मंगलेश तिवारी
बक्सर. बिहार के गांवों में संस्कार और संस्कृति अनमोल धरोहर माने जाते हैं. लेकिन इन सबके बीच परदे की प्रथा के कारण प्रगतिशीलता भी कुप्रथाओं की अंधी दौड़ में खो जाती है. इनमें कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिनके अंदर परदे के भीतर भी आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन से बाहर निकलने की व्याकुलता रहती है और मौका मिलते ही वे सपने साकार कर लेती हैं. ब्रह्मपुर की अमीना खातून उर्फ अमीना निशा भी उन्हीं महिलाओं में से एक हैं. अमीना ने कुप्रथा और सामाजिक बंधन को तोड़ते हुए घर की चौखट से बाहर अपना कदम निकाला और वर्ष 2014 में साईं दादा जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपने अरमानों को उड़ान देने का सफर शुरू कर दिया. पहले तो घर के खर्च में से ही दस रुपये निकाल कर समूह में बचत करना शरू किया. समूह से दो हजार , 3 हजार और 5 हजार कर्ज लेकर घर का कर्ज चुकाया. समूह की ताकत और खुद के स्वावलंबन के जुनून से चूड़ी की दूकान खोलकर अमीना ने अन्य महिलाओं के लिए नजीर पेश किया है.
आर्थिक तंगी से छूट गया था स्कूल
25 वर्ष की अमीना का मायका बक्सर जिले के इटाढ़ी में है. आर्थिक तंगी के कारण अमीना स्कूल भी नहीं जा पाई. किसी तरह इनके अब्बा ने वर्ष 2006 में इनका निकाह ब्रह्मपुर के जज सिद्दीकी से कराई. ससुराल में आमदनी का एक मात्र जरिया सास की फुटपाथ पर की चुड़ी दुकान थी. परिवार बड़ा था, आमदनी कम , गुजारा भी मुश्किल था. इस बीच वर्ष 2013 में सास का भी इंतकाल हो गया. मुश्किलें और बढ़ गई थी. तब अमीना ने इबारत लिख डाली.
जज्बे से सिख लिया हस्ताक्षर करना
अमीना अब घर और दुकान दोनों संभाल रही है. अपनी बेटियों को स्कूल भी भेजती हैं. भारत जीविका महिला ग्राम संगठन की भी सदस्य है और हस्ताक्षर करना भी सीख गयी है. इनकी इलाके में एक अलग पहचान है , लोग सम्मान देते हैं. समूह के सहयोग से आमीन लोगों को शिक्षा और बेहतर सामाजिक माहौल हेतु जागरूक करती हैं. उनका कहना है कि जीविका में आर्थिक मदद के साथ- साथ सपनो को साकार करने का आधार मिलता है.
आत्मविश्वास से बढ़ा अमीना का कद
जीविका के ब्रह्मपुर बीपीएम अनिल कुमार चौबे बताते हैं कि, आमीन में गजब का आत्मविश्वास है. उसका सपना यही है कि अपनी बेटियों को पढ़ाकर नौकरी करने के योग्य बनाये, ताकि वे समाज के निर्माण में एक बड़ी भूमिका निभा सकें. वह चाहती हैं कि उन्हें अपने राज्य के अलावा दूसरे राज्यों में भी महिलाओं को प्रशिक्षित और जागरूक करने का मौका मिले. ताकि महिला सशक्तिकरण का सपना साकार हो.