Buxar News : जैसा करेंगे कर्म, वैसा मिलेगा फल
Buxar News: पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार की पुण्य स्मृति में आयोजित होने वाले 55वें श्री सीताराम विवाह महोत्सव के पांचवे दिन दिवस पर भी पूर्व की भांति कार्यक्रम आयोजित किये गये
बक्सर
. पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार की पुण्य स्मृति में आयोजित होने वाले 55वें श्री सीताराम विवाह महोत्सव के पांचवे दिन दिवस पर भी पूर्व की भांति कार्यक्रम आयोजित किये गये. प्रात: काल आश्रम के परिकरों के द्वारा श्री रामचरितमानस जी का नवाह्न पारायण पाठ किया गया. इस मौके दामोंह की संकीर्तन मंडली के द्वारा किया गया. वही श्री श्री हरि नाम संकीर्तन अखंड अष्टयाम भी जारी रहा. महोत्सव के दौरान चल रहे श्री वाल्मीकि रामायण कथा के पांचवें दिन भारत के अप्रतिम विद्वान श्री कौशलेश सदन अयोध्या के पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य जी श्री विद्याभास्कर जी महाराज के द्वारा श्रीमद् वाल्मीकि रामायण की कथा में प्रभु श्री राम के द्वारा मां से विश्वामित्र मुनि के यज्ञ की रक्षा से लेकर जनकपुर मिथिला धाम में धनुष लीला तक की कथा का सुंदर वर्णन किया गया. महाराज श्री के श्रीमुख से कथा सुनकर भक्तगण भाव विभोर हो गया.मनुष्य कर्मों का फल स्वयं भोक्ता
आज की कथा में महाराज श्री ने कहा कि समस्त जड़ चेतन में व्याप्त परमात्मा एक ही है. महाराज श्री ने कहा कि संसार के समस्त धर्माचार्य व संप्रदायों का एकमात्र उद्देश्य इस परमात्मा के चरण की सानिध्य प्राप्त करना है. उन्होंने कहा कि हम जैसा कर्म करेंगे वैसा फल निश्चित रूप से हमें भोगना ही पड़ेगा. यही परमात्मा का अनुशासन है. मनुष्य अपने अभियान में किए गए कर्मों का फल स्वयं भोक्ता और जब हम स्वयं को भगवान का दास मान लेंगे अपने शरीर का पूर्ण स्वामित्व श्री हरि के चरणों में समर्पित कर देंगे उन्हें अपना स्वामी मान लेंगे अपने अभियान का त्याग कर देंगे तब हमारे समस्त पाप पुण्य के स्वामी परमात्मा हो जाएंगे और हम अपने समस्त पाप पुण्य से मुक्त होकर बैकुंठ धाम चले जायेंगे. भगवान के धाम में जाने का एकमात्र मार्ग है कि अपने आसमान को त्याग कर गुरु के मार्गदर्शन में स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दें.
दुनिया को राम के रामत्व का एहसास हुआ
उन्होंने कहा कि यह शरीर हमें ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुआ है इसका उपयोग भी परमपिता परमेश्वर के सेवा में उनके स्मरण में लगाना चाहिए. महाराज श्री ने कथा का वर्णन करते हुए आगे कहा की प्रभु श्री राम का जन्म भी यज्ञ के माध्यम से हुआ था और भगवान का अभ्युदय राम के रामत्व का प्रकृटिकरण भी यज्ञ के माध्यम से ही हुआ. जब महर्षि विश्वामित्र अपने आश्रम में चल रहे यज्ञ में नित्य बाधा उत्पन्न करने वाले राक्षसों से मुक्ति के लिए महाराज दशरथ से प्रभु श्री राम को मांग कर ले आए और प्रभु श्री राम ने आसुरी शक्तियों का संहार कर महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ को निर्विघ्न रूप से संपन्न कराया तब जाकर दुनिया को राम के रामत्व का एहसास हुआ. उन्होंने कहा कि मनुष्य के अंदर राक्षसी और दैवी दोनों प्रकार की शक्तियां विद्यमान रहती है.सकारात्मक प्रवृत्ति दैव प्रकृति का द्योतक है
सकारात्मक प्रवृत्ति दैव प्रकृति का द्योतक है जबकि नकारात्मक प्रवृत्ति राक्षसी प्रकृति की द्योतक है. जो बना बनाया काम बिगाड़ दे वहीं राक्षस है और जो बिगड़े हुए काम को बना दे वही देवता हैं. इस मौके पर वृंदावन के श्री फतेह कृष्ण शास्त्री की मंडली के द्वारा दशावतार लीला का मंचन किया गया. जबकि आश्रम के परिकरों के द्वारा रामलीला के ताड़का वध एवं सीता जन्म की लीला का मंचन किया गया.
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