कुर्बानी का त्योहार बकरीद आज

क्षेत्र में आज बकरीद मनायी जायेगी. बकरीद को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा, बकरा ईद, के नाम से जाना जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 16, 2024 10:09 PM

चौसा. क्षेत्र में आज सोमवार 17 जून को बकरीद मनायी जायेगी. बकरीद को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा, बकरा ईद, के नाम से जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हर साल बकरीद 12वें महीने की 10 तारीख को मनाई जाती है. यह रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है. यह इस्लाम मजहब के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस दिन इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं. नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी दी जाती है. ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबी लोगों को ईद की मुबारकबाद देते हैं. ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं. एक-दुसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं. बाजारों में भी रौनक दिखायी देती है. मुस्लिम धर्मावलंबियों का ईद के बाद ईद-उल-अजहा का पर्व इस्लाम धर्म का दूसरा प्रमुख त्योहार है. जिसे बकरीद भी कहा जाता है. इस मौके पर अनुनाईयों द्वारा सबसे अजीज वस्तु की कुर्बानी दिया जाता है. और लोग बकरीद पर्व पर जानवरों की कुर्बानी देते है जो तीन दिनों तक चलता है. क्षेत्र में उक्त पर्व की तैयारी पिछले सप्ताह से चल रही है.जामियां मस्जिद चौसा के ईमाम मौलाना मो. तौकीर अहमद फरमाते है कि बकरीद का त्योहार पैगंबर हजरत इब्राहिम द्वारा शुरु हुआ था. जिन्हें अल्लाह का पैगंबर माना जाता है. इब्राहिम जिंदगी भर दुनिया की भलाई के कार्यों में लगे रहे. लेकिन 90 साल की उम्र तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई थी. तब उन्होंने खुदा की इबादत की जिससे उन्हें एक खूबसूरत बेटा इस्माइल मिला. एक दिन सपने में खुदा ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और और उन्हें अपनी प्रिय चीज की कुर्बानी देने का आदेश दिया. अल्लाह के आदेश को मानते हुए उन्होंने अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान कर दिए. एक दिन हजरत इब्राहिम को फिर से यह सपना आया तब उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का प्रण लिया, क्योंकि वो उनका सबसे प्रिय था. बेटे की कुर्बान देते समय उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, जिससे की उन्हें दया ना आ जाए. जब उनकी आंखें खुली तो उन्होंने पाया कि उनका बेटा तो जीवित है और खेल रहा है, बल्कि उसकी जगह वहां एक बकरे की कुर्बानी खुद ही हो गई है. और इस तरह अल्लाह ने यह मान लिया कि इब्राहिम उनके लिए अपनी प्रिय चीज भी कुर्बान कर सकते हैं. कहा जाता है कि बस तभी से बकरे की कुर्बानी की प्रथा चली आ रही है.

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