– उन्नतशील और शीघ्र पकने वाली प्रजातियां
उपास 120, पूसा 855, पूसा 33, पूसा अगेती, आजाद, जाग्रति, देर से पकने वाली प्रजातियां – बहार, बीएमएएल 13, पूसा-9 हाईब्रिड प्रजातियां पीपीएच-4, आईसीपीएच 8
– बुआई का समय
शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े तथा मध्यम देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के द्वितीय पखवाड़े में करना चाहिए बुआई सीडडिरल या हल के पीछे चोंगा बांधकर पंक्तियों में किया जाना चाहिए. – बीजशोधन बीजोपचारकिसान मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्वेन्डाजिम प्रति किलो ग्राम अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति किलो ग्राम की दर से शोधित करके बुआई करें. बीजशोधन बीजोपचार से 2 से 3 दिन पूर्व करें. 10 किलो ग्राम अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट पर्याप्त होता है 50 ग्राम गुड़ या चीनी को 1/2 लीटर पानी में घोलकर उबाल लें घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें इस कल्चर में 10 किलो ग्राम बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर, दूसरे दिन बोया जा सकता है. किसान उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखाएं व बीजोपचार दोपहर के बाद करें.
– अन्य फसलो तुलना मे नाइट्रोजन एवं फासफोरस की कम होती है आवश्यकताबीजदर व दूरी 12 से 15 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर. पंक्ति से पंक्ति 45 से 60 से.मी. पौध से पौध 10 से 15 से.मी. उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 से.मी. गहराई व 5 से.मी. साइड में देना सर्वोत्तम रहता है. प्रति हैक्टर 15 कि. ग्रा. नाइट्रोजन, 45 कि. ग्रा.फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश व 20 कि. ग्रा. गंधक की आवश्यकता होती है. जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहां पर 15 से 20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रयोग करें. नाइट्रोजन एवं फासफोरस की समस्त भूमियों में आवश्यकता होती है. किंतु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मृदा परीक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें.
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