एसएफसी के पैसे की वसूली पड़ गयी सुस्त
मामले में विभाग के खिलाफ मिलरों ने भी खटखटाया था कोर्ट का दरवाजा बक्सर : जिले में हुए सीएमआर (कस्टम मिल्ड राइस) गबन मामले में प्रशासन की उदासीनता साफ दिख रही है. सीएमआर गबन मामले में कुल राशि का अब तक 10 प्रतिशत राशि ही वसूली की गयी है. इस मामले में राज्य खाद्य निगम […]
मामले में विभाग के खिलाफ मिलरों ने भी खटखटाया था कोर्ट का दरवाजा
बक्सर : जिले में हुए सीएमआर (कस्टम मिल्ड राइस) गबन मामले में प्रशासन की उदासीनता साफ दिख रही है. सीएमआर गबन मामले में कुल राशि का अब तक 10 प्रतिशत राशि ही वसूली की गयी है. इस मामले में राज्य खाद्य निगम (एसएफसी) को 153 राइस मिलरों से एक अरब छह करोड़ 76 लाख 76 हजार 169 रुपये 63 पैसे वसूल करने थे. लेकिन, विभागीय सुस्ती के कारण अब तक मात्र 10 करोड़ 56 लाख 130 रुपये की ही वसूल हो सकी है.
वहीं, दूसरी ओर सीएमआर गबन मामले में 153 में से 119 राइस मिलरों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है. विभागीय सूत्रों के अनुसार वर्ष 2011-12, 2012-13 व 2013-14 में जिले के मिलरों को धान दिया गया था. राइस मिलरों को धान के एवज में 67 प्रतिशत चावल बना कर सीएमआर, एफसीआइ को जमा करना था, परंतु प्रशासन के लाख प्रयास और चेतावनी के बाद राइस मिलरों ने एफसीआइ को सीएमआर जमा नहीं कर सरकार के करोड़ों रुपये गबन कर लिया. मामला जब तूल पकड़ने लगा, तो हाइकोर्ट के आदेश के बाद मिलरों पर प्रशासन द्वारा प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. साथ ही मिलरों द्वारा सीएमआर नहीं दिया गया, तब प्रशासन ने कई क्रय केंद्र प्रभारियों को जेल की हवा खिला दी. कई मिलरों के खिलाफ वारंट भी जारी किया गया था.
बिना सत्यापन के ही मिलरों को दिया गया था धान : राज्य सरकार के निर्देश पर एसएफसी ने राइस मिलरों को एक अरब छह करोड़ 76 लाख 76 हजार 169 रुपये 63 पैसे का धान दिया था.
सरकार ने निगम को निर्देश दिया था कि सत्यापन के बाद ही मिलरों को धान देना था, लेकिन बिना सत्यापन के ही धान की आपूर्ति कर दी थी. मिलरों की क्षमता से अधिक धान देना एसएफसी को महंगा पड़ गया. दूसरी ओर, मिलरों को प्रथम किस्त के सीएमआर की प्राप्ति करने के बाद ही दूसरे किस्त का धान देना था, लेकिन एसएफसी ने बिना सीएमआर की प्राप्ति किये मिलरों को धान देती रही और चावल की मांग नहीं की.
इसे लेकर मिलरों ने सरकारी चावल का बंदर बांट करना शुरू किया था.
मिलरों ने भी विभाग पर दर्ज करायी थी प्राथमिकी : वर्ष 2011-12 में मिलरों को 67 करोड़ 24 लाख 28 हजार 121 रुपये 69 पैसे का धान दिया गया था. एसएफसी की सुस्ती के कारण मिलरों ने सीएमआर का बंदर बांट कर लिया था. लेकिन, जब सरकार ने चावल की मांग की, तो आनन-फानन में मिलरों ने पड़ोसी राज्य से सीएमआर लाकर एसएफसी को देना शुरू किया. सीएमआर की खराब गुणवत्ता होने पर एसएफसी ने सीएमआर लेने से मना कर दिया.
इस मामले को लेकर मिलर संघ ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.कई अधिकारियों पर गिरी थी गाज : मामले में एसएफसी के जिला प्रबंधक अरसद फिरोज व आलोक कुमार पर गाज गिरी थी. पुलिस को मामले में उक्त दोनों अधिकारियों की संलिप्त होने का शक था, जिसे लेकर पुलिस ने कोर्ट से दोनों अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. इसमें जिला प्रबंधक अरसद फिरोज ने इस मामले में हाइ कोर्ट से जमानत ने ली. वहीं, जिला प्रबंधक आलोक कुमार अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.