बाहर से पहुंचा दउरा व सूप, बांसफोर जाति की जीविका पर मंडराने लगा संकट का बादल

बक्सर : बांस से बने सामान से जीविका चलानेवाले बांसफोर जनजाति आज अपनी जीविका को लेकर चिंतित है. इनके व्यवसाय पर भौतिकवादी काल का स्पष्ट प्रभाव दिख रहा है. गरमी से राहत देनेवाले बांस के पंखे, पूजा-पाठ के सामान को रखनेवाला पात्र, सजावट के समान, छठ के उपयोग में आनेवाले बांस के सूप एवं दउरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2015 3:30 AM

बक्सर : बांस से बने सामान से जीविका चलानेवाले बांसफोर जनजाति आज अपनी जीविका को लेकर चिंतित है. इनके व्यवसाय पर भौतिकवादी काल का स्पष्ट प्रभाव दिख रहा है. गरमी से राहत देनेवाले बांस के पंखे, पूजा-पाठ के सामान को रखनेवाला पात्र, सजावट के समान, छठ के उपयोग में आनेवाले बांस के सूप एवं दउरा से पूरे साल का खर्चा चलानेवाला यह परिवार अब परेशानियों में है.

भौतिकवादी युग का प्रभाव : भौतिकवादी युग ने बांसफोर जनजाति के पुश्तैनी व्यवसाय पर गहरा प्रभाव डाल दिया है. इस जाति की अब जीविका चलाना काफी मुश्किल हो गया है.शुद्धता के प्रतीक माने जानेवाला बांस के सामान के ऊपर पीतल के परात, पीतल की सुपली ने जगह ले लिया है. इससे अब लोगों को प्रतिवर्ष खरीदना नहीं पड़ता है.

बाहरी सस्ते सामान का प्रभाव

अब छठ के महत्वपूर्ण सामान नये सुपली एवं दउरा का उपयोग किया जाता है. इसको देखते हुए जमुई एवं मुंगेर से दोयम दर्जे के सुपली एवं दउरा बाजार में भरपूर मात्रा में गिराया गया है, जिसका यहां के बननेवाले सुपली एवं दउरा के अपेक्षा काफी कम मूल्य पड़ता है.

बांस की कमी

बांसफोर लोगों ने बताया कि जिले में बांस की बहुत कमी है.जो भी बांस मिलता है, उसकी कीमत बहुत ज्यादा होती है. निर्माण में काफी खर्चा होता है जिससे यहां के सुपली एवं दउरा काफी महंगा हो जाता है.

क्या कहती है बांसफोर जनजाति

बक्सर किला स्थित बांसफोर जनजाति के लोग राजा कुमार, लालू, संजय कुमार, मनोज कुमार ने बताया कि आर्टिफिशियल सामान एवं बाहर से आनेवाले सस्ते सूप, दउरा ने हमारा व्यवसाय चौपट कर दिया है. महंगे बांस एवं बाहरी सस्ते सामान की वजह से हमारा सामान नहीं बिक पाता है.हमारे सामान की मजबूती रहती है एवं लागत की वजह से महंगे होते हैं.हम लोग अब इस पुश्तैनी धंधे को बंद कर दूसरे रोजगार की तलाश कर रहे हैं.

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