मृत्युंजय सिंह, बक्सर : स्मार्ट शहर की श्रेणी में शामिल होने के लिए जद्दोजहद कर रहा बक्सर भी प्रदूषित शहरों की श्रेणी में आता है. इसके कारणों में से एक प्लास्टिक कचरा भी है. शहर से हर दिन 20 टन कूड़ा निकलता है, जिसमें कम से कम 10 फीसदी से ज्यादा पॉलीथिन होता है. पॉलीथिन पर प्रतिबंध होने के बावजूद यह शहर के चौक-चौराहों पर खुलेआम दिख जाता है.
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लोगों को पानी के लिए तरसा देगा पॉलीथिन
मृत्युंजय सिंह, बक्सर : स्मार्ट शहर की श्रेणी में शामिल होने के लिए जद्दोजहद कर रहा बक्सर भी प्रदूषित शहरों की श्रेणी में आता है. इसके कारणों में से एक प्लास्टिक कचरा भी है. शहर से हर दिन 20 टन कूड़ा निकलता है, जिसमें कम से कम 10 फीसदी से ज्यादा पॉलीथिन होता है. पॉलीथिन […]
अभी भी धड़ल्ले से पॉलीथिन का उपयोग जारी है. अभी भी लोग पॉलीथिन में सामान खरीदते नजर आ रहे हैं. पॉलीथिन के कारण भूमिगत जलस्तर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पॉलीथिन के कूड़े-कचरा में फेंक दिये जाने के कारण जमीन की पानी अवशोषित करने की क्षमता नष्ट होती जा रही है.
लिहाजा पहले से ही जल संकट से जूझ रहे शहर की समस्या आने वाले दिनों में और विकराल होने की आशंका है. कृषि वैज्ञानिक डॉ पीके द्विवेदी कहते हैं कि पॉलीथिन जब जमीन में दबती है तो भूमि पानी अवशोषित नहीं कर पाती है. इससे भूमिगत जल स्तर कम होता चला जाता है. साथ ही जमीन की वहां सोखने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है.
लाभप्रद बैक्टीरिया मर जाते हैं. जो बचते हैं उनकी क्षमता कम हो जाती है. इससे उर्वरा शक्ति भी नष्ट हो जाती है. नगर परिषद के इओ रोहित कुमार ने कहा कि शहर में पॉलीथिन के प्रयोग पर पूर्णत: रोक लगा दिया गया है. उन्होंने कहा कि अब तो गीला और सूखा कचरा को छांटकर लोगों के घरों से उठाव किया जाता है. रही बात खुलेआम बिक रही पॉलीथिन पर रोक लगाने की तो, इसके लिये समय-समय पर दुकानों पर छापेमारी की जाती है.
हवा पर भी पड़ता है असर
मंगलवार को किला मैदान के पास बने डंपिंग जोन पर कचरे में आग लगा देने के कारण उसमें जल रहे पॉलीथिन से निकल रही बदबू से आसपास के लोगों का जीना दुश्वार था. हवा प्रदूषित होने के कारण खतरनाक गैसें जैसे बेंजीन, विनायल और इथनाल ऑक्साइड का उत्सर्जन कर हवा को विशाक्त बनाती है.पॉलीथिन गंदगी का भी प्रमुख कारण है. इससे सीवरेज सिस्टम भी प्रभावित हो रहा है. जगह-जगह नालियों में पॉलीथिन फंस जाने के कारण नालियों का पानी सड़कों पर बहता रहता है.
रुक जाता है शिशु का विकास, हो सकती है सांस संबंधी समस्या
चिकित्सकों के अनुसार प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है. इससे गर्भस्थ शिशु का विकास रुक जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि पॉलीथिन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड समेत अन्य विषैली गैस उत्सर्जित होती हैं.
इससे सांस व त्वचा संबंधित बीमारी की आशंका बढ़ जाती है. इनमें खांसी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, चक्कर आना, मांसपेशियों का शिथिल होना और हृदय रोग प्रमुख है. लगातार प्लास्टिक की बोतल में पानी या चाय पीने वालों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
आदत बदलें, घर से झोला लेकर निकलें
पॉलीथिन पर सरकार ने भले ही रोक लगा दिया है. मगर हमें अपने आदत में भी सुधार करना होगा. तभी पॉलीथिन पर रोक लग सकती है. जब हम खुद इसका उपयोग न करके घर से बाजार झोला लेकर निकले. जब हम पॉलीथिन के बदले कपड़े के थैले का उपयोग करना शुरू करेंगे तभी पॉलीथिन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का अभियान सफल हो सकता है.
इन मुहल्लों में जल स्तर काफी नीचे चला गया
शहर के चरित्रवन, सोहनीपट्टी, पांडेयपट्टी, सिविल लाइंस, औद्योगिक क्षेत्र में कभी पानी का लेयर करीब 180 फुट पर था, मगर बदलते समय के अनुसार अब वह 200-220 फुट पर चला गया. इन क्षेत्रों के हैंडपंप सूख गये हैं या कम पानी दे रहे हैं.
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