्जरी वाहनों ने ले लिया है. मगर आज भी कभी कभार डोली देखने को मिल जाती है.

हालांकि डोली इतिहास बन चुकी है. नवेली दुल्हन को पीहर से ससुराल ले जानेवाली डोली बदलते जमाने के साथ इतिहास के पन्नों में तब्दील होता जा रहा है. शहरी इलाकों में तो डोली का युग समाप्त हो गया. दशकों बीत चुके हैं, मगर नगर व ग्रामीण अंचलों में डोली से विदा करने का रिवाज करीब दो दशक पहले तक जिंदा था.
डोली से शादी की रस्म अदायगी परक्षावन किया जाता था और महिलाएं एकत्रित होकर मांगलिक गीत गाते हुए गांव के देवी- देवताओं के यहां माथा टेकते हुए दूल्हा-दुल्हन को उनको ससुराल भेजती थी. डोली की सवारी भारत में आदिकाल से रही है. पहले राजा महाराजा भी डोली पालकी की सवारी करते थे. रानियां भी डोली पालकी से आती जाती थी.
कहा जाता है कि डोली ढोने वालों को कहार कहा जाता था. डोली ढोने के लिए छह कहारों ने डोली को उठाने का कार्य करते थे. जो डोली को बदलते हुए कोसों लेकर जाते थे. बदलते परिवेश में डोली की जगह लग्जरी गाड़ियों ने जगह ले ली है.
बुद्धिजीवी सत्यनारायण प्रसाद, प्रभाकर तिवारी, धर्मदत मिश्र कहते हैं कि पहले एक गीत चलता था ‘चलो रे डोली उठाओ कहार’ लोगों के जुबां से लुप्त होता जा रहा है. अब तो आज के बच्चे डोली को साक्षात देख भी नहीं सकते कारण डोली काफी ढूंढ़ने के बाद वह मुश्किल से कहीं देखने को मिल सकती है.
वह समय दूर नहीं कि बच्चे डोली के बारे में जानने के लिए एक डोली को गूगल में सर्च करें या पुरानी फिल्मों को देखकर जानेंगे कि यह डोली है.
ठठेरी बाजार निवासी पंडित कपिल तिवारी ने बताया कि आवागमन सही रास्ता न होने के कारण डोली का प्रयोग होता रहता था. इसमें डोली को छह लोगों की टीम गीत गाते कोसों दूर शादी के समय दूल्हे- दुल्हन को लेकर चलते थे और इस दौरान कहीं किसी गांव के पास रुक कर आराम करने के बाद फिर से अपने गंतव्य की ओर चल देते थे.

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