आज नहाय-खाय से शुरू होगा छठ महापर्व

सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा

By Prabhat Khabar News Desk | November 4, 2024 9:52 PM

बक्सर. सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा. पहले दिन व्रती पावन स्नान के बाद संकल्प के साथ अरवा चावल एवं कद्दू से बने प्रसाद ग्रहण कर व्रत का अनुष्ठान करेंगे. बुधवार को दूसरे दिन खरना करेंगे और प्रसाद ग्रहण 36 घंटे का निर्जला उपवास करेंगे, जबकि तीसरे दिन गुरुवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को प्रथम तथा शुक्रवार को भगवान सूर्य के उदीयमान स्वरूप को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करेंगे. छठ पर्व को लेकर प्रशासनिक तैयारियां भी पूरी कर ली गई हैं. इस अवसर पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, ताकि सौहार्द बिगाड़ने वालों की दाल नहीं गले. व्रतियों द्वारा घरों में छठ की तैयारियां भी अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैं. गेहूं सुखाकर आटा पीसने व मिट्टी के चूल्हे बनाने का कार्य पूर्ण हो गया है. जाहिर है कि सूर्योपासना के इस महा पावन व्रत में व्रतियों द्वारा छठ का प्रसाद घर के आटा व मिट्टी के चूल्हे पर पकाने का विधान है, ताकि स्वच्छता व पवित्रता बनी रहे. घरों में महिलाओं द्वारा छठ की पारंपरिक गीतों की आवाज भी सुनाई देने लगी हैं. वही विभिन्न गायक-गायिकाओं द्वारा गाए छठ कर्ण प्रिय गीतों के ऑडियो सड़क से लेकर गली-मुहल्ले तक गूंजने लगे हैं. नहाय-खाय व्रत से होगी वाह्य व आंतरिक पवित्रिकरण : नहाय-खाय को लेकर व्रती मंगलवार को दोपहर बाद स्नान आदि से शरीर का बाह्य शुद्धिकरण कर व्रत का संकल्प लेंगे. शाम को आम की लकड़ी के इंधन से मिट्टी के चूल्हे पर अरवा चावल का प्रसाद व कद्दू का प्रसाद पकाकर सगे-संबंधियों के साथ ग्रहण करेंगे. वहीं सिमरी में लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व कार्तिक छठ मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाएगा. सूर्योपासना के इस पवित्र चार दिवसीय महापर्व के पहले दिन छठव्रती श्रद्धालु नर-नारी अंत:करण की शुद्धि के लिए नहाय-खाय के पश्चात संकल्प के साथ नदियों-तालाबों के निर्मल एवं स्वच्छ जल में स्नान करने के बाद शुद्ध घी में बना भोजन ग्रहण कर इस व्रत को शुरू करेंगे. श्रद्धालुओं ने आज से ही पर्व के लिए तैयारियां शुरू कर दी है. महापर्व छठ को लेकर घर से घाट तक तैयारियां जोरों पर है. व्रती घर की साफ-सफाई के साथ व्रत के लिए पूजन सामग्री खरीदने में जुट गए हैं. पर्व को लेकर बाजारों में भी गहमा-गहमी देखी जा रही है. बाजारों में छठ में उपयोग होने वाली सामग्री सूप, दउरा, आम की लकड़ी, चूल्हा और फलों की दुकानें सज चुकी हैं. परिवार की सुख-समृद्धि एवं कष्टों के निवारण के लिए किए जाने वाले इस व्रत की सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि इस पर्व को करने के लिए किसी पुरोहित (पंडित) की आवश्यकता नहीं होती है. नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस व्रत को करने वाली महिलाएं एवं पुरुष इस दिन स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाते हैं. इस दिन खाने में सेंधा नमक का ही प्रयोग किया जाता है. महापर्व छठ के दूसरे दिन बुधवार को दिनभर व्रत रखने वाली महिलाएं एक बार फिर नदियों, तालाबों में स्नान करने के बाद अपना उपवास शुरू करेंगे. अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पित करेंगे और शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्ध्य दिया जाएगा.महिलाएं छठ गीत का गायन कर व्रत की तैयारियां मे जुट गयी है. — कुंती व द्रौपदी ने भी किया था व्रत प्रकृति पूजा के रूप में विख्यात छठ पर्व को लेकर मान्यता है कि महाभारत काल में इसका आरंभ पांडवों की माता कुंती द्वारा सूर्य की आराधना से हुआ था. आराधना में कुंती ने सूर्य से अपने पुत्र के कल्याण की कामना की थी. इस पर्व के साथ यह कथा भी जुड़ती है कि जब पांडवों के राजपाठ छिन जाने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था. मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने छठ का व्रत किया था. परंपरा में छठ का व्रत पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है. छठ पर्व से जहां एक ओर गहरी आस्था जुड़ी है. वहीं इन दिनों होने वाले प्रकृति के बदलाव की दृष्टि से भी इस पर्व का महत्व काफी बढ़ गया है. इस व्रत में पवित्रता का रखा जाता है विशेष ध्यान, — नदी में व्रती करते हैं स्नान इसका उल्लेख वेदों में भी मिलता है. इसमें दो दिन व्रत रखने की परंपरा है. गंगा, यमुना अथवा किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे की जाती है.हालांकि जहां नदी तलाब उपलब्ध नही है वहां कुआं के समीप भी छठ व्रती पर्व करते हैं.एक तरह से ऊष्मा और जल जिस तरह मानव जीवन में अपनी महत्ता रखता है, उसके प्रति हमारी कृतज्ञता भी होती है. पर्व की विशेषता यह है कि घर के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं. पर्व में खासतौर पर ठेकुवा पकवान तैयार किया जाता है. इसके अलावा नारियल, मूली, सुथनी, अखरोट, बादाम, एक घड़ा, गन्ने के पेड़ आदि पूजा स्थल में रखे जाते हैं.पहले दिन महिलाएं स्नान कर चावल, लौकी, चने की दाल का भोजन करती है.

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