10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार : डुमरांव घराना के 4 सौ साल पुराने संगीत विरासत को संभाल रहीं हैं बेटियां

डुमरांव. धनगाई घराना यानी डुमरांव घराना की लगभग चार सौ साल से चली आ रही परपंरा को विमेलश दूबे की तीनों बेटियों संजो रहीं है. पहली बेटी प्रियम्बदा दूबे जो संगीत में प्रभाकर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक निजी स्कूल में संगीतशिक्षक के रूप में कार्यरत है. दूसरी बेटी रूपम दूबे प्लस टू […]

डुमरांव. धनगाई घराना यानी डुमरांव घराना की लगभग चार सौ साल से चली आ रही परपंरा को विमेलश दूबे की तीनों बेटियों संजो रहीं है. पहली बेटी प्रियम्बदा दूबे जो संगीत में प्रभाकर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक निजी स्कूल में संगीतशिक्षक के रूप में कार्यरत है. दूसरी बेटी रूपम दूबे प्लस टू महारानी उषारानी बालिका उच्च विद्यालय में दसवीं और तीसरी बेटी रितम दूबे नवम् वर्ग की छात्रा है. तीनों बेटियों के साथ दूबे सुबह-शाम रियाज करते दिखते है. तबले पर सात सुरों केसंगम को छेड़ने वाले ध्रुपद घराना के धरोहर विमलेश दूबे आज तबले पर थाप देने की बजाय पेट की आग बुझाने के लिएड्राइवरका काम करते हैं.

ध्रुपदीय संगीत जगत में विख्यात है धनगाई घराना

घराने की विरासत को संगीत के जरिये सहेजने वाली पहली बेटी पढ़ाई के अलावा तबले व हारमोनियम पर रियाज, निजी विद्यालय में संगीत कीशिक्षककेकाम के अलावे घर में अपने माता करुणा देवी के काममें हाथमददकरती है. जब पूरा परिवार एक साथ रियाज करता है तो शहर के फूलचंद कानू, जवाहिर मंदिर लेन से गुजरने वाले लोगों के कदम संगीत सुनकर थोड़ी देर के लिए ठिठक जाते है. प्रियम्बदा, रूपम व रितम अपने माता-पिता के सानिध्य में संगीत की शिक्षा ग्रहण करती है. कार्यक्रम के दरम्यान माता-पिता भी उपस्थित रहते है. ताकि कोई गलती हो, तो आगे उसको सुधार करवा सके. प्रदेश में तीन घरानों के नाम ध्रुपदीय संगीत जगत में विख्यात है. इनमे दरभंगा घराना, बेतिया घराना व धनगाई यानी डुमरांव घराना शामिल है.

कला की उर्वर भूमि रही है डुमरांव की धरती

डुमरांव की प्रसिद्धी कलिष्ठ बंदिशों को आज भी संगीत की दुनिया में अनोखा माना जाता है, जिसे वाद्य यंत्रों पर बजा लेना अब भी कठिन है. विश्व प्रसिद्ध शहनाई उस्ताद भारत रत्न बिस्मिल्ला खां की जन्म स्थली डुमरांव शुरू से ही कला संस्कृति की उर्वर भूमि रहीं है. पं. प्रभाकर दूबे, पं. गोपालजी दूबे, पं. नंदलाल जी, पं. रामजी मिश्र तथा अवधेश कुमार दूबे व उनके दो बेटे प्रोफेसर कमलेश कुमार दूबे उतर प्रदेश के लखनऊ के भारतखंडे विश्वविद्यालय में संगीतअध्यापक के पद पर कार्यरत है. उनके छोटे बेटे विमलेश कुमार दूबे इस घराने की ऐसी चिराग है, जो परंपरा और धरोहर को संजोये रखे है. नाल व हारमोनियम बजाने मेंमाहिर विमलेश दूबे से जब उनके गुरु व पिता की परंपरा के बारे में पूछा जाता है तो उनकी आंखों से बरबस आंसू निकल जाते है. पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेवारी आने के कारण दूसरे के यहां मजदूरी करनी पड़ी.

सरकार ने नहीं दी कोई सहायता

वह कहते हैं कि आज तक बिहार सरकार द्वारा इस परिवार को कोई सहायता प्रदान नहीं की जाती. बड़ी बेटी अनुमंडल, जिला मुख्यालय सहित राज्य स्तर के कार्यक्रमों में भाग लेने के साथ पुरस्कृत भी हुई है. आज भी उनके संगीत सुन कार्यक्रम में उपस्थित लोग भावुक हो जाते है. डुमरांव धनगाई घराने की प्रथम परपंरा की नींव मणिकचंद दूबे व अनूपचंद दूबे द्वारा स्थापित मानी जाती है. ये दोनों भाई दक्षिण प्रदेश से कला सीख कर आये थे. इस परिवार के रामलाल दूबे डुमरांव राज के दरबारी गायक व लब्ध प्रतिष्ठित संगीतज्ञ सहदेव दूबे ध्रुपद शैली के शिक्षक थे. मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में हुई प्रतियोगिता में पं. मणिकचंद व अनूपचंद दूबे ने भाग लिया था. सम्राट शाहजहां प्रसन्न होकर दोनों भाईयों को कई गांव की जागीरदारी तथा रत्न भेंट करते हुए फारसी में लिखा ताम्रपत्र प्रदान किया था. उन्हें मलक शब्द जिसका अर्थ मालिक होता है कि उपाधि से विभूषित किया गया था. ध्रुपद घराने की परपंरा बचाये रखने के लिए बिमलेश दूबे के बाद तीनों बेटियां अपनी कला को रियाज से जिंदा रखें हुए है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें