बक्सर. जिले में जनसंख्या स्थिरीकरण को लेकर लोगों में समझ बढ़ने लगी है. स्वास्थ्य विभाग और फ्रंटलाइन वर्कर्स जिले में परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए धरातल पर काम कर महिला व पुरुषों को परिवार नियोजन के उपाय का पालन करने को जागरूक कर रहा है. सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है. जिसकी बदौलत महिलाओं के साथ साथ अब पुरुष भी परिवार नियोजन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने लगे हैं. हालांकि यह आंकड़े जिला स्वास्थ्य समिति के हैं, लेकिन परिवार नियोजन में अभी पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य विभाग एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है. ताकि, जिले महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की भागीदारी बढ़ाई जा सके.
सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि जिले के सामुदायिक उत्प्रेरक और आशा कार्यकर्ताएं अपना काम बखुबी निभा रही हैं. जिससे पिछले एक साल में पुरुषों ने आगे आकर परिवार नियोजन में अभी भागीदारी निभाई. अप्रैल, 2023 से मार्च, 2024 तक पुरुष नसबंदी का 99.9 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया गया. पुरुष नसबंदी के लिए जिले में 177 लोगों की नसबंदी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. जिसमें से 175 लोगों ने ही नसबंदी कराई. केवल फरवरी और मार्च में 62 लोगों का नसबंदी किया गया. जिसे भविष्य में और बढ़ाया जाएगा.
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि महिलाओं में बंध्याकरण की अपेक्षा पुरुष नसबंदी काफी सरल है. पुरुषों की नसबंदी बिना टांका एवं चीरा एक घंटे के भीतर होता है. नसबंदी के बाद अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं होती. पुरुष नसबंदी की तुलना में महिला बंध्याकरण 20 गुना जटिलता से भरा होता है. पुरुष नसबंदी की तुलना में महिला नसबंदी के फेल होने की संभावना भी 10 गुना अधिक होती है. साथ ही, पुरुष नसबंदी महिला नसबंदी की तुलना में तीन गुना कम महंगा होता है. उन्होंने बताया कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को नसबंदी कराने के लिए दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि भी ज्यादा रखी गई है. नसबंदी के लिए पुरुष लाभार्थी को 3000 रुपए एवं प्रेरक को प्रति लाभार्थी 300 रुपए दिया जाता है. जबकि महिला नसबंदी के लिए लाभार्थी को 2000 रुपए एवं प्रेरक को प्रति लाभार्थी 300 रुपए दिया जाता है.
नसबंदी के बाद पुरुषों में नहीं आती शारीरिक या यौन कमजोरी :
डीसीएम हिमांशु कुमार सिंह ने बताया कि पुरुषों में अभी भी मिथक है कि नसबंदी से वो कमजोर हो जाएंगे. पुरुष नसबंदी के बाद किसी भी तरह की शारीरिक या यौन कमजोरी नहीं आती है. यह पूरी तरह सुरक्षित और आसान है। लेकिन अधिकांश पुरुष- अभी भी इसे अपनाने में हिचक रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि कहीं ना कहीं समुदाय में अभी भी पुरुष नसबंदी से संबंधित जानकारी का अभाव है. उन्होंने बताया कि नसबंदी के प्रति पुरुषों की उदासीनता की सबसे बड़ी वजह इससे जुड़ी भ्रांतियां हैं. लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सेंटर फार डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन जैसे आधिकारिक एजेंसियों के सर्वे और शोध इन अफवाहों और मिथकों का पूरी तरह खंडन करते हैं. उनका कहना है कि पुरुष नसबंदी से ना ही शारीरिक कमजोरी होती है और ना ही पुरुषत्व का क्षय होता है. दंपती जब भी चाहे इसे अपना सकते हैं. ग्राम चौपाल लगाकर लोगों को करना होगा प्रेरित :सदर प्रखंड अंतर्गत बरूणा गांव निवासी हरेंद्र कुमार सिंह ने पिछले साल ही नसबंदी कराई थी. उन्होंने बताया कि उन्हें एक बेटा और बेटी है. इसलिए उन्होंने नसबंदी की राह चुनी. जिससे वो भविष्य में अपने परिवार का पालन पोषण अच्छे से कर सकें. उन्होंने कहा कि आज महंगाई के दौर में बड़े परिवार का पालन पोषण करना काफी कठिन हो गया. लोग छोटा परिवार और सुखी परिवार रखना तो चाहते हैं, लेकिन मिथकों के चक्कर में आकर नसबंदी नहीं कराते. जिसे तोड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग को थोड़ा और प्रयास करना होगा. जिससे लोगों में जागरूकता बढ़े. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ग्राम स्तर पर चौपाल का आयोजन कर योग्य पुरुषों के साथ बैठक करनी चाहिए. जिससे वो परिवार नियोजनों के स्थायी साधनों के महत्व को समझे.
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