ग्रामीण कार्य विभाग ने सरेंजा पोखरा को देश स्तर पर मॉडल अमृत सरोवर के तौर पर किया पेश
ऐतिहासिक सरेंजा पोखरा को ग्रामीण कार्य विभाग ने देश स्तर पर मॉडल अमृत सरोवर के तौर पर किया पेश
अतिक्रमण की चपेट में पोखरा, गिराया जा रहा नाले का गंदा पानी
18 जून- फोटो- 9- ग्रामीण विकास मंत्रालय के अमृत सरोवर फेसबुक पेज पर अपलोड सरेंजा पोखरा.18 जून- फोटो-10- अतिक्रमण के कारण सिमटा तालाब.
संवाददाता, चौसाकेंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा मनरेगा योजना के तहत देश भर में जल संरक्षण के चलाये जा रहे अभियान अमृत सरोवर में बक्सर के चौसा प्रखंड अंतर्गत सरेंजा का ऐतिहासिक पोखरा को भी शामिल किया गया है. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपने अभियान अमृत सरोवर फेसबुक और इंस्ट्राग्राम पेज पर मंगलवार को सरेंजा ऐतिहासिक पोखरा की तस्वीर पोस्ट की है. अमृत सरोवर पेज पर सरेंजा पोखरा की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा गया है कि बिहार के बक्सर में अमृत सरोवर का एक समृद्ध इतिहास है. सदियों से, इसने पीतल धातु के काम के केंद्र के रूप में कार्य किया और स्थानीय संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. आधुनिक समय में, यह सरोवर हजारों पीतल धातु श्रमिकों के लिए पानी उपलब्ध कराने और उनकी आजीविका बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण बन गया है. अतिक्रमण का सामना करने के बावजूद, सरोवर को पुनर्जीवित करने के प्रयास सफल रहे हैं. जिससे यह जल प्रबंधन और आजीविका स्थिरता के लिए एक मॉडल बन गया है. महात्मा गांधी नरेगा कार्यक्रमों के माध्यम से, सरोवर के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ायी गयी है, जिससे नहर नेटवर्क से इसका जुड़ाव हुआ है और स्थानीय मछली पालन को समर्थन मिला है. आज, सरोवर हजारों लोगों को प्रतिदिन पानी उपलब्ध कराता है, जो विरासत और आजीविका के सफल पुनरुद्धार का प्रदर्शन करता है. बता दें कि विगत दो साल पहले चौसा के तत्कालिक मनरेगा प्रोग्राम पदाधिकारी अजय सहाय के द्वारा मनरेगा के तहत उक्त ऐतिहासिक पोखरा को अमृत सरोवर के तहत जीर्णोद्धार कराने का प्रयास पंचायत स्तर से शुरू कराया गया. पहले फेज में ऐतिहासिक टीले का सौंदर्यीकरण का काम शुरू हुआ था. दूसरे फेज में पोखरा का सौंदर्यीकरण का काम होना था. परंतु आज तक उक्त पोखरा का सौंदर्यीकरण का कार्य अधर में लटका हुआ है. अब जबकि उक्त पोखरा को अमृत सरोवर के रूप में ग्रामीण कार्य विभाग के द्वारा मॉडल के तौर पर पेश किया जा रहा है, तो अब ऐतिहासिक तालाब और टीले का सौंदर्यीकरण का काम जोर पकड़ने का अनुमान है.
क्या कहते हैं अधिकारी
चौसा प्रखंड अंतर्गत सरेंजा का ऐतिहासिक तालाब को ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा अमृत सरोवर के तहत देश स्तर पर एक मॉडल के तौर पर पेश किया जाना काफी खुशी की बात है. इस ऐतिहासिक तालाब और टीले के सौंदर्यीकरण के जो भी छुटे हुए काम हैं उसे बहुत जल्द पूरा कराया जायेगा.
प्रवीण कुमार, मनरेगा पीओ———-
छह एकड़ का सरेंजा पोखर तीन एकड़ में सिमटा
चौसा. सैकड़ों वर्षों से जलस्त्रोत का केंद्र रहा सरेंजा पोखरा अतिक्रमण के चलते सिमटता जा रहा है. वर्षों पहले इसी पोखरा से लोगों की प्यास बुझती थी, परंतु आज गांव के नाले का गंदा पानी गिर रहा है. इसके जीर्णोद्धार के लिए प्रशासन व प्रतिनिधि कोई ध्यान नहीं दे रहा. पोखरा को अतिक्रमणमुक्त कराने व गाद उड़ाही के लिए चर्चा तो खूब हुई, लेकिन धरातल पर अधिकारी पोखरे को भूल गये. बताया जा रहा है कि कभी इस पोखरे के पानी से ग्रामीणों की प्यास बुझने के साथ घर-घर खाना बनाने में भी काम आता था. जिस पोखरे ने पुरखों की इतनी सेवा की, आज की पीढ़ी उसी पोखरा पर सितम ढा रहे हैं. आज तो पूरे गांव के घरों से निकलने वाला गंदा पानी इस पोखरे मे गिराये जाने से इसका पानी पशु-पक्षी की प्यास बुझाने लायक भी नही रहा है. गांव के बूढ़े-बुजुर्ग के मुताबिक इस पोखरे का निर्माण कब हुआ हम लोगों को भी पता नहीं. हालांकि, इस गांव के इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार इस पोखरे के बगल मे सरैया नामक राजा का दीवान (कचहरी) इस टीले पर हुआ करता था. वे चेरो वंश के राजा थे. आज भी इसकी तलहटी में पुराने भवन के ईंट निकलते हैं. उन्हीं के नाम से सरेंजा का नामकरण किया गया. उस समय इस गांव का नाम सिरसा गढ़ हुआ करता था. संभव है, उसी समय पोखरे का निर्माण कराया गया हो. पहले पोखरा छह एकड़ में हुआ करता था. लेकिन, आज अतिक्रमण के चलते तीन एकड़ में सिमट कर रह गया है. ग्रामीणों की मानें तो पोखरे का जीर्णोद्धार होना जरूरी है. पोखरे की खुदाई, पक्कीकरण, घाट के अलावा जगह-जगह पौधारोपण भी होना चाहिए. इसके लिए पर्याप्त जगह है. इसके लिए जरूरी है कि प्रशासन सबसे पहले इसे अतिक्रमण मुक्त कराये और घरों से निकलने वाले गंदा पानी को इसमें जाने से रोकने का प्रबंध करे. तभी इस पोखरे का अस्तित्व बचाया जा सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है